शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2019
👉 शुक्राना करने का फल
रूप सिंह बाबा ने अपने गुरु अंगद देव जी की बहुत सेवा की। 20 साल सेवा करते हुए बीत गए। गुरु रूप सिंह जी पर प्रसन्न हुए और कहा मांगो जो माँगना है। रूप सिंह जी बोले गुरुदेव मुझे तो मांगने ही नहीं आता। गुरु के बहुत कहने पर रूप सिंह जी बोले मुझे एक दिन का वक़्त दो घरवाले से पूछ्के कल बताता हु। घर जाकर माँ से पुछा तो माँ बोली जमीन माँग ले।
मन नहीं माना। बीवी से पुछा तो बोली इतनी गरीबी है पैसे मांग लो। फिर भी मन नहीं माना।
छोटी बिटिया थी उनको उसने बोला पिताजी गुरु ने जब कहा है कि मांगो तो कोई छोटी मोटी चीज़ न मांग लेना। इतनी छोटी बेटी की बात सुन के रूप सिंह जी बोले कल तू ही साथ चल गुरु से तू ही मांग लेना।
अगले दिन दोनो गुरु के पास गए। रूप सिंह जी बोले गुरुदेव मेरी बेटी आपसे मांगेगी मेरी जगह।
वो नन्ही बेटी बहुत समझदार थी। रूप सिंह जी इतने गरीब थे के घर के सारे लोग दिन में एक वक़्त का खाना ही खाते। इतनी तकलीफ होने के बावजूद भी उस नन्ही बेटी ने गुरु से कहा गुरुदेव मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप के हम लोगो पे बहुत एहसान है। आपकी बड़ी रहमत है। बस मुझे एक ही बात चाहिए कि आज हम दिन में एक बार ही खाना खाते है। कभी आगे एसा वक़्त आये के हमे चार पांच दिन में भी अगर एक बार खाए तब भी हमारे मुख से शुक्राना ही निकले। कभी शिकायत ना करे।
शुकर करने की दान दो।
इस बात से गुरु महाराज इतने प्रसन्न हुए के बोले जा बेटा अब तेरे घर के भंडार सदा भरे रहेंगे। तू क्या तेरे घर पे जो आएगा वोह भी खाली हाथ नहीं जाएगा।
तो यह है शुकर करने का फल।
सदा शुकर करते रहे।
सुख में सिमरन।
दुःख में अरदास।
हर वेले शुकराना।
मन नहीं माना। बीवी से पुछा तो बोली इतनी गरीबी है पैसे मांग लो। फिर भी मन नहीं माना।
छोटी बिटिया थी उनको उसने बोला पिताजी गुरु ने जब कहा है कि मांगो तो कोई छोटी मोटी चीज़ न मांग लेना। इतनी छोटी बेटी की बात सुन के रूप सिंह जी बोले कल तू ही साथ चल गुरु से तू ही मांग लेना।
अगले दिन दोनो गुरु के पास गए। रूप सिंह जी बोले गुरुदेव मेरी बेटी आपसे मांगेगी मेरी जगह।
वो नन्ही बेटी बहुत समझदार थी। रूप सिंह जी इतने गरीब थे के घर के सारे लोग दिन में एक वक़्त का खाना ही खाते। इतनी तकलीफ होने के बावजूद भी उस नन्ही बेटी ने गुरु से कहा गुरुदेव मुझे कुछ नहीं चाहिए। आप के हम लोगो पे बहुत एहसान है। आपकी बड़ी रहमत है। बस मुझे एक ही बात चाहिए कि आज हम दिन में एक बार ही खाना खाते है। कभी आगे एसा वक़्त आये के हमे चार पांच दिन में भी अगर एक बार खाए तब भी हमारे मुख से शुक्राना ही निकले। कभी शिकायत ना करे।
शुकर करने की दान दो।
इस बात से गुरु महाराज इतने प्रसन्न हुए के बोले जा बेटा अब तेरे घर के भंडार सदा भरे रहेंगे। तू क्या तेरे घर पे जो आएगा वोह भी खाली हाथ नहीं जाएगा।
