बुधवार, 23 अक्टूबर 2019
👉 ज्ञान की चार बात
एक राजा के विशाल महल में एक सुंदर वाटिका थी,जिसमें अंगूरों की एक बेल लगी थी।वहां रोज एक चिड़िया आती और मीठे अंगूर चुन-चुनकर खा जाती और अधपके और खट्टे अंगूरों को नीचे गिरा देती।
माली ने चिड़िया को पकड़ने की बहुत कोशिश की पर वह हाथ नहीं आई। हताश होकर एक दिन माली ने राजा को यह बात बताई। यह सुनकर भानुप्रताप को आश्चर्य हुआ। उसने चिड़िया को सबक सिखाने की ठान ली और वाटिका में छिपकर बैठ गया।
जब चिड़िया अंगूर खाने आई तो राजा ने तेजी दिखाते हुए उसे पकड़ लिया। जब राजा चिड़िया को मारने लगा,तो चिड़िया ने कहा- हे राजन !! मुझे मत मारो। मैं आपको ज्ञान की 4 महत्वपूर्ण बातें बताऊंगी।'
राजा ने कहा, 'जल्दी बता।'
चिड़िया बोली, 'हे राजन !! सबसे पहले, तो हाथ में आए शत्रु को कभी मत छोड़ो।'
राजा ने कहा, 'दूसरी बात बता।'
चिड़िया ने कहा, 'असंभव बात पर भूलकर भी विश्वास मत करो और तीसरी बात यह है कि बीती बातों पर कभी पश्चाताप मत करो।'
राजा ने कहा, 'अब चौथी बात भी जल्दी बता दो।'
इस पर चिड़िया बोली, 'चौथी बात बड़ी गूढ़ और रहस्यमयी है। मुझे जरा ढीला छोड़ दें क्योंकि मेरा दम घुट रहा है। कुछ सांस लेकर ही बता सकूंगी।'
चिड़िया की बात सुन जैसे ही राजा ने अपना हाथ ढीला किया,चिड़िया उड़ कर एक डाल पर बैठ गई और बोली, 'मेरे पेट में दो हीरे हैं।'
यह सुनकर राजा पश्चाताप में डूब गया। राजा की हालत देख चिड़िया बोली, 'हे राजन !! ज्ञान की बात सुनने और पढ़ने से कुछ लाभ नहीं होता,उस पर अमल करने से होता है। आपने मेरी बात नहीं मानी।
मैं आपकी शत्रु थी, फिर भी आपने पकड़कर मुझे छोड़ दिया।
मैंने यह असंभव बात कही कि मेरे पेट में दो हीरे हैं फिर भी आपने उस पर भरोसा कर लिया।
आपके हाथ में वे काल्पनिक हीरे नहीं आए, तो आप पछताने लगे।
👉👉 उपदेशों को आचरण में उतारे बगैर उनका कोई मोल नहीं।
माली ने चिड़िया को पकड़ने की बहुत कोशिश की पर वह हाथ नहीं आई। हताश होकर एक दिन माली ने राजा को यह बात बताई। यह सुनकर भानुप्रताप को आश्चर्य हुआ। उसने चिड़िया को सबक सिखाने की ठान ली और वाटिका में छिपकर बैठ गया।
जब चिड़िया अंगूर खाने आई तो राजा ने तेजी दिखाते हुए उसे पकड़ लिया। जब राजा चिड़िया को मारने लगा,तो चिड़िया ने कहा- हे राजन !! मुझे मत मारो। मैं आपको ज्ञान की 4 महत्वपूर्ण बातें बताऊंगी।'
राजा ने कहा, 'जल्दी बता।'
चिड़िया बोली, 'हे राजन !! सबसे पहले, तो हाथ में आए शत्रु को कभी मत छोड़ो।'
राजा ने कहा, 'दूसरी बात बता।'
चिड़िया ने कहा, 'असंभव बात पर भूलकर भी विश्वास मत करो और तीसरी बात यह है कि बीती बातों पर कभी पश्चाताप मत करो।'
राजा ने कहा, 'अब चौथी बात भी जल्दी बता दो।'
इस पर चिड़िया बोली, 'चौथी बात बड़ी गूढ़ और रहस्यमयी है। मुझे जरा ढीला छोड़ दें क्योंकि मेरा दम घुट रहा है। कुछ सांस लेकर ही बता सकूंगी।'
चिड़िया की बात सुन जैसे ही राजा ने अपना हाथ ढीला किया,चिड़िया उड़ कर एक डाल पर बैठ गई और बोली, 'मेरे पेट में दो हीरे हैं।'
