रविवार, 21 अगस्त 2022

👉 आत्मचिंतन के क्षण 21 Aug 2022

■ विचार आपसे कहते हैं-हमें मन के जेलखाने में ही घोटकर मत मारिए, वरन् शरीर के कार्यों द्वारा जगत् में आने दीजिए। मनुष्य उत्तम लेखक, योग्य वक्ता, उच्च कलाविद् एवं वह जो भी चाहे सरलतापूर्वक बन सकता है, लेकिन एक शर्त पर, वह शर्त है कि वह अपने शुभ संकल्पों को क्रियाशील कर दे। उन्हें दैनिक जीवन में कर दिखावे। जो कुछ सोचता-विचारता है, उसे परिश्रम द्वारा, प्रयत्न द्वारा, अपनी सामर्थ्य द्वारा साक्ष्य का रूप प्रदान करे। शुद्ध विचारों की उपयोगिता तभी प्रकट होगी, जब अंतःकरण के चित्रों को शरीर के कार्यों द्वारा क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया जाएगा।

◆ क्षमा न करना और प्रतिशोध लेने की इच्छा रखना दुःख और कष्टों के आधार हैं। जो व्यक्ति इन बुराइयों से बचने की अपेक्षा उन्हें अपने हृदय में पालते-बढ़ाते रहते हैं वे जीवन के सुख और आनंद से वंचित रह जाते हैं। वे आध्यात्मिक प्रकाश का लाभ नहीं ले पाते। जिसके हृदय में क्षमा नहीं, उसका हृदय कठोर हो जाता है। उसे दूसरों के प्रेम, मेलजोल, प्रतिष्ठा एवं आत्म-संतोष से वंचित रहना पड़ता है।

■ स्वर्ग और नरक मनुष्य के आगे-पीछे रहते हैं और सदा साथ-साथ चलते हैं। आगे स्वर्ग है, पीछे नरक। जब मनुष्य आगे की ओर अर्थात् उच्चता, महानता और श्रेष्ठता के प्रकाश-पूर्ण सत्पथ पर चलता है तो उसका हर एक कदम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करता हुआ  पड़ता है। इसके विपरीत जब मनुष्य पीठ पीछे की ओर नीचता के, पाप के, मलीनता के निकृष्ट एवं अंधकार के गर्त में फिसलता है, तो उसका हर एक कदम भयंकर नरक में धँसता जाता है।

■ कष्ट और कठिनाई का व्यवधान उन्नति की हर दिशा में मौजूद रहता है। ऐसी एक भी सफलता नहीं है जो कठिनाइयों से संघर्ष किये बिना ही प्राप्त हो जाती है। जीवन के महत्त्वपूर्ण मार्ग विघ्न-बाधाओं से सदा ही भरे रहते हैं। यदि परमात्मा ने सफलता का कठिनाई के साथ गठबंधन न किया होता, उसे सर्वसुलभ बना दिया होता तो मनुष्य जाति का वह सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता। तब सरलता से मिली हुई सफल्ता बिलकुल नीरस एवं उपेक्षणीय हो जाती। जो वस्तु जितनी कठिनता से जितना खर्च करके मिलती है, वह उतनी ही आनंददायक होती है।

◆ आकस्मिक विपत्ति का सिर पर आ पड़ना मनुष्य के लिए सचमुच बड़ा दुःखदायी है। इससे उसकी बड़ी हानि होती है, किन्तु उस विपत्ति की हानि से अनेकों गुनी हानि करने  वाला एक और कारण है, वह है-विपत्ति की घबराहट। विपत्ति कही जाने वाली मूल घटना चाहे वह कैसी ही बड़ी क्यों न हो, किसी का अत्यधिक अनिष्ट नहीं कर सकती, परन्तु विपत्ति की घबराहट ऐसी दुष्टा, पिशाचिनी है कि वह जिसके पीछे पड़ती है उसके गले से खून की प्यासी जोंक की तरह चिपक जाती है और जब तक उस मनुष्य को पूर्णतया निःसत्व नहीं कर देती, तब उस उसका पीछा नहीं छोड़ती।

■ सफलता का मार्ग खतरों का मार्ग है। जिसमें खतरों से लड़ने का साहस और संघर्ष में पड़ने का चाव हो, उसे ही सिद्धि के पथ पर कदम बढ़ाना चाहिए। जो खतरों से डरते हैं, जिन्हें कष्ट सहने से भय लगता है, कठोर परिश्रम करना जिन्हें नहीं आता, उन्हें अपने जीवन को उन्नतिशील बनाने की कल्पना नहीं करनी चाहिए। अदम्य उत्साह, अटूट साहस, अविचल धैर्य, निरन्तर परिश्रम और खतरों से लड़ने वाला पुरुषार्थ ही किसी का  जीवन सफल बना सकता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo



