रविवार, 7 मई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 7 May 2023

🔵अहंकार  एक विषैले सर्प की तरह  अंतःकरण में ही छिपा बैठा रहता है और अवसर पाते ही आघात कर देता हे। इसके दंश से मनुष्य की सद्बुद्धि मूर्छित हो जाती है और तब वह न करने योग्य काम करता हुआ अपने आपको आपत्तियों में डाल लेता है। अहंकार एक नहीं, हजारों आपत्तियों की मूल है।

🔴धर्म की स्थापना में राजनीति का सहयोग आवश्यक है और राजनीति के मदोन्मत्त हाथी पर धर्म का अंकुश रहना चाहिए। दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं, वरन् पूरक हैं। दोनों में उपेक्षा या असहयोग की प्रवृत्ति नहीं, वरन् घनिष्ठता एवं परिपोषण का तारतम्य जुड़ा रहना चाहिए।

🔵 मनुष्य अपना शिल्पी आप है। वह स्वयं ही आपना निर्माण करता है। आत्म तत्त्व की रक्षा ही सर्वोत्कृष्ट निर्माण माना गया है। इस निर्माण के लिए मनुष्य को सत्य तथा वास्तविक नीति का अवलम्बन करना चाहिए। सत्य मानव जीवन की सफलता के लिए सर्वोत्तम नीति है। इसको अपनाकर चलने वाले किसी भी दिशा और किसी भी क्षेत्र में अपना स्थान बनाकर अंत में परम पद के अधिकारी बनते हैं।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 जीवन संग्राम की तैयारी कीजिए (भाग 1)

मनुष्य का बचपन सावन की हरियाली है। उसमें चिंता नहीं, विकार नहीं और कर्त्तव्य का बंधन भी नहीं। बचपन का अंत मानो फूलों की सेज पर शयन करने के आनन्द की समाप्ति है। युवावस्था आते ही- मैं क्या बनूँगा?- यह एक प्रश्न दिन-रात प्रत्येक युवक की आँखों के सामने घूमा करता है। उसके माता-पिता और अभिभावकों के आगे यह समस्या आ जाती है कि- हम उसको क्या बनाये? युवावस्था को ‘मस्ती’ जैसे शब्दों की व्याख्या करना एक भयानक भूल है- संसार के निष्ठुर सत्य का सामना इसी समय करना पड़ता है। युवावस्था एक संग्राम है और युवक की एक भूल असफलता का कारण बन सकती है। युवावस्था शतरंज के खेल की भाँति ‘खेल’ कही जा सकती है पर यह याद रखना चाहिए कि एक गलत चाल से ही ‘जान’ का खतरा भी पैदा हो जाता है।

सम्भव है इस बात की गम्भीरता का अनुभव लक्ष्मी के कुछ वरद पुत्र न कर सकें। उनका ऐसा करना कुछ अनुचित भी नहीं मगर साधारण करोड़ों युवकों के लिए इसके महत्व को हृदयंगम कर लेना अति आवश्यक है। संग्राम में उतरने के पूर्व युद्ध कौशल के तत्वों की जानकारी आने वाली पराजय को विजय बना सकती है।

एक नवयुवक साहसी व्यक्ति को अपनी सफलता के लिए अपने शरीर और मन के स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए वह जान लेना जरूरी है कि वह जितना बड़ा बोझ अपने कंधों पर उठाने जा रहा है, उसके ढोने की शक्ति उसकी है या नहीं। बोझा ढोने में मनुष्य की लगन बड़ी सहायक होती है। चींटी अपने से बीसियों गुना भार उठा ले जाती है, क्योंकि उसमें सच्ची लगन है और अध्यवसाय है। वकील बनने की क्षमता रखने वाला, यदि रसायन शास्त्री बनने का प्रयत्न करे, तो इसे अपनी प्रतिभा का नष्ट करना ही कह सकते हैं।

📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1949 पृष्ठ 13


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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...