तो यह है शुकर करने का फल।
सदा शुकर करते रहे।
सुख में सिमरन।
दुःख में अरदास।
हर वेले शुकराना।
👉 मंदबुद्धि से प्रख्यात बुद्धिमान
मस्तिष्क की स्मरण शक्ति और बुद्धि प्रखरता बढ़ाने में इंग्लैंड के डब्ल्यू.जे.एम. बाटन की कोई सानी नहीं रखता। इंग्लैंड के केंट कस्बे में जन्मा बाटन आरंभ में इतना मंदबुद्धि था कि उसे पढ़ी हुई कोई बात याद नहीं रहती। कमजोर भी काफी था और कमजोरी, बीमारी के कारण उसे 11 वर्ष की आयु में ही स्कूल छोड़ देना पड़ा। अब वह इधर-उधर की बातें याद कर लेता और उनका स्थान, समय, घटना क्रम आदि का ठीक-ठीक विवरण बताकर लोगों पर अपनी स्मरण शक्ति का रौबद्धि के विकास की क्या कल्पना या आशा की जा सकती थी। लेकिन इस स्थिति में भी बाटन ने अपने पिता की प्रेरणा से मनोरंजन का एक शौक बढ़ाया जमाता।
धीरे-धीरे उसने अपनी स्मरण शक्ति को इतना अधिक विकसित कर लिया कि वह चलता फिरता विश्वकोश समझा जाने लगा। यह अभ्यास उसने इस लक्ष्य के प्रति गाँठ-बाँधकर किया कि उसे अपनी याददास्त को बढ़ाना है। पूरी तत्परता के साथ इस दिशा में लगे रहने के बाद उसने अपनी याददास्त को इतना तेज कर लिया कि उसकी ख्याति चारों दिशाओं में फैलने लगी।
एक बार उससे यूरोप के प्रमुख ज्योतिषियों, राजनीतिज्ञों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने ऐसी घटनाओं के विवरण पूछे जो विस्मृति के गर्त में गुम गए ही प्रतीत होते थे, पर उसने पूछी गई सारी घटनाओं को सिलसिलेवार सन्, तारीख सहित इस प्रकार बताया कि पूछने वालों को आश्चर्य चकित रह जाना पड़ा। बाटन अपने समय में इतना प्रसिद्ध हो गया था कि उसकी मृत्यु के बाद अमेरिका के एक स्वास्थ्य संस्थान ने उसका सिर 10 हजार डालर में खरीदा ताकि उसकी मस्तिष्कीय विलक्षणताओं का रहस्य मालूम किया जा सके।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, पृष्ठ 20
धीरे-धीरे उसने अपनी स्मरण शक्ति को इतना अधिक विकसित कर लिया कि वह चलता फिरता विश्वकोश समझा जाने लगा। यह अभ्यास उसने इस लक्ष्य के प्रति गाँठ-बाँधकर किया कि उसे अपनी याददास्त को बढ़ाना है। पूरी तत्परता के साथ इस दिशा में लगे रहने के बाद उसने अपनी याददास्त को इतना तेज कर लिया कि उसकी ख्याति चारों दिशाओं में फैलने लगी।
एक बार उससे यूरोप के प्रमुख ज्योतिषियों, राजनीतिज्ञों और प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने ऐसी घटनाओं के विवरण पूछे जो विस्मृति के गर्त में गुम गए ही प्रतीत होते थे, पर उसने पूछी गई सारी घटनाओं को सिलसिलेवार सन्, तारीख सहित इस प्रकार बताया कि पूछने वालों को आश्चर्य चकित रह जाना पड़ा। बाटन अपने समय में इतना प्रसिद्ध हो गया था कि उसकी मृत्यु के बाद अमेरिका के एक स्वास्थ्य संस्थान ने उसका सिर 10 हजार डालर में खरीदा ताकि उसकी मस्तिष्कीय विलक्षणताओं का रहस्य मालूम किया जा सके।
✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 बड़े आदमी नहीं महामानव बनें, पृष्ठ 20
