मंगलवार, 30 अगस्त 2022

👉 आत्मचिंतन के क्षण 30 Aug 2022

🔸 आत्मा की दृष्टि से संसार के संपूर्ण प्राणी एक समान हैं। शरीर, धन, मान, पद और प्रतिष्ठा की बहुरूपता आत्मगत नहीं होती है। इस दृष्टि से ऊँच, नीच, वर्णभेद, छोटे-बड़े अशक्त, बलवान्, धनी या निर्धन का कोई भेदभाव नहीं उठता। परमात्मा के दरबार में सब एक समान हैं। कोई ऊँच-नीच, बड़ा, राजा या फकीर नहीं है। जो यह समझकर सबके साथ सदैव सद्भावनाएँ रखता है, वही सच्चा अध्यात्मवादी है।

◼️ मानव जीवन की सार्थकता के लिए विचार पवित्रता अनिवार्य है। केवल ज्ञान, भक्ति और पूजा से मनुष्य का विकास एवं उत्थान नहीं हो सकता। जिसके विचार गंदे होते हैं, उससे सभी घृणा करते हैं। शरीर गंदा रहे तो स्वस्थ रहना जिस प्रकार कठिन हो जाता है, उसी प्रकार मानसिक पवित्रता के अभाव में सज्जनता, प्रेम और सद्व्यवहार के भाव नहीं उठ सकते। आचार-विचार की पवित्रता से ही व्यक्ति का सम्मान व प्रतिष्ठा होती है।

🔹 बुराई पहले आदमी से अज्ञानी व्यक्ति के समान मिलती है और हाथ बाँधकर नौकर की तरह उसके सामने खड़ी हो जाती है, फिर मित्र बन जाती है और निकट आ जाती है। इसके बाद मालिक बनती है और आदमी के सिर पर सवार होकर उसे सदा के लिए अपना दास बना लेती है।

🔸 प्रकृति चाहती हे कि हर व्यक्ति सजग और सतर्क रहे,  सावधानी बरते और घात-प्रतिघात से कैसे बचा जाता है इस कला की जानकारी प्राप्त करे। सज्जन होना उचित है, पर मूर्ख होना अक्षम्य है। हम दूसरों की सेवा-सहायता विवेकपूर्वक करें, यह ठीक है, पर कोई मूर्ख अथवा कमजोर समझकर अपनी घात चलाये और ठग ले जाय, यह अनुचित है।

🔹 धोखा किसी को भी नहीं देना चाहिए, पर धोखा खाना कहाँ की बुद्धिमानी है। हमें हर किसी पर पूरा विश्वास करना चाहिए, साथ ही पैनी निगाह से यह देखते रहना चाहिए कि कहीं असावधानी से वह अवसर तो उत्पन्न नहीं हो रहा है, जिसमें दुर्बल मन मनुष्य का अविश्वासी बन जाना संभव है।

◼️ हमें किसी के साथ अनीति नहीं बरतनी चाहिए, पर अन्याय को भी सहन नहीं करना चाहिए। संघर्ष के बिना कोई छुटकारा नहीं। प्रतिरोध में हानि उठानी पड़ सकती है, पर प्रतिरोध न करने में-चुपचाप अनीति सहते रहने में और भी अधिक घाटे में रहना होगा। अनीति बरतने की प्रक्रिया तभी गतिशील रहती है, जब उसका अवरोध न हो। अनीति को हम कदापि सहन न करें, भले ही उसके प्रतिरोध में कितनी ही बड़ी क्षति क्यों न उठानी पड़े।


✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 क्षुद्र हम, क्षुद्रतम हमारी इच्छाएँ (भाग 6)

🔴 गलत मार्ग पर चलने की परिणति 

रामायण में भी यही बात आती है कि आदमी बहुत कमजोर होता है। आदमी का रूहानी बल, उसका चरित्र, उसकी महानता और आत्मा कमजोर हो जाये, तो आदमी बहुत कमजोर हो जाता है। रावण बहुत ही बलवान था। काल को उसने अपनी पाटी से बाँध रखा था। वह इतना जबरदस्त था कि उसने सब देवताओं को पकड़ लिया था। सोने की लंका बनाई। समुद्र पर काबू पाया, लेकिन एक समय रावण बहुत ही कमजोर हो गया और बहुत ही दुबला हो गया। बहुत ही कमजोर हो गया। कब? जब कि वह सीता जी का हरण करने को गया। सीताजी का हरण करने को बेचारे को बहुत ढोंग रचाने पड़े। भिखारी का रूप बनाना पड़ा। रावण भिखारी क्यों बना? रावण के दरवाजे पर तो अनेक भिखारी पड़े रहते थे। उसे क्यों बनना पड़ा और यह भी इधर- उधर देखकर के, कि कोई मुझे देख तो नहीं रहा? इस तरीके से रावण चला। रावण की दशा बहुत ही दयनीय थी। क्यों? क्योंकि उसने गलत रास्ते पर कदम रखने शुरू किये थे-

