शनिवार, 27 मई 2017

👉 पूज्यवर का अनुरोध एवं आश्वासन

🔵 हमें अनेक जन्मों का स्मरण है। लोगों को नहीं जिनके साथ पूर्व जन्मों से सघन संबंध रहे हैं, उन्हें संयोगवश या प्रयत्न पूर्वक हमने परिजनों के रूप में एकत्रित कर लिया है और जिस- तिस कारण हमारे इर्द- गिर्द जमा हो गए हैं।
   
🔴 बच्चों को प्रज्ञा परिजनों के संबंध में चलते- चलाते हमारा इतना ही आश्वासन है कि वे यदि अपने भाव- संवेदना क्षेत्र को थोड़ा और परिष्कृत कर लें तो निकटता अब की अपेक्षा और भी अधिक गहरी अनुभव करने लगेंगे।
  
🔵 कठिनाइयों में सहयता करने और बालकों को ऊँचा उठाने, आगे बढ़ाने की हमारी प्रकृति में राई- रत्ती भी अन्तर नहीं होने जा रहा है। वह लाभ पहले की अपेक्षा और भी अधिक मिलता रह सकता है।
  
🔴 जो अपनी भाव- संवेदना बढ़ा सकेंगे वे भविष्य में हमारी निकटता अपेक्षाकृत और भी अच्छी तरह अनुभव करते रहेंगे।

👉 हमारी वसीयत और विरासत (भाग 107)

🌹 ब्राह्मण मन और ऋषि कर्म

🔵  अपने समय के विभिन्न ऋषिगणों ने अपने हिस्से के काम सँभाले और पूरे किए थे। उन दिनों ऐसी परिस्थितियाँ, अवसर और इतना अवकाश भी था कि समय की आवश्यकता के अनुरूप अपने-अपने कार्यों को वे धैर्यपूर्वक संचित समय में सम्पन्न करते रह सकें, पर अब तो आपत्तिकाल है। इन दिनों अनेक काम एक ही समय में द्रुतगति से निपटाने हैं। घर में अग्निकाण्ड हो तो जितना बुझाने का प्रयास बन पड़े उसे स्वयं करते हुए, बच्चों को, कपड़ों को, धनराशि को निकालने-ढोने का काम साथ-साथ ही चलता है।

🔴 हमें ऐसे ही आपत्तिकाल का सामना करना पड़ा है और ऋषियों द्वारा हमारी हिमालय यात्रा में सौंपे गए कार्यों में से प्रायः प्रत्येक को एक ही समय में बहुमुखी जीवन जीकर संभालना पड़ा है। इसके लिए प्रेरणा, दिशा और सहायता हमारे समर्थ मार्गदर्शक की मिली है और शरीर से जो कुछ भी हम कर सकते थे, उसे पूरी तरह तत्परता और तन्मयता के साथ सम्पन्न किया है। उसमें पूरी-पूरी ईमानदारी का समावेश किया है। फलतः वे सभी कार्य इस प्रकार सम्पन्न होते चले हैं मानों वे किए हुए ही रखे हों। कृष्ण का रथ चलाना और अर्जुन का गाण्डीव उठाना पुरातन इतिहास होते हुए भी हमें अपने संदर्भ में चरितार्थ होते दीखता रहा है।

🔵 युग परिवर्तन जैसा महान कार्य होता तो भगवान् की इच्छा, योजना एवं क्षमता के आधार पर ही है, पर उसका श्रेय वे ऋषि, कल्प जीवनमुक्त आत्माओं को देते रहते हैं। यही उनकी साधना का-पात्रता का सर्वोत्तम उपहार है। हमें भी इस प्रकार का श्रेय उपहार देने की भूमिका बनी और हम कृत-कृत्य हो गए। हमें सुदूर भविष्य की झाँकी अभी से दिखाई पड़ती है, इसी कारण हमें यह लिख सकने में संकोच रंचमात्र भी नहीं होता।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/brahman

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 28 May 2017


👉 आज का सद्चिंतन 28 May 2017


👉 आदर्शोन्मुखी व्यक्तित्व

🔵 सृष्टि की प्रवाहमान जीवनधारा में अनंत व्यक्ति जन्मते हैं, जीते हैं और बह जाते हैं। लेकिन इस अंतविहीन इतिहास के पन्नों पर कुछ ऐसे व्यक्तित्व भी हैं, जिनके जीवन की स्याही कभी धुँधली नहीं पड़ती। वे सदा चमकते रहते हैं और वर्तमान से भी ज्यादा आने वाले कल के लिए सदैव अपना उजला प्रकाश बिखेरते होंगे। काल का प्रचंड प्रवाह जिनको बहा न सका, जिनके बीस-तीस वर्षों को हजार-हजार वर्ष भी ओझल व धूमिल न कर सकें, उन व्यक्तियों की आदर्शोन्मुखी आस्था का ही यह सुफल है।