👉 आध्यात्मिक तेज का प्रज्वलित पुंज होता है चिकित्सक (भाग ७८)
👉 अचेतन की चिकित्सा करने वाला एक विशिष्ट सैनिटोरियम
सूक्ष्म में विद्यमान सद्गुरु की सत्ता के संकेतों के अनुसार संचालित ऐसों की साधना अदृश्य की प्राण ऊर्जा को सधन करती है। युगऋषि के महाप्राणों में विलीन होने वाले उनके प्रण दृश्य में प्रेरणा बनकर उभरते हैं। इन प्रेरणाओं से विचार तंत्र प्रशिक्षित होता है और व्यवहार रूपान्तरित। मानव जीवन में शान्तिकुञ्ज की अदृश्य संवेदनाएँ एवं दृश्य क्रियाकलाप चौंकाने वाले प्रभाव उत्पन्न करते हैं। ये प्रभाव किसी एक की विचार संकल्पना नहीं, बल्कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय के अनेकों शोधार्थियों के अनुसंधान का निष्कर्ष है।
पिछले सत्र में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मानव चेतना व योग विज्ञान विभाग एवं नैदानिक मनोविज्ञान विभाग के विद्यार्थियों ने अपने लघुशोध अध्ययन के लिए शान्तिकुञ्ज को विषय चुना था। इन शोध करने वाले छात्र- छात्राओं की संख्या ७५ थी और इनमें से आधे से अधिक छात्र- छात्राओं के शोध की विषयवस्तु यही थी कि शान्तिकुञ्ज किस भाँति आध्यात्मिक चिकित्सा का कार्य कर रहा है। यहाँ का वातावरण, यहाँ का प्रशिक्षण, यहाँ की जीवनशैली किस भाँति यहाँ आने वाले लोगों की शारीरिक व मानसिक व्याधियों का शमन करते हैं।
इसके लिए शोध छात्र- छात्राओं ने शान्तिकुञ्ज के आध्यात्मिक अनुभूतियों के काव्य को अध्यात्म के वैज्ञानिक प्रयोगों में रूपान्तरित किया। इस रूपान्तरण में उन्होंने शान्तिकुञ्ज की अदृश्य एवं दृश्य गतिविधियों के निम्र आयामों की व्याख्या की। इन शोध विद्यार्थियों ने इस आध्यात्मिक चिकित्सा केन्द्र में संवेदित अदृश्य के दिव्य स्पन्दनों को अभिप्रेरक कारकों (मोटीवेशन फैक्टर्स) के रूप में स्वीकारा। उन्होंने यहाँ स्वयं रहकर अनुभव किया कि शान्तिकुञ्ज में प्रवेश करते ही कोई दिव्य प्रेरणा हृदय में हिलोरे की तरह उठती है और आदर्शवादी दिशा में कुछ विशेष करने के लिए प्रेरित करती है। इनके अनुसार इन प्रेरणाओं में इतना प्राण बल होता है कि वे अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाती हैं।
इसी के साथ इन शोधार्थियों ने यह कहा कि शान्तिकुञ्ज के दृश्य क्रियाकलापों में सर्वप्रथम यहाँ चलने वाला प्रशिक्षण है। जिसे वैज्ञानिक भाषा ‘काग्रीटिव रिस्ट्रक्चरिंग यानि कि बोध तंत्र का पुनर्निर्माण कह सकते हैं। व्यक्ति के जीवन की प्रधान समस्या है- विचार तंत्र की गड़बड़ी, जिसके कारण ही उसके जीवन में शारीरिक- मानसिक परेशानियाँ आ खड़ी हुई हैं। इन शोध विद्यार्थियों ने अपने शोध कार्यों में यह अनुभव किया है। शान्तिकुञ्ज के प्रशिक्षण के द्वारा सफलतापूर्वक काग्नीटिव रिस्ट्रक्चरिंग होती है। इससे चिंतन को नयी दृष्टि मिलती है और यहाँ आने वालों को मनोरोगों से छुटकारा मिलता है।