यह सुनकर राजा पश्चाताप में डूब गया। राजा की हालत देख चिड़िया बोली, 'हे राजन !! ज्ञान की बात सुनने और पढ़ने से कुछ लाभ नहीं होता,उस पर अमल करने से होता है। आपने मेरी बात नहीं मानी।
मैं आपकी शत्रु थी, फिर भी आपने पकड़कर मुझे छोड़ दिया।
मैंने यह असंभव बात कही कि मेरे पेट में दो हीरे हैं फिर भी आपने उस पर भरोसा कर लिया।
आपके हाथ में वे काल्पनिक हीरे नहीं आए, तो आप पछताने लगे।
👉👉 उपदेशों को आचरण में उतारे बगैर उनका कोई मोल नहीं।
👉 कर्ज से छुटकारा पाना ही ठीक है। (भाग २)
प्रमुख बात यह है कि हर मनुष्य में इतनी शक्ति और सामर्थ्य होती है कि वह अपनी शारीरिक, पारिवारिक जिम्मेदारियों का पालन ठीक तरह से कर ले। कर्ज की आवश्यकता उन्हीं को होती है जिन्हें अपना पारिवारिक खर्च ठीक प्रकार चलाना नहीं आता या जो श्रम-चोर होते हैं। उन्हें भी मिलता तो कुछ है नहीं और फालतू के व्यसन और पाल लेते हैं, सो उनकी पूर्ति के लिये कहीं से पैसा आना चाहिए। दुस्साहसी पुरुष चोरी छल आदि का आश्रय ले लेते हैं आलसी और अकर्मण्य इसके लिये दूसरों के आगे हाथ फैलाते हैं। कर्ज ले आना तो आसान बात है। चिकनी चुपड़ी बातें बनाकर या मित्रता का ढोंग बना कर किसी से उधार ले तो सकते हैं किन्तु जब अदायगी का समय आता है तो यह बोझ सारे परिवार की अर्थ व्यवस्था पर पड़ता है। फलस्वरूप परिवारों का सौमनस्य समाप्त हो जाता है। क्लेश, कलह और कटुता बढ़ जाती है। इसमें समय भी नष्ट होता है और सदस्यों की योग्यता भी व्यर्थ चली जाती है। कर्ज एक प्रकार से गृहस्थी को चौपट करने वाला होता है।
जिन लोगों की आमदनी बहुत थोड़ी होती है और खर्च अधिक होता है वे लोग कर्ज लेकर अपने को लंगड़ा-लूला जैसा ही अनुभव करते हैं। थोड़ी देर तक के लिये भले ही पूर्ति अनुभव हो किन्तु यह बोझ बढ़ जाता है तो बस मनुष्य का सारा जीवन कर्ज को निबटाने में ही चला जाता है। ऐसे लोग देखे जा सकते हैं जो ब्याज की एवज में साहूकार का ही जीवन भर काम करते रहते हैं उनका कर्ज फिर भी अदा नहीं हो पाता तो वह बोझ उठाकर उनके निरीह बच्चों पर डाल दिया जाता है और फिर एक पैतृक समस्या बन जाती है।
कर्ज एक तरह का सामाजिक कलंक है। लेने वाले के लिये ही वह कठिन अपराध और भारस्वरूप नहीं होते वरन् देने वाले की भी परेशानियाँ कम नहीं होतीं। महात्मा टॉलस्टाय ने लिखा है “कर्ज देना मानों किसी चीज पहाड़ की चोटी से गिराना है और फिर उसे वसूल करना उतना ही कठिन होता है जितना किसी वजनदार चीज को पहाड़ की चोटी पर ले जाना। कर्ज मनुष्य की सबसे बड़ी और दूसरे को देने की गरीबी है।”
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1966 पृष्ठ 44
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1965/April/v1.44
जिन लोगों की आमदनी बहुत थोड़ी होती है और खर्च अधिक होता है वे लोग कर्ज लेकर अपने को लंगड़ा-लूला जैसा ही अनुभव करते हैं। थोड़ी देर तक के लिये भले ही पूर्ति अनुभव हो किन्तु यह बोझ बढ़ जाता है तो बस मनुष्य का सारा जीवन कर्ज को निबटाने में ही चला जाता है। ऐसे लोग देखे जा सकते हैं जो ब्याज की एवज में साहूकार का ही जीवन भर काम करते रहते हैं उनका कर्ज फिर भी अदा नहीं हो पाता तो वह बोझ उठाकर उनके निरीह बच्चों पर डाल दिया जाता है और फिर एक पैतृक समस्या बन जाती है।