👉 क्षुद्र हम, क्षुद्रतम हमारी इच्छाएँ (भाग 2)

🔴 घड़ा पक्का होना चाहिए

कच्चा घड़ा लेकर वह व्यक्ति कुएँ पर गया। रस्सी बाँधी और रस्सी बाँधकर के उसको कुएँ में डुबोया। खींचते- खींचते घड़े का बहुत सारा हिस्सा, कोना टूट- फूट गया। किसी तरीके से थोड़ा- बहुत पानी लेकर वह घड़ा ऊपर आया। घड़े को उसने सिर पर रखा, हाथ पर रखा। सुकरात के पास उसे लेकर जब तक वह पहुँचा, मिट्टी का वह घड़ा बिखर गया। उसने सुकरात से कहा कि- भगवन्! जो घड़ा आपने मुझे पानी भरने के लिए दिया था वह रास्ते में ही बिखर गया। उन्होंने कहा- ‘ठीक यही फिलॉसफी भगवान् का प्यार प्राप्त करने और भगवान् का अनुग्रह प्राप्त करने की है।’ कच्चा घड़ा अपने भीतर पानी को धारण नहीं कर सका। उसके लिए जरूरत इस बात की पड़ती है कि घड़ा पक्का हो। अगर हमारे पास पक्का घड़ा है, तो पानी भर जायेगा, ठंडा रहेगा, बेतकल्लुफ खड़ा रहेगा और पानी हमको मिल जायेगा। अगर घड़ा कच्चा है, तो पानी बिखर जायेगा। सुकरात ने यह बात उस व्यक्ति से कही।

🔵 संव्याप्त भ्रान्तियाँ 

मित्रो! भगवान् को अपने भीतर धारण करने के लिए पक्का अर्थात् चरित्रवान, पक्का अर्थात् त्यागी, पक्का अर्थात् निष्ठावान्, पक्का अर्थात् व्यक्तित्व से सम्पन्न व्यक्ति होना चाहिए। यही हैं भगवान् की पूजा- उपासना के माध्यम। लेकिन क्या किया जाय? लोगों ने पिछले दिनों हमको गलत बातें बता दीं, गलत नियम सिखा दिये कि पूजा- उपासना के खेल जैसे कर्मकाण्ड भगवान् का प्यार प्राप्त करने में समर्थ हो सकते हैं और हमारे जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करा सकते हैं। हमको अपने जीवन को सुधारने की आवश्यकता नहीं है। हमको अपने आपको महान बनाने की आवश्यकता नहीं है। हम केवल थोड़े से कर्मकाण्ड कर लिया करें, तो हमको शान्ति मिल जायेगी और हमको भगवान् का अनुग्रह मिल जायेगा। इस अज्ञान और भ्रम ने हमारा रास्ता भटका दिया और हम एक मंजिल पर चल सकते थे, थोड़ी दूर तक पहुँच सकते थे, उससे महरूम और वंचित रह गये।

🔵 तीर्थ स्नान से मिलेगी मन की शान्ति? 

मित्रो! एक बार ऐसा हुआ- एक था मल्लाह। बहुत दुःखी बैठा हुआ था और कह रहा था कि मेरे मन में बड़ी अशांति है और मुझे बड़ा दुःख है। अब मुझे भगवान् की तरफ चलना चाहिए और भगवान् से शान्ति प्राप्ति करके लानी चाहिए। क्या किया जाय? क्या न किया जाय? उसके जी में आया कि तीर्थयात्रा के लिए चलना चाहिए और भगवान् के दर्शन करना चाहिए। उसकी स्त्री केशिका ने कहा कि पतिदेव! तीर्थयात्रा जाने से आपको शान्ति नहीं मिलेगी। शान्ति तो अपने भीतर भरी हुई पड़ी है। जब तक हम अपने भीतर के कपाट नहीं खोलेंगे, जब तक अपनी अंतरंग शान्ति के द्वार नहीं खोलेंगे, तब तक किस तरीके से आपको शान्ति मिल सकती है? बाहर शान्ति है कहाँ? जिसको तलाश करने के लिए आप जा रहे हैं? उसने कहना नहीं माना। उसने कहा कि मैं तो तीर्थयात्रा के लिए जाऊँगा और वहाँ से शान्ति लेकर के आऊँगा। मैं तो गंगा स्नान करूँगा और मैं तो जगन्नाथपुरी जाऊँगा और वहाँ से शान्ति ले करके आऊँगा। स्त्री ने मना किया, लेकिन उसका पति बड़ा दुःखी था और खिन्न था और उसको बहुत जल्दी भगवान् की कृपा प्राप्त करने की इच्छा थी।

