बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

👉 मानसिक विकास का अटल नियम

जिस प्रकार के विचार हम नित्य किया करते हैं, उन्हीं विचारों के अणुओं का मस्तिष्क में संग्रह होता रहता है। मस्तिष्क का उपयोग उचित और सत्कार्यों में करने से, उसे आलसी निकम्मा न छोड़ने से, मानसिक शक्ति का विकास होता है।

मस्तिष्क को उत्तम या निकृष्ट बनाना तुम्हारे हाथ में ही है। सोचो, विचारो तथा मनन करो। क्रोध करने से क्रोध वाले अणुओं की संख्या में वृद्धि होती है। चिंता, शोक, भय व खेद करने से इन्हीं कुविचारों के अणुओं का तुम पोषण करते हो और मस्तिष्क को निर्बल बनाते हो। भूतकाल की दुर्घटनाओं या दु:खद प्रसंग को स्मरण कर, खेद या शोक के वशीभूत होकर मस्तिष्क को निर्बल मत बनाओ। शरीर में बल होते हुए भी उसका उपयोग न करने से बल क्षीण होता है।

इसी प्रकार बिना विचार के मस्तिष्क भी क्षीण होता है। नवीन विचारों का मन में स्वागत करने से मस्तिष्क का मानस-व्यापार व्यापक होता है तथा मन प्रफुल्लित हो जाता है, जीवन व बल की वृद्धि होती है, मन व बुद्धि तेजस्वी बनते हैं। जो विचार हमारे मस्तिष्क में हैं, वे ही हमारे जीवन को बनाने वाले हैं। जिस कला के विचार तथा अभ्यास करोगे, उसी में निपुणता मिलेगी। मस्तिष्क के जिस भाग का उपयोग करोगे, उसी की शक्तियों का विकास होगा।

📖 अखण्ड ज्योति-जुलाई 1946 पृष्ठ 10

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1946/July/v1.10

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👉 जीने योग्य जीवन जियो

धिक्कार है उस जिंदगी पर, जो मक्खियों की तरह पापों की विष्ठा के ऊपर भिनभिनाने में और कुत्ते की तरह विषय भोगों की जूठन चाटने में व्यतीत होती है। उस बड़प्पन पर धिक्कार है, जो खुद खजूर की तरह बढ़ते हैं, पर उनकी छाया में एक प्राणी भी आश्रय नहीं पा सकता। सर्प की तरह धन के खजाने पर बैठकर चौकीदारी करने वाले लालची किस प्रकार सराहनीय कहे जा सकते हैं?

जिनका जीवन तुच्छ स्वार्थों को पूरा करने की उधेड़बुन में निकल गया, हाय! वे कितने अभागे हैं। सुरदुर्लभ देह रूपी बहुमूल्य रत्न, इन दुर्बुद्धियों ने काँच और कंकड़ के टुकड़ों के बदले बेच दिया। किस मुख से वे कहेंगे कि हमने जीवन का सद्व्यय किया। इन कुबुद्धियों को तो अंत में पश्चाताप ही प्राप्त होगा। एक दिन उन्हें अपनी भूल प्रतीत होगी, पर उस समय अवसर हाथ से चला गया होगा और सिर धुन-धुन कर पछताने के अतिरिक्त और कुछ हाथ न लगेगा।

मनुष्यों! जियो और जीने योग्य जीवन जियो। ऐसी जिंदगी बनाओ जिसे आदर्श और अनुकरणीय कहा जा सके। विश्व में अपने ऐसे पदचिह्न जोड़ जाओ, जिन्हें देखकर आगामी संतति अपना मार्ग ढूँढ़ सके। आप का जीवन सत्य से, प्रेम से, न्याय से, भरा हुआ होना चाहिए। दया, सहानुभूति, आत्मनिष्ठा, संयम, दृढ़ता, उदारता, आप के जीवन के अंग होने चाहिए। हमारा जीवन मनुष्यता के महान् गौरव के अनुरूप ही होना चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- अगस्त 1946 पृष्ठ 1


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