सोमवार, 13 जून 2016

👉 गायत्री जयंती पर्व विशेष :-- वह अविस्मरणीय दिवस (भाग 2)


🔵 देखने वाले का यह स्वप्न कुछ ही क्षणों में सुबह की दिनचर्या में विलीन हो गया। उसी दिन ब्रह्मवर्चस् के एक कार्यकर्त्ता भाई के संबंधी की शादी थी। वंदनीया माताजी ने दो-एक दिन पहले से ही निर्देश दिया था कि शादी सुबह ही निबटा ली जाए। सामान्य क्रम में शाँतिकुँज में यज्ञमंडप में शादियाँ दस बजे प्रारंभ होती हैं, लेकिन उस दिन के लिए के लिए माताजी का आदेश कुछ अलग था। गायत्री जयंती के दिन यह शादी काफी सुबह संपन्न हुई। अन्य कार्यक्रम भी यथावत् संपन्न हो रहे थे। वंदनीया माताजी प्रवचन करने के लिए प्रवचन मंच पर पधारी थीं। प्रवचन से पहले संगीत प्रस्तुत करने वाले कार्यकर्त्ता जगन्माता गायत्री की महिमा का भक्तिगान कर रहे थे-’माँ तेरे चरणों में हम शीश झुकाते हैं,’ गीत की कड़ियाँ समाप्त हुई। माताजी की भावमुद्रा में हलके से परिवर्तन झलके। ऐसा लगा कि एक पल के लिए वह अपनी अंतर्चेतना के किसी गहरे अहसास में खो गई, लेकिन दूसरे ही पल उनकी वाणी से जीवन-सुधा छलकने लगी।

🔴 प्रवचन के बाद प्रणाम का क्रम चलना था। माँ अपने आसन पर अपने बच्चों को ढेर सारा प्यार और आशीष बाँटने के लिए बैठ गई। प्रणाम की पंक्ति चल रही थी, माताजी स्थिर बैठी थीं। उनके सामने अस्तित्व से वात्सल्य-संवेदना झर रही थी।

🔵 प्रणाम समाप्त होने के कुछ ही क्षणों बाद शाँतिकुँज एवं ब्रह्मवर्चस् का कण-कण, यहाँ निवास करने वाले सभी कार्यकर्त्ताओं का तन-मन-जीवन बिलख उठा। अब सभी को बता दिया गया था कि गुरुदेव ने देह छोड़ दी है। अगणित शिष्य संतानों एवं भक्तों के प्रिय प्रभु अब देहातीत हो गए हैं। काल के अनुरोध पर भगवान महाकाल ने अपनी लोक-लीला का संवरण कर लिया है। जिसने भी, जहाँ पर यह खबर सुनी, वह वहीं पर अवाक् खड़ा रह गया। एक पल के लिए हर कोई निःशब्द, निस्पंद हो गया। सबका जीवन-रस जैसे निचुड़ गया। थके पाँव उठते ही न थे, लेकिन उन्हें उठना तो था ही। असह्य वेदना से भीगे जन परमपूज्य गुरुदेव के अंतिम दर्शनों के लिए चल पड़े।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 अखण्ड ज्योति मई 2002 पृष्ठ 49
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/2002/May.49

👉 आत्मोत्कर्ष के चार अनिवार्य चरण (भाग 6)


🔴 अपने समीपवर्ती लोग प्रायः स्वार्थपरता और निकृष्टता की दिशा में ही प्रेरणा देते ही दीख पड़ने, ग्रहण करने का प्रयत्न करें। उनके जीवन चरित्र पढ़ें ओर आदर्शवादी प्रेरणाप्रद प्रसंगों एवं व्यक्तियों को अपने सामने रखें। उस स्तर के लोग प्रायः सत्संग के लिए के लिए सदा उपलब्ध नहीं रहते। यदि होते भी हैं तो उनके प्रवचन और कर्म में अन्तर रहने से समुचित प्रभाव नहीं पड़ता। ऐसी दशा में सरल और निर्दोष तरीका यही है कि ऐसे सत्साहित्य का नित्य-नियमित रुपं से अध्ययन किया जाय जो जीवन की समस्याओं को सुलझाने, ऊँचा उठाने और आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता हो। ऐसा साहित्य न केवल पढ़ा ही जाय वरन् प्रस्तुत विचारधारा को व्यावहारिक जीवन में उतारने के लिए उत्साह भी उत्पन्न किया जाय और सोचा जाय कि इस प्रकार की आदर्शवादिता अपने में किस प्रकार उत्पन्न की जा सकती है। इसके लिए योजनाएँ बनाते रहा जाय और परिवर्तन काल में जो उलट-पुलट करनी पड़ेगी उसका मानसिक ढाँचा खड़ा करते रहा जाय।

