🔷 रज्जब मुसलमान थे। पठान थे। किसी युवती के प्रेम में थे। विवाह का दिन आ गया। बारात सजी। बारात चली। रज्जब घोड़े पर सवार। मौर बाँधा हुआ सिर पर। बाराती साथ है, बैंड बाजा है इत्र का छिड़काव है, फूलों की मालाएँ है। और बीच बाजार में अपनी ससुराल के करीब पहुंचने को ही थे। दस पाँच कदम शेष रह गये थे। प्रेयसी से मिलने जा रहे था। प्रेम तो तैयार था, जरा सा रूख बदलने भर की बात थी।
🔶 यह मौका ठीका मौका है। लोहा जब गर्म हो तब चोट करनी चाहिए। एक तरह से देखो तो यह मौका एक दम ठीक था कि अचानक घोड़े के पास एक आदमी आया उसका पहनाव बड़ा अजीब था। कोई फक्कड़ दिखाई दे रहा था। बारात के सामने आ कर खड़ा हो गया। और उसने गौर से रज्जब को देखा। आँख से आँख मिली। वे चार आंखें संयुक्त हो गयी। उस क्षण में क्रांति घटी।
🔷 वह आदमी रज्जब के होने वाला गुरु थे—-- और जो कहा दादू दयाल जी ने वे शब्द बड़े अद्भुत है। उन छोटे से शब्दों में सारी क्रांति छिपी है।
🔶 दादू दयाल ने भर आँख रज्जब की तरफ देखा, आँख मिली ओर दादू जी ने कहा—
रज्जब तैं गज्जब किया, सिर पर बांधा मौर।
आया था हरी भजन कुं, करे नरक की ठौर
🔷 बस इतनी सी बात। देर न लगी, रज्जब घोड़े से नीचे कूद पड़ा, मौर उतार कर फेंक दिया, दादू के पैर पकड़ लिए। और कहा कि चेता दिया समय पर चेता दिया....और सदा के लिए दादू के हो गये छाया की तरह दादू दयाल के साथ रहे रज्जब, उनकी सेवा में !!वे चरण उसके लिए सब कुछ हो गये। उन चरणों में उसने सब पा लिया। अद्भुत प्रेमी रज्जब। जब दादू दयाल अंतर्धान हो गये।
🔶 जब उन्होंने शरीर छोड़ा, तो तुम चकित हो जाओगे…..शिष्य हो तो ऐसा हो। रज्जब ने आँख बंद कर लीं। तो फिर कभी आँख नहीं खोली।
🔷 कई वर्षों तक रज्जब जिंदा रहे , दादू दयाल के मरने के बाद। लेकिन कभी आँख नहीं खोली। लोगों ने लाख समझाया ये बात ठीक नहीं है। लोग कहते कि आंखे क्यों नहीं खोलते??? तो रज्जब कहते देखने योग्य जो था उसे देख लिया, अब देखने को क्या है? जो दर्शनीय था, उसका दर्शन कर लिया। उन आंखें में पूर्णता का सौंदर्य देख लिया। अब देखने योग्य क्या है इस संसार में अब आँख का काम खत्म हो गया। क्या करना खोल कर, क्या देखना है।
🔶 रज्जब तो कोहिनूर थे। जब बूंद सागर में गिरती है तो सागर हो जाती है।
🔶 यह मौका ठीका मौका है। लोहा जब गर्म हो तब चोट करनी चाहिए। एक तरह से देखो तो यह मौका एक दम ठीक था कि अचानक घोड़े के पास एक आदमी आया उसका पहनाव बड़ा अजीब था। कोई फक्कड़ दिखाई दे रहा था। बारात के सामने आ कर खड़ा हो गया। और उसने गौर से रज्जब को देखा। आँख से आँख मिली। वे चार आंखें संयुक्त हो गयी। उस क्षण में क्रांति घटी।
🔷 वह आदमी रज्जब के होने वाला गुरु थे—-- और जो कहा दादू दयाल जी ने वे शब्द बड़े अद्भुत है। उन छोटे से शब्दों में सारी क्रांति छिपी है।
🔶 दादू दयाल ने भर आँख रज्जब की तरफ देखा, आँख मिली ओर दादू जी ने कहा—
रज्जब तैं गज्जब किया, सिर पर बांधा मौर।
आया था हरी भजन कुं, करे नरक की ठौर
🔷 बस इतनी सी बात। देर न लगी, रज्जब घोड़े से नीचे कूद पड़ा, मौर उतार कर फेंक दिया, दादू के पैर पकड़ लिए। और कहा कि चेता दिया समय पर चेता दिया....और सदा के लिए दादू के हो गये छाया की तरह दादू दयाल के साथ रहे रज्जब, उनकी सेवा में !!वे चरण उसके लिए सब कुछ हो गये। उन चरणों में उसने सब पा लिया। अद्भुत प्रेमी रज्जब। जब दादू दयाल अंतर्धान हो गये।
🔶 जब उन्होंने शरीर छोड़ा, तो तुम चकित हो जाओगे…..शिष्य हो तो ऐसा हो। रज्जब ने आँख बंद कर लीं। तो फिर कभी आँख नहीं खोली।
🔷 कई वर्षों तक रज्जब जिंदा रहे , दादू दयाल के मरने के बाद। लेकिन कभी आँख नहीं खोली। लोगों ने लाख समझाया ये बात ठीक नहीं है। लोग कहते कि आंखे क्यों नहीं खोलते??? तो रज्जब कहते देखने योग्य जो था उसे देख लिया, अब देखने को क्या है? जो दर्शनीय था, उसका दर्शन कर लिया। उन आंखें में पूर्णता का सौंदर्य देख लिया। अब देखने योग्य क्या है इस संसार में अब आँख का काम खत्म हो गया। क्या करना खोल कर, क्या देखना है।
🔶 रज्जब तो कोहिनूर थे। जब बूंद सागर में गिरती है तो सागर हो जाती है।