🌹 आगे बढ़ें और लक्ष्य तक पहुँचें
🔴 स्वर्ग की देवियाँ ऋद्धि-सिद्धियों के रूप में उसके आगे-पीछे फिरती हैं और आज्ञानुवर्ती बनकर मिले हुए आदेशों का पालन करती हैं। यह भूलोक सौरमण्डल के समस्त ग्रह-गोलकों से अधिक जीवन्त, सुसम्पन्न और शोभायमान माना जाता है; पर भुलाया यह भी नहीं जा सकता कि आदिकाल के इस अनगढ़ ऊबड़-खाबड़ धरातल को आज जैसी सुसज्जित स्थिति तक पहुँचाने का श्रेय केवल मानवी पुरुषार्थ को ही है। वह अनेक जीव-जन्तुओं पशु-पक्षियों का पालनकर्ता और आश्रयदाता है। फिर कोई कारण नहीं कि अपनी प्रस्तुत समर्थता को जगाने-उभारने के लिए यदि समुचित रूप से कटिबद्ध हो चले, तो उस प्रतिभा का धनी न बन सके, जिसकी यश-गाथा गाने में लेखनी और वाणी को हार माननी पड़ती है।
🔵 मनुष्य प्रभावशाली तो है; पर साथ ही वह सम्बद्ध वातावरण से प्रभाव भी ग्रहण करता है। दुर्गंधित साँस लेने से सिर चकराने लगता है और सुगन्धि का प्रभाव शान्ति, प्रसन्नता और प्रफुल्लता प्रदान करता है। बुरे लोगों के बीच, बुराई से सञ्चालित घटनाओं के मध्य समय गुजारने वाले, उनमें रुचि लेने वाला व्यक्ति क्रमश: पतन और पराभव के गर्त में ही गिरता जाता है, साथ ही यह भी सही है कि मनीषियों, चरित्रवानों, सत्साहसी लोगों के सम्पर्क में रहने पर उनका प्रभाव-अनुदान सहज ही खिंचता चला आता है और व्यक्ति को उठाने-गिराने में असाधारण सहायता करता है। इन दिनों व्यक्ति और समाज में हीनता और निकृष्टता का ही बाहुल्य है। जहाँ इस प्रकार का वातावरण बहुलता लिए हो, उससे यथासम्भव बचना और असहयोग करना ही उचित है।
🔴 सज्जनता का सान्निध्य कठिन तो है और सत्प्रवृत्तियों की भी अपनी समर्थता जहाँ-तहाँ ही दिखाई देती है। ऐसी दशा में पुरातन अथवा अर्वाचीन सदाशयता का परिचय पुस्तकों के प्रसंगों के समाचारों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है और उन संस्मरणों को आत्मसात करते हुए ऐसा अनुभव किया जा सकता है, मानों देवलोक के नन्दनवन में विचरण किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में स्वाध्याय और सत्संग का सहारा लिया जा सकता है। इतिहास में से वे पृष्ठ ढूँढ़े जा सकते हैं, जो स्वर्णाक्षरों में लिखे हुए हैं और मानवी गरिमा को महिमामण्डित करते हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔴 स्वर्ग की देवियाँ ऋद्धि-सिद्धियों के रूप में उसके आगे-पीछे फिरती हैं और आज्ञानुवर्ती बनकर मिले हुए आदेशों का पालन करती हैं। यह भूलोक सौरमण्डल के समस्त ग्रह-गोलकों से अधिक जीवन्त, सुसम्पन्न और शोभायमान माना जाता है; पर भुलाया यह भी नहीं जा सकता कि आदिकाल के इस अनगढ़ ऊबड़-खाबड़ धरातल को आज जैसी सुसज्जित स्थिति तक पहुँचाने का श्रेय केवल मानवी पुरुषार्थ को ही है। वह अनेक जीव-जन्तुओं पशु-पक्षियों का पालनकर्ता और आश्रयदाता है। फिर कोई कारण नहीं कि अपनी प्रस्तुत समर्थता को जगाने-उभारने के लिए यदि समुचित रूप से कटिबद्ध हो चले, तो उस प्रतिभा का धनी न बन सके, जिसकी यश-गाथा गाने में लेखनी और वाणी को हार माननी पड़ती है।
🔵 मनुष्य प्रभावशाली तो है; पर साथ ही वह सम्बद्ध वातावरण से प्रभाव भी ग्रहण करता है। दुर्गंधित साँस लेने से सिर चकराने लगता है और सुगन्धि का प्रभाव शान्ति, प्रसन्नता और प्रफुल्लता प्रदान करता है। बुरे लोगों के बीच, बुराई से सञ्चालित घटनाओं के मध्य समय गुजारने वाले, उनमें रुचि लेने वाला व्यक्ति क्रमश: पतन और पराभव के गर्त में ही गिरता जाता है, साथ ही यह भी सही है कि मनीषियों, चरित्रवानों, सत्साहसी लोगों के सम्पर्क में रहने पर उनका प्रभाव-अनुदान सहज ही खिंचता चला आता है और व्यक्ति को उठाने-गिराने में असाधारण सहायता करता है। इन दिनों व्यक्ति और समाज में हीनता और निकृष्टता का ही बाहुल्य है। जहाँ इस प्रकार का वातावरण बहुलता लिए हो, उससे यथासम्भव बचना और असहयोग करना ही उचित है।
🔴 सज्जनता का सान्निध्य कठिन तो है और सत्प्रवृत्तियों की भी अपनी समर्थता जहाँ-तहाँ ही दिखाई देती है। ऐसी दशा में पुरातन अथवा अर्वाचीन सदाशयता का परिचय पुस्तकों के प्रसंगों के समाचारों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है और उन संस्मरणों को आत्मसात करते हुए ऐसा अनुभव किया जा सकता है, मानों देवलोक के नन्दनवन में विचरण किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में स्वाध्याय और सत्संग का सहारा लिया जा सकता है। इतिहास में से वे पृष्ठ ढूँढ़े जा सकते हैं, जो स्वर्णाक्षरों में लिखे हुए हैं और मानवी गरिमा को महिमामण्डित करते हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य