🔵 यही है आन्तरिक महाभारत की पृष्ठभूमि प्रत्यक्ष संग्राम तब खड़ा होता है जब अभ्यस्त गन्दे विचारों को उभरने न देने के लिए कड़ी नजर रखी जात है और जब भी वे प्रबल हो रहे हों तभी उन्हें कुचलने के लिए प्रतिपक्षी सद्विचारों की सेना सामने ला खड़ी की जाती है। व्यभिचार की ओर जब मन चले तो इस मार्ग पर चलने की हानियों का फिल्म चित्र मस्तिष्क में घुमाया जाय और संयम से हो सकने वाले लाभों का- उदाहरणों का- सुविस्तृत दृश्य आँखों के सामने उपस्थित कर दिया जाय। यह कुविचारों और सद्विचारों की टक्कर हैं यदि मनोबल प्रखर है और न्यायाधीश जैसा विवेक जागृत हो तो कुविचारों का परास्त होना और पलायन करना सुनिश्चित है। सत्य में हजार हाथी के बराबर बल होता है। आसुरी तत्त्व देखने में तो बड़े आकर्षक और प्रबल प्रतीत होते हैं, पर जब सत्य की अग्नि के साथ उनका पाला पड़ता है तो फिर उनकी दुर्गति होते भी देर नहीं लगती। काठ की हाँड़ी की तरह जलते और कागज की नाव की तरह गलते हुए भी उन्हें देखा जा सकता है।

🔴 अभ्यस्त कुसंस्कार आदत बन जाते हैं और व्यवहार में अनायास ही उभर-उभर कर आते रहते हैं। इनके लिए भी विचार संघर्ष की तरह कर्म संघर्ष की नीति अपनानी पड़ती है। थल सेना से थल सेना लड़ती हैं और नभ सेना के मुकाबले नभ सेना भेजी जाती है। जिस प्रकार कैदियों को नई बदमाशी खड़ी न करने देने के लिए जेल के चौकीदार उन पर हर घड़ी कड़ी नजर रखते हैं वहीं नीति दुर्बुद्धि पर ही नहीं दुष्प्रवृत्तियों पर भी रखनी पड़ती है। जो भी उभरे उसी से संघर्ष खड़ा कर दिया। बुरी आदतें जब कार्यान्वित होने के लिए मचल रही हों तो उसके स्थान पर उचित सत्कर्म ही करने का आग्रह खड़ा कर देना चाहिए और मनोबल पूर्वक अनुचित को दबाने दुर्बल होगा तो ही हारना पड़ेगा अन्यथा सत्साहस जुटा लेने पर श्रेष्ठ स्थापना से सफलता ही मिलती है। घर में बच्चे जाग रहे हों बुड्ढे खाँस रहे हों तो भी मजबूत चोर के पाँव काँपने लगते हैं और वह उलटे पैरों लौट जाता है। ऐसा ही तब होता है जब दुष्प्रवृत्तियों की तुलना में सत्प्रवृत्तियों को साहसपूर्वक अड़ने और लड़ने के लिए खड़ा कर दिया जाता है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🌹 अखण्ड ज्योति जनवरी पृष्ठ 10
http://literature.awgp.org/magazine/AkhandjyotiHindi/1977/January.10

👉 गायत्री उपासना की सफलता की तीन शर्तें (भाग 3)


🔵 संयमी व्यक्ति, सदाचारी व्यक्ति जो भी जप करते हैं, उपासना करते हैं उनकी प्रत्येक उपासना सफल हो जाती है। दुराचारी आदमी, दुष्ट आदमी, नीच पापी और पतित आदमी भगवान का नाम लेकर यदि चाहें तो पार नहीं हो सकते। भगवान का नाम लेने का परिणाम यह होना चाहिए कि आदमी का व्यक्तित्व सही हो और वह शुद्ध बने। अगर व्यक्ति को शुद्ध और समुन्नत बनाने में रामनाम सफल नहीं हुआ तो जानना चाहिए कि उपासना की विधि में बहुत भारी भूल रह गई और नाम के साथ में काम करने वाली बात को भुला दिया गया। परिष्कृत व्यक्तित्व उपासना का दूसरा वाला पहलू है, गायत्री उपासना के संबंध में अथवा अन्यान्य उपासनाओं के संबंध में।