‘जाकें डर सुर असुर डेराहीं। निसि न नींद दिन अन्न न खाहीं।’
सो दससीस स्वान की नाईं। इत उत चितइ चला भड़िहाईं॥
इमि कुपंथ पग देत खगेसा। रह न तेज तन बुधि बल लेसा॥
अर्थात् व्यक्ति यदि गलत रास्ते पर कदम उठाना शुरू कर देता है, तो उसका तेज, बल और बुद्धि- सारे के सारे सद्गुण नष्ट हो जाते हैं- इनका सफाया हो जाता है।

🔵 हम तो लुट गये 

मित्रो! हमारे जीवन की महानतम भूल यही है कि हमको जिस काम के लिए जीवन मिला था, ऐसा उज्ज्वल जीवन जीने के लिए मिला था, उसके बारे में हम बेखबर होते हुए चले गए। हमने वह सारी की सारी चीजें भुला दीं, जिसे भगवान् ने हमको जन्म के समय सौंपी थीं। हम छोटी- छोटी चीजों में उलझ गये और हमारे जीवन का जो महत्त्व और जो लाभ मिलना चाहिए था, वह न मिल सका। हम दुनिया में आकर के लुट गये, बरबाद हो गये। भगवान् के यहाँ से हम कितनी बड़ी दौलत लेकर के आये थे। अपरिमित शक्तियों के भण्डार बनकर के हम आये थे। हमारी आँखों में सूरज, चाँद थे। हमारे सारे शरीर में सारे के सारे देवताओं का निवास था। शक्ति की देवी का हमारे शरीर में निवास है। गणेश जी का निवास हमारे मस्तिष्क में है और सरस्वती का निवास हमारी जिह्वा पर है। हमारे हृदय में चार मुख वाले ब्रह्माजी, नाभि में शंकर भगवान्- इन सारे के सारे देवताओं का निवास हमारे शरीर में है। देवताओं के निवास से भरा हुआ ऐसा शरीर हमको मिला, लेकिन इस देवताओं से भरे हुए शरीर का जो लाभ हमको उठाना चाहिए था, जो फल उसका लेना चाहिए था, हम वह फल लेने से वंचित रह गए। हमारी यह छोटी सी भूल जीवन के उद्देश्य को भूला देने के सम्बन्ध में हुई।

🔴 गलत सोच बैठी रही मन में

जीवन के उद्देश्य के बारे में हमको यही याद बनी रही, जो कि हमारे मुहल्ले वालों और पड़ोसियों ने कहा। उन्होंने कहा कि मनुष्य खाने- पीने के लिए पैदा हुआ है और मनुष्य कुछ चीजें इकट्ठी करने के लिए पैदा हुआ है। मनुष्य इंद्रियों के लाभ और इंद्रियों की सुविधाएँ इकट्ठी करने के लिए पैदा हुआ है और मनुष्य नाम और यश कमाने के लिए पैदा हुआ है। मनुष्य अपना बड़प्पन, अपना गौरव, अपना आतंक दूसरे लोगों के ऊपर जमाने के लिए पैदा हुआ है। मुहल्ले वालों ने हमसे यही कहा, पड़ोसियों ने हमसे यही कहा और रिश्तेदारों ने हमसे यही बात कही। यह बातें हमारे दिमाग के ऊपर हावी होती गयीं और पूरी तरह सवार हो गयीं। हमने उसी बात को सही मान लिया और सारी जिंदगी को उसी ढंग से खर्च करना शुरू कर दिया।