कर्ज एक तरह का सामाजिक कलंक है। लेने वाले के लिये ही वह कठिन अपराध और भारस्वरूप नहीं होते वरन् देने वाले की भी परेशानियाँ कम नहीं होतीं। महात्मा टॉलस्टाय ने लिखा है “कर्ज देना मानों किसी चीज पहाड़ की चोटी से गिराना है और फिर उसे वसूल करना उतना ही कठिन होता है जितना किसी वजनदार चीज को पहाड़ की चोटी पर ले जाना। कर्ज मनुष्य की सबसे बड़ी और दूसरे को देने की गरीबी है।”
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति अप्रैल 1966 पृष्ठ 44
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1965/April/v1.44
👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ८४)
👉 भविष्य का सम्पूर्ण व समग्र विज्ञान अध्यात्म
शारीरिक रोगों के साथ आध्यात्मिक तकनीकों के प्रयोग मनोरोगों पर भी किए गए हैं। इस सम्बन्ध में विलियम वेस्ट की पुस्तक ‘साइकोथेरेपी एण्ड स्प्रिचुयैलिटी’ पठनीय है। इस पुस्तक में विख्यात मनोचिकित्सक विलियम वेस्ट का कहना है कि अब इस जमाने में मनोचिकित्सा व अध्यात्म विद्या के बीच खड़ी दीवार टूट रही है। मनोरोगों का सही व सम्पूर्ण इलाज आध्यात्मिक तकनीकों के प्रयोग से ही सम्भव है। उन्होंने एक अन्य शोधपत्र में यह भी कहा है कि आध्यात्मिक जीवन शैली को अपनाने से लोगों को मानसिक रोगों की सम्भावना नहीं रहती। इस क्रम में उन्होंने प्रार्थना व ध्यान को मनोरोगों की कारगर औषधि बताया है।
अध्यात्म चिकित्सा के सम्बन्ध में विश्वदृष्टि को परिवर्तित करने वालों में डॉ. ब्रायन वीज़ का नाम उल्लेखनीय है। पेशे से डॉ. वीज़ साइकिएट्रिस्ट हैं। परन्तु अब वे स्वयं को आध्यात्मिक चिकित्सक कहलाना पसन्द करते हैं। उनकी कई पुस्तकें जिनकी चर्चा पहले भी की जा चुकी है- अध्यात्म चिकित्सा की सार्थक उपयोगिता को प्रमाणित करती हैं। इनका कहना है कि आध्यात्मिक सिद्धान्तों व साधना से ही सम्पूर्ण जीवन बोध सम्भव है। चिकित्सा के सम्बन्ध में जब भी वैज्ञानिक असफलताओं की बात होती है, तो इसका कारण एकांगीपन होता है। विज्ञान कहता है कि इन्सान केवल देह मात्र है, जो सच नहीं है। हमारा जीवन देह, प्राण, मन व आत्मा का संयोग है। और ये सम्पूर्ण आयाम आध्यात्मिक दृष्टि के बिना नहीं जाने जा सकते।
एक अन्य वैज्ञानिक रिचर्ड कार्लसन का अपने शोध निष्कर्ष ‘स्प्रिचुयैलिटी कम्पलीट साइन्स ऑफ लाइफ’ यानि कि आध्यात्मिकता जीवन का सम्पूर्ण विज्ञान, में इन तथ्यों का खुलासा किया है। उनका मानना है कि अध्यात्म के बिना जीवन का सम्पूर्ण बोध असम्भव है। कार्लसन कहते हैं कि जिस तरह से कटी हुई अंगुलियों के सहारे मानवीय देह की समग्रता को नहीं जाना जा सकता, उसी तरह केवल देह के बलबूते सम्पूर्ण अस्तित्त्व को जानना असम्भव है। उन्होंने अपनी पुस्तक में इस सम्बन्ध में कई सत्यों व तथ्यों का विश्लेषण करते हुए कहा है कि जिस तरह बीसवीं सदी विज्ञान की सदी साबित हुई है। उसी तरह यह इक्कीसवीं सदी आध्यात्म की सदी के रूप में देखी, जानी व अनुभव की जाएगी। आध्यात्मिक जीवन दृष्टि, अध्यात्म चिकित्सा के सिद्धान्त व प्रयोगों को सभी इस सदी की महानतम उपलब्धि के रूप में अनुभव करेंगे। इसलिए यही उपयुक्त है कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अर्थ समझें व अध्यात्म चिकित्सा की ओर बढ़ाएँ कदम।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ११७