🔴 तीसरा, हमारा अब तक का अनुभव यह है कि उच्चस्तरीय जप और उपासनाएँ तब सफल होती हैं जबकि आदमी का दृष्टिकोण और महत्त्वाकांक्षाएँ भी ऊँची हों। घटिया उद्देश्य लेकर के, निकृष्ट कामनाएँ और वासनाएँ लेकर के अगर भगवान की उपासना की जाए और देवताओं का द्वार खटखटाया जाए, तो देवता सबसे पहले कर्मकाण्डों की विधि और विधानों को देखने की अपेक्षा यह मालूम करने की कोशिश करते हैं कि उसकी उपासना का उद्देश्य क्या है? किस काम के लिए करना चाहता है?

🔵 अगर उन्हीं कामों के लिए जिसमें कि आदमी को अपनी मेहनत और परिश्रम के द्वारा कमाई करनी चाहिए, उसको सरल और सस्ते तरीके से पूरा कराने के लिए देवताओं का पल्ला खटखटाता है तो वे उसके व्यक्तित्व के बारे में समझ जाते हैं कि यह कोई घटिया आदमी है और घटिया काम के लिए हमारी सहायता चाहता है। देवता भी बहुत व्यस्त हैं। देवता सहायता तो करना चाहते हैं, लेकिन सहायता करने से पहले यह तलाश करना चाहते हैं कि हमारा उपयोग कहाँ किया जाएगा? किस काम के लिए किया जाएगा? यदि घटिया काम के लिए उसका उपयोग किया जाने वाला है, तो वे कदाचित ही कभी किसी के साथ सहायता करने को तैयार होते हैं। ऊँचे उद्देश्यों के लिए देवताओं ने हमेशा सहायता की है।

🔴 मंत्रशक्ति और भगवान की शक्ति केवल उन्हीं लोगों के लिए सुरक्षित रही है जिनका दृष्टिकोण ऊँचा रहा है। जिन्होंने किसी अच्छे काम के लिए, ऊँचे काम के लिए भगवान की सेवा और सहायता चाही है, उनको बराबर सेवा और सहायता मिली है। इन तीनों बातों को हमने प्राणपण से प्रयत्न किया और हमारी गायत्री उपासना में प्राण संचार होता चला गया। प्राण संचार अगर होगा तो हर चीज प्राणवान और चमत्कारी होती चली जाती है और सफल होती जाती है। हमने अपने व्यक्तिगत जीवन में चौबीस लाख के चौबीस साल में चौबीस महापुरश्चरण किए। जप और अनुष्ठानों की विधियों को संपन्न किया। सभी के साथ जो नियमोपनियम थे, उनका पालन किया। यह भी सही है, लेकिन हर एक को यह ध्यान रहना चाहिए कि हमारी उपासना में कर्मकाण्डों का, विधि- विधानों का जितना ज्यादा स्थान ही उससे कहीं ज्यादा स्थान इस बात के ऊपर है कि हमने उन तीन बातों को जो आध्यात्मिकता की प्राण समझी जाती हैं, उन्हें पूरा करने की कोशिश की है।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Pravachaan/prachaavachanpart5/gayatri_upasna.2

एक एक दाने की कद्र करना जरूरी है।

🔴 इस तस्वीर को मशहूर फोटोग्राफर केविन कार्टर ने सूडान में लिया था,

🔵 इसमें एक बच्चा भुखमरी से मर रहा है और गिद्ध उसके मरने का इंतजार कर रहा है ताकि मरने के बाद वो इसको खा सके,


🔴 इस फोटो को प्रतिष्ठित पुलित्जर पुरस्कार भी मिला था लेकिन इस फोटो को खींचने के बाद केविन बेहद व्यथित रहते थे, इतने कि बाद मे आत्म हत्या कर ली थी।

👉 अन्न का अपमान करना बंद करें। एक एक दाने की कद्र करना जरूरी है।

🙏 हाथ जोड कर विनती है आपसे दूसरो के लिए कुछ नही करोगे तो चलेगा।

🔵 पर अनाज का एक भी दाना बरबाद मत करना...





 

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