🔴 पत्नी ने दी शिक्षा

वह तीर्थयात्रा की तैयारियाँ करने लगा। उसकी स्त्री केशिका भी साथ जाने के लिए तैयार हो गयी। उसने एक रूमाल में चार बैंगन बाँधकर रख दिए और जहाँ- जहाँ पतिदेव ने तीर्थयात्रा की, वहाँ- वहाँ वह स्वयं भी नहायी और पानी में बैंगनों को भी स्नान कराया। जहाँ- जहाँ दर्शन के लिए पतिदेव गये, वहाँ स्वयं भी दर्शन किया और उन चार बैंगनों को भी दर्शन कराया। सारे के सारे तीर्थ यात्रा करने के बाद उसका पति भी आ गया और केशिका भी आ गयी। जब घर आकर के बैठे, तब क्या हुआ कि उसने अपने पति के लिए भोजन बनाया। और वे चार बैंगन जो थे, जो कि सारे के सारे तीर्थों की यात्रा कर चुके थे और सब नदियों में स्नान कर चुके थे, उन बैंगनों की उसने साग बनाया। साग बनाकर पतिदेव की थाली में परोसकर रख दिया, तो पतिदेव को बड़ी दुर्गन्ध आयी।

पतिदेव ने कहा- अरे भागवान्! तूने यह क्या रख दिया? बदबू के मारे मेरी नाक सड़ी जा रही है और मुझे उल्टी होने वाली है। पत्नी ने कहा कि ये वह बैंगन हैं, जो चारों धाम की यात्रा करके आये हैं। ये वह बैगन हैं, जो भगवान् के जितने भी सारे तीर्थ हैं, उनके दर्शन करके आये हैं। इनमें तो सुगंध होनी चाहिए थी? इनमें तो स्वाद होना चाहिए था? उसने कहा- परन्तु इनमें न तो सुगंध है और न स्वाद है, तो मैं किस तरीके से मान लूँ? पत्नी ने कहा कि जब ये बैंगन सुगंध न प्राप्त कर सके, खुशबू प्राप्त न कर सके और स्वाद न प्राप्त कर सके, तो फिर यह तीर्थयात्रा आपको शान्ति दे पायेंगे क्या? भगवान् के दर्शन, कर्मकाण्ड आपको शान्ति दे पायेंगे क्या? मल्लाह के हृदय कपाट खुल गये और उसने अपने भीतर भगवान् को तलाश करना शुरू कर दिया और उसको शान्ति मिली।

🔵 गहराई में प्रवेश करें

मित्रो! भगवान्, जिसके आधार पर यह सारा विश्व टिका हुआ है और मानव की सारी उन्नति उसके कृपा कटाक्ष के ऊपर अवलम्बित है, उसको हमको तलाश करना चाहिए और प्राप्त करना चाहिए। मेरे जीवन का सारे का सारा समय इसी काम में समाप्त हो गया और मेरी साठ साल की जिन्दगी सिर्फ इसी काम में समाप्त हो गयी। भगवान् कहाँ है? और भगवान् को किस तरीके से प्राप्त किया जाये? हमको इसके बारे में थोड़ी गहराई तक जाना पड़ेगा, जैसे कि मुझे मेरे गुरुजी ने गहराई में धकेलने की कोशिश की। मैं चाहता हूँ कि आपको भी गहराई तक धकेल दूँ, ताकि आप वास्तविकता को समझ सकें।

मित्रो! एक बार ऐसा हुआ कि भगवान् जी की इच्छा हुई कि मेरा प्यारा मनुष्य इस पृथ्वी पर निवास करता है और उसके पास मैं चलूँ, उसके पास रहूँ और उसकी खोज- खबर लिया करूँ, उसको शिक्षा दिया करूँ। मैंने बड़ी उम्मीदों और तमन्नाओं से उसको बनाया था। मैं उसको रास्ता बताऊँगा, उसको उसके कर्तव्य बताऊँगा और उसको यह बताऊँगा कि मनुष्य का जीवन कितना महान है और मनुष्य के जीवन से क्या किया जा सकता है? भगवान् जो कार्य स्वयं करता है, उसको मानव भी स्वयं कर सकता है, मैं जा करके ऐसा शिक्षण मनुष्य को दूँगा।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/guru3/shudrahumshurdtamhum.1


All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform

Shantikunj WhatsApp
8439014110

Official Facebook Page

Official Twitter

Official Instagram

Youtube Channel Rishi Chintan

Youtube Channel Shantikunjvideo

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...