🔴 व्यष्टि में समष्टि है। समष्टि की समग्रता का अहसास व्यक्ति की अंतश्चेतना में होता है। इस अहसास में जीने वाले को यह सहज समझ होती है कि बटोरने की अपेक्षा छोड़ने का मूल्य है। जलाने की अपेक्षा जलने का मूल्य है। शासक की अपेक्षा अकिंचन का मूल्य है। ये मूल्य आज भी हैं, कल भी थे और कल भी रहेंगे। जिन्होंने मूल्यों का आस्थापूर्वक आचरण किया, वे इतिहासपुरुष बन गए। जिन्होंने केवल इन मूल्यों पर प्रवचन किए, आचरण नहीं किया, वे इतिहास के गर्त में समा गए।

🔵 हालाँकि बटोरना सहज नहीं है, जलाने में साहस की अपेक्षा है, शासक बनने के लिए प्रचुर चतुराई की जरूरत है; पर जिनमें यह साहस है, चातुर्य है, क्षमता है और इसके बावजूद जो बटोरते नहीं, जलाते नहीं, राज्य नहीं करते, मूल्यों का विश्वास उन्हीं में दीप्तिमान् होता है। जिनमें क्षमता और  साहस ही नहीं, उनमें मूल्यों का प्रकाश कहाँ से और कैसे प्रदीप्त होगा! उनमें क्लीवता का काला अँधेरा जो व्याप्त है।

🔴 मारने वाला वीर हो सकता है, लेकिन नहीं मारने वाला महावीर होता है। अपने हृदय की दृढ़ अहिंसा के साथ समस्त प्राणियों के प्रति सजल करुणा हो। मरने वाले तथा मारने वाले दोनों में समान प्राणों-अद्वैत का भाव हो, तभी इसकी सार्थकता है। लेकिन यदि मन में भय हो, स्वयं के प्राणों का व्यामोह एवं कायरता छाई हो, तब उसे अहिंसा का नाम देना आदर्श को पतनोन्मुख बनाना है।

🔵 ऊँचे आदर्शों को खींचकर मन के कमजोर भावों को छिपाने तथा संतुष्ट करने के लिए उन्हें नीचा न किया जाए, यह अत्यंत आवश्यक है। हर क्षेत्र के अपने कुछ शाश्वत मूल्य हैं। अपनी महत्त्वाकांक्षा तथा स्वार्थ की क्षुद्रता में उन मूल्यों का अवमूल्यन नहीं किया जाना चाहिए। मूल्यों के अवमूल्यन को इतिहास कभी क्षमा नहीं करता। इतिहासपुरुष बनने का गौरव तो सच्चे, सार्थक एवं शाश्वत मूल्यों के हिमालय के सर्वोच्च शिखर पर चढ़ने से ही प्राप्त होता है।

🌹 डॉ प्रणव पंड्या
🌹जीवन पथ के प्रदीप पृष्ठ 80

👉 भगवान पर विश्वास:-

🔴 एक समय की बात है किसी गाँव  में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या  किया करता  था। उसका  भगवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे।

🔵 एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई। चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा, सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे। जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप  रहे हैं तो उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी। पर साधु ने कहा तुम लोग अपनी  जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!

🔴 धीरे-धीरे पानी  का  स्तर बढ़ता गया, और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा, इतने में वहां से एक नाव गुजरी मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा, नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा, साधु ने उत्तर दिया।

🔵 कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी, साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर ईश्वर को याद करने लगा। तभी अचानक उन्हें गड़गडाहट की आवाज़ सुनाई दी, एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल  ने एक रस्सी लटकाई  और साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया, पर साधु फिर बोला मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा।

🔴 उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया

🔴 कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी, मरने  के  बाद  साधु महाराज स्वर्ग पहुचे और भगवान  से बोले  हे  प्रभु मैंने  तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की, तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु?

🔵 भगवान बोले हे साधु महात्मा मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया पहला, ग्रामीणों के रूप में, दूसरा नाव वाले के रूप में और तीसरा हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में किन्तु तुम मेरे  इन अवसरों को पहचान नहीं पाए।

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...