शान्तिकुञ्ज के क्रियाकलापों का अगला आयाम यहाँ की जीवन शैली है। जिसे वैज्ञानिक भाषा में ‘बिहैवियरल मॉडीफिकेशन’ या व्यावहारिक बदलाव की प्रक्रिया कहा जा सकता है। यह सच है कि व्यावहारिक तकनीकों द्वारा मनुष्य को अनेकों रोगों से मुक्त किया जा सकता है। शान्तिकुञ्ज की जीवनशैली के ये चमत्कार शोध प्रयासों के निष्कर्ष के रूप में सामने आये। इन निष्कर्षों में पाया यही गया है कि यहाँ नौ दिवसीय एवं एक मासीय में आने वाले लोग असाधारण रूप से अपने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को उपलब्ध करते हैं। एक- दो नहीं, दो दर्जन से भी अधिक शोध निष्कर्षों से आध्यात्मिक चिकित्सा केन्द्र के रूप में शान्तिकुञ्ज की सफलता प्रभावित हुई है और यह सब इस महान् ऊर्जा केन्द्र के संस्थापक आध्यात्मिक चिकित्सा के परमाचार्य युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव की सक्रिय तपश्चेतना का सुफल है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ १०९
सूक्ष्म में विद्यमान सद्गुरु की सत्ता के संकेतों के अनुसार संचालित ऐसों की साधना अदृश्य की प्राण ऊर्जा को सधन करती है। युगऋषि के महाप्राणों में विलीन होने वाले उनके प्रण दृश्य में प्रेरणा बनकर उभरते हैं। इन प्रेरणाओं से विचार तंत्र प्रशिक्षित होता है और व्यवहार रूपान्तरित। मानव जीवन में शान्तिकुञ्ज की अदृश्य संवेदनाएँ एवं दृश्य क्रियाकलाप चौंकाने वाले प्रभाव उत्पन्न करते हैं। ये प्रभाव किसी एक की विचार संकल्पना नहीं, बल्कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय के अनेकों शोधार्थियों के अनुसंधान का निष्कर्ष है।
पिछले सत्र में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मानव चेतना व योग विज्ञान विभाग एवं नैदानिक मनोविज्ञान विभाग के विद्यार्थियों ने अपने लघुशोध अध्ययन के लिए शान्तिकुञ्ज को विषय चुना था। इन शोध करने वाले छात्र- छात्राओं की संख्या ७५ थी और इनमें से आधे से अधिक छात्र- छात्राओं के शोध की विषयवस्तु यही थी कि शान्तिकुञ्ज किस भाँति आध्यात्मिक चिकित्सा का कार्य कर रहा है। यहाँ का वातावरण, यहाँ का प्रशिक्षण, यहाँ की जीवनशैली किस भाँति यहाँ आने वाले लोगों की शारीरिक व मानसिक व्याधियों का शमन करते हैं।
इसके लिए शोध छात्र- छात्राओं ने शान्तिकुञ्ज के आध्यात्मिक अनुभूतियों के काव्य को अध्यात्म के वैज्ञानिक प्रयोगों में रूपान्तरित किया। इस रूपान्तरण में उन्होंने शान्तिकुञ्ज की अदृश्य एवं दृश्य गतिविधियों के निम्र आयामों की व्याख्या की। इन शोध विद्यार्थियों ने इस आध्यात्मिक चिकित्सा केन्द्र में संवेदित अदृश्य के दिव्य स्पन्दनों को अभिप्रेरक कारकों (मोटीवेशन फैक्टर्स) के रूप में स्वीकारा। उन्होंने यहाँ स्वयं रहकर अनुभव किया कि शान्तिकुञ्ज में प्रवेश करते ही कोई दिव्य प्रेरणा हृदय में हिलोरे की तरह उठती है और आदर्शवादी दिशा में कुछ विशेष करने के लिए प्रेरित करती है। इनके अनुसार इन प्रेरणाओं में इतना प्राण बल होता है कि वे अभिवृत्तियों में परिवर्तन लाती हैं।