शारीरिक रोगों के साथ आध्यात्मिक तकनीकों के प्रयोग मनोरोगों पर भी किए गए हैं। इस सम्बन्ध में विलियम वेस्ट की पुस्तक ‘साइकोथेरेपी एण्ड स्प्रिचुयैलिटी’ पठनीय है। इस पुस्तक में विख्यात मनोचिकित्सक विलियम वेस्ट का कहना है कि अब इस जमाने में मनोचिकित्सा व अध्यात्म विद्या के बीच खड़ी दीवार टूट रही है। मनोरोगों का सही व सम्पूर्ण इलाज आध्यात्मिक तकनीकों के प्रयोग से ही सम्भव है। उन्होंने एक अन्य शोधपत्र में यह भी कहा है कि आध्यात्मिक जीवन शैली को अपनाने से लोगों को मानसिक रोगों की सम्भावना नहीं रहती। इस क्रम में उन्होंने प्रार्थना व ध्यान को मनोरोगों की कारगर औषधि बताया है।
अध्यात्म चिकित्सा के सम्बन्ध में विश्वदृष्टि को परिवर्तित करने वालों में डॉ. ब्रायन वीज़ का नाम उल्लेखनीय है। पेशे से डॉ. वीज़ साइकिएट्रिस्ट हैं। परन्तु अब वे स्वयं को आध्यात्मिक चिकित्सक कहलाना पसन्द करते हैं। उनकी कई पुस्तकें जिनकी चर्चा पहले भी की जा चुकी है- अध्यात्म चिकित्सा की सार्थक उपयोगिता को प्रमाणित करती हैं। इनका कहना है कि आध्यात्मिक सिद्धान्तों व साधना से ही सम्पूर्ण जीवन बोध सम्भव है। चिकित्सा के सम्बन्ध में जब भी वैज्ञानिक असफलताओं की बात होती है, तो इसका कारण एकांगीपन होता है। विज्ञान कहता है कि इन्सान केवल देह मात्र है, जो सच नहीं है। हमारा जीवन देह, प्राण, मन व आत्मा का संयोग है। और ये सम्पूर्ण आयाम आध्यात्मिक दृष्टि के बिना नहीं जाने जा सकते।
एक अन्य वैज्ञानिक रिचर्ड कार्लसन का अपने शोध निष्कर्ष ‘स्प्रिचुयैलिटी कम्पलीट साइन्स ऑफ लाइफ’ यानि कि आध्यात्मिकता जीवन का सम्पूर्ण विज्ञान, में इन तथ्यों का खुलासा किया है। उनका मानना है कि अध्यात्म के बिना जीवन का सम्पूर्ण बोध असम्भव है। कार्लसन कहते हैं कि जिस तरह से कटी हुई अंगुलियों के सहारे मानवीय देह की समग्रता को नहीं जाना जा सकता, उसी तरह केवल देह के बलबूते सम्पूर्ण अस्तित्त्व को जानना असम्भव है। उन्होंने अपनी पुस्तक में इस सम्बन्ध में कई सत्यों व तथ्यों का विश्लेषण करते हुए कहा है कि जिस तरह बीसवीं सदी विज्ञान की सदी साबित हुई है। उसी तरह यह इक्कीसवीं सदी आध्यात्म की सदी के रूप में देखी, जानी व अनुभव की जाएगी। आध्यात्मिक जीवन दृष्टि, अध्यात्म चिकित्सा के सिद्धान्त व प्रयोगों को सभी इस सदी की महानतम उपलब्धि के रूप में अनुभव करेंगे। इसलिए यही उपयुक्त है कि आध्यात्मिक स्वास्थ्य का अर्थ समझें व अध्यात्म चिकित्सा की ओर बढ़ाएँ कदम।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ ११७
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