■ विचार आपसे कहते हैं-हमें मन के जेलखाने में ही घोटकर मत मारिए, वरन् शरीर के कार्यों द्वारा जगत् में आने दीजिए। मनुष्य उत्तम लेखक, योग्य वक्ता, उच्च कलाविद् एवं वह जो भी चाहे सरलतापूर्वक बन सकता है, लेकिन एक शर्त पर, वह शर्त है कि वह अपने शुभ संकल्पों को क्रियाशील कर दे। उन्हें दैनिक जीवन में कर दिखावे। जो कुछ सोचता-विचारता है, उसे परिश्रम द्वारा, प्रयत्न द्वारा, अपनी सामर्थ्य द्वारा साक्ष्य का रूप प्रदान करे। शुद्ध विचारों की उपयोगिता तभी प्रकट होगी, जब अंतःकरण के चित्रों को शरीर के कार्यों द्वारा क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया जाएगा।
◆ क्षमा न करना और प्रतिशोध लेने की इच्छा रखना दुःख और कष्टों के आधार हैं। जो व्यक्ति इन बुराइयों से बचने की अपेक्षा उन्हें अपने हृदय में पालते-बढ़ाते रहते हैं वे जीवन के सुख और आनंद से वंचित रह जाते हैं। वे आध्यात्मिक प्रकाश का लाभ नहीं ले पाते। जिसके हृदय में क्षमा नहीं, उसका हृदय कठोर हो जाता है। उसे दूसरों के प्रेम, मेलजोल, प्रतिष्ठा एवं आत्म-संतोष से वंचित रहना पड़ता है।
■ स्वर्ग और नरक मनुष्य के आगे-पीछे रहते हैं और सदा साथ-साथ चलते हैं। आगे स्वर्ग है, पीछे नरक। जब मनुष्य आगे की ओर अर्थात् उच्चता, महानता और श्रेष्ठता के प्रकाश-पूर्ण सत्पथ पर चलता है तो उसका हर एक कदम स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करता हुआ पड़ता है। इसके विपरीत जब मनुष्य पीठ पीछे की ओर नीचता के, पाप के, मलीनता के निकृष्ट एवं अंधकार के गर्त में फिसलता है, तो उसका हर एक कदम भयंकर नरक में धँसता जाता है।
■ कष्ट और कठिनाई का व्यवधान उन्नति की हर दिशा में मौजूद रहता है। ऐसी एक भी सफलता नहीं है जो कठिनाइयों से संघर्ष किये बिना ही प्राप्त हो जाती है। जीवन के महत्त्वपूर्ण मार्ग विघ्न-बाधाओं से सदा ही भरे रहते हैं। यदि परमात्मा ने सफलता का कठिनाई के साथ गठबंधन न किया होता, उसे सर्वसुलभ बना दिया होता तो मनुष्य जाति का वह सबसे बड़ा दुर्भाग्य होता। तब सरलता से मिली हुई सफल्ता बिलकुल नीरस एवं उपेक्षणीय हो जाती। जो वस्तु जितनी कठिनता से जितना खर्च करके मिलती है, वह उतनी ही आनंददायक होती है।
◆ आकस्मिक विपत्ति का सिर पर आ पड़ना मनुष्य के लिए सचमुच बड़ा दुःखदायी है। इससे उसकी बड़ी हानि होती है, किन्तु उस विपत्ति की हानि से अनेकों गुनी हानि करने वाला एक और कारण है, वह है-विपत्ति की घबराहट। विपत्ति कही जाने वाली मूल घटना चाहे वह कैसी ही बड़ी क्यों न हो, किसी का अत्यधिक अनिष्ट नहीं कर सकती, परन्तु विपत्ति की घबराहट ऐसी दुष्टा, पिशाचिनी है कि वह जिसके पीछे पड़ती है उसके गले से खून की प्यासी जोंक की तरह चिपक जाती है और जब तक उस मनुष्य को पूर्णतया निःसत्व नहीं कर देती, तब उस उसका पीछा नहीं छोड़ती।
■ सफलता का मार्ग खतरों का मार्ग है। जिसमें खतरों से लड़ने का साहस और संघर्ष में पड़ने का चाव हो, उसे ही सिद्धि के पथ पर कदम बढ़ाना चाहिए। जो खतरों से डरते हैं, जिन्हें कष्ट सहने से भय लगता है, कठोर परिश्रम करना जिन्हें नहीं आता, उन्हें अपने जीवन को उन्नतिशील बनाने की कल्पना नहीं करनी चाहिए। अदम्य उत्साह, अटूट साहस, अविचल धैर्य, निरन्तर परिश्रम और खतरों से लड़ने वाला पुरुषार्थ ही किसी का जीवन सफल बना सकता है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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