🔵अहंकार एक विषैले सर्प की तरह अंतःकरण में ही छिपा बैठा रहता है और अवसर पाते ही आघात कर देता हे। इसके दंश से मनुष्य की सद्बुद्धि मूर्छित हो जाती है और तब वह न करने योग्य काम करता हुआ अपने आपको आपत्तियों में डाल लेता है। अहंकार एक नहीं, हजारों आपत्तियों की मूल है।
🔴धर्म की स्थापना में राजनीति का सहयोग आवश्यक है और राजनीति के मदोन्मत्त हाथी पर धर्म का अंकुश रहना चाहिए। दोनों एक दूसरे के विरोधी नहीं, वरन् पूरक हैं। दोनों में उपेक्षा या असहयोग की प्रवृत्ति नहीं, वरन् घनिष्ठता एवं परिपोषण का तारतम्य जुड़ा रहना चाहिए।
🔵 मनुष्य अपना शिल्पी आप है। वह स्वयं ही आपना निर्माण करता है। आत्म तत्त्व की रक्षा ही सर्वोत्कृष्ट निर्माण माना गया है। इस निर्माण के लिए मनुष्य को सत्य तथा वास्तविक नीति का अवलम्बन करना चाहिए। सत्य मानव जीवन की सफलता के लिए सर्वोत्तम नीति है। इसको अपनाकर चलने वाले किसी भी दिशा और किसी भी क्षेत्र में अपना स्थान बनाकर अंत में परम पद के अधिकारी बनते हैं।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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