🔵 एक चूक का परिणाम कितना बड़ा 

मित्रो! हमारी इतनी बड़ी भूल जो कि इस चौराहे पर आकर हमको मालूम हुई। हमारी एक भूल- चूक हो गई। ऐसी ही एक भूल कलिंग देश के एक राजा ने की थी। कलिंग देश का एक राजा था। एक बार उसको जलपान के समय- नास्ते के समय मधुपर्क दिया गया अर्थात् दही और शहद दिया गया। दही और शहद को अच्छे तरीके से खाना चाहिए था, तमीज के साथ खाना चाहिये था लेकिन तमीज के साथ उसने शहद नहीं खाया। इधर- उधर देखता रहा, बात करता रहा और शहद खाता रहा। इस तरह शहद खाने से क्या हुआ? आधा शहद प्याले में गया, आधा खा चुका और आधा शहद जमीन पर फैल गया। इसके बाद कलिंग राजा चला गया।

कलिंग राजा जब चला गया तो थोड़ी देर में जो शहद वहाँ फैल गया था वहाँ मक्खियाँ आयीं और आकर के शहद खाने लगीं। वहाँ बहुत सी मक्खियाँ मँडरा रहीं थी। उसी समय एक छिपकली आयी और मक्खियों को खाने का अंदाज लगाने लगी। फिर एक और छिपकली आयी। जब कई छिपकलियाँ इकट्ठी होने लगीं, तो एक बिल्ली आई। बिल्ली ने कहा कि ये छिपकलियाँ बहुत गड़बड़ करती हैं चलो इन्हें खाना चाहिए। इनको खाने में मजा मिलेगा। बस, मक्खियों को खाने के लिए छिपकलियाँ तैयारी करने लगी थीं और छिपकलियों को खाने के लिए बिल्ली। बिल्ली जैसे ही उन्हें खाने के लिए आई वैसे ही कहीं से एक कुत्ता आ गया। उसने कहा कि यह बिल्ली बहुत अच्छी है। इसको मजा चखाना चाहिये। इसकी टाँग पकड़ लेनी चाहिए। बस, कुत्ता आया और उसने बिल्ली की टाँग पकड़ ली। कान पकड़ लिया और बिल्ली के बाल नोचने लगा। जब तक एक और कुत्ता आ गया और उस कुत्ते के ऊपर बिगड़ने लगा। कुत्ते से लड़ने लगा। बिल्ली तो भाग गई और कुत्तों में लड़ाई हो गयी।

🔴 बात बढ़ती चली गयी

कुत्ते जब आपस में बहुत देर तक लड़ते रहे और घायल हो गये, तो उन कुत्तों के मालिक आये। उन्होंने आपस में कहा कि तुम्हारे कुत्ते ने हमारे कुत्ते को काटा। दूसरे ने कहा कि तुम्हारे कुत्ते ने हमारे कुत्ते को काटा। उन्होंने कहा कि तुम्हारा कुसूर है, तुमने अपने कुत्ते को बाँधकर के क्यों नहीं रखा? दूसरे ने भी यही कहा कि तुमने अपने कुत्ते को बाँधकर के क्यों नहीं रखा? दोनों में टेंशन होने लगी और आपस में मारपीट हो गई। झगड़ा हो गया? फिर क्या हुआ? वे ब्राह्मण और ठाकुर थे। ब्राह्मणों को पता चला कि हमारे ब्राह्मण की ठाकुरों ने पिटाई कर दी, तो उन्होंने कहा ब्राह्मणों की बहुत बेइज्जती हो गई, चलो ठाकुरों पर हमला करेंगे। उधर ठाकुरों ने कहा कि चलो, ब्राह्मणों को ठीक करेंगे। उधर ब्राह्मणों ने कहा कि ठाकुरों का मुकाबला करेंगे। जो होगा देखा जायेगा।

फिर दोनों में बहुत जोरदार लड़ाई हुई। मारपीट और दंगा हो गया। दंगा हो गया, तो मुहल्ले में जो चोर और डाकू थे, उन्होंने कहा कि दंगा हो रहा है। इस समय हमें बड़ा बलवा खड़ा कर देना चाहिए और जो भी माल लूट- पाट में मिले, उसे लेकर के भाग जाना चाहिए। बस दंगा होते ही बहुत सारे दंगाई आ गये और सारे शहर में दंगा मचाने लगे और लूटपाट करने लगे। उन्होंने कहा कि इन गाँव वालों के पास क्या रखा है? सारा खजाना तो राजा के पास है। चलो राजा के पास चलें और उसका सारे का सारा खजाना लूटकर ले आयें। बस दंगाइयों ने राजा के खजाने पर धावा बोल दिया और राजा के खजाने में जो माल रखा था, सब चुराकर ले गये। सोना, चाँदी, नगीना आदि सब गायब हो गये।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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