इसी के साथ इन शोधार्थियों ने यह कहा कि शान्तिकुञ्ज के दृश्य क्रियाकलापों में सर्वप्रथम यहाँ चलने वाला प्रशिक्षण है। जिसे वैज्ञानिक भाषा ‘काग्रीटिव रिस्ट्रक्चरिंग यानि कि बोध तंत्र का पुनर्निर्माण कह सकते हैं। व्यक्ति के जीवन की प्रधान समस्या है- विचार तंत्र की गड़बड़ी, जिसके कारण ही उसके जीवन में शारीरिक- मानसिक परेशानियाँ आ खड़ी हुई हैं। इन शोध विद्यार्थियों ने अपने शोध कार्यों में यह अनुभव किया है। शान्तिकुञ्ज के प्रशिक्षण के द्वारा सफलतापूर्वक काग्नीटिव रिस्ट्रक्चरिंग होती है। इससे चिंतन को नयी दृष्टि मिलती है और यहाँ आने वालों को मनोरोगों से छुटकारा मिलता है।
शान्तिकुञ्ज के क्रियाकलापों का अगला आयाम यहाँ की जीवन शैली है। जिसे वैज्ञानिक भाषा में ‘बिहैवियरल मॉडीफिकेशन’ या व्यावहारिक बदलाव की प्रक्रिया कहा जा सकता है। यह सच है कि व्यावहारिक तकनीकों द्वारा मनुष्य को अनेकों रोगों से मुक्त किया जा सकता है। शान्तिकुञ्ज की जीवनशैली के ये चमत्कार शोध प्रयासों के निष्कर्ष के रूप में सामने आये। इन निष्कर्षों में पाया यही गया है कि यहाँ नौ दिवसीय एवं एक मासीय में आने वाले लोग असाधारण रूप से अपने शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य को उपलब्ध करते हैं। एक- दो नहीं, दो दर्जन से भी अधिक शोध निष्कर्षों से आध्यात्मिक चिकित्सा केन्द्र के रूप में शान्तिकुञ्ज की सफलता प्रभावित हुई है और यह सब इस महान् ऊर्जा केन्द्र के संस्थापक आध्यात्मिक चिकित्सा के परमाचार्य युगऋषि परम पूज्य गुरुदेव की सक्रिय तपश्चेतना का सुफल है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ १०९
👉 रत्नों से श्रेष्ठ चक्का:-
एक राजा ने महात्मा को अपने हीरे-मोतियों से भरा खजाना दिखाया। महात्मा ने पूछा- 'इन पत्थरों से आपको कितनी आय होती है? राजा ने कहा- आय नहीं होती बल्कि इनकी सुरक्षा पर व्यय होता है? महात्मा राजा को एक किसान की झोपड़ी में ले गया। वहाँ एक स्त्री चक्की से अनाज पीस रही थी। महात्मा ने उसकी ओर संकेत कर कहा- पत्थर तो चक्की भी है और तुम्हारे हीरे मोती भी। परन्तु इसका उपयोग होता है और यह नित्य पूरे परिवार का पोषण करने योग्य राशि दे देती है। तुम्हारे हीरे-मोती तो उपयोग हीन है। उन्हें यदि परमार्थ में खर्च करोगे तो सुरक्षा-व्यय तो बचा ही लोगे बदले में जन श्रद्धा, दैवी अनुदान अजस्र मात्रा में पाओगे।''
👉 तीन प्रकार के धनिक:-
एक बार एक भक्त ने नानक से पूछा आप कहते है कि सब पैसे वाले एक से नहीं होते। इसका क्या तात्पर्य है।' नानक बोले- 'उत्तम लोग वे है जो उपार्जन को सत्प्रयोजनों के निमित्त खर्च कर देते हैं। मध्यम श्रेणी के व्यक्ति वे है जो कमाते है, जमा करते हैं पर सदुपयोग करना भी जानते है। तीसरी श्रेणी उनकी है जो कमाते नहीं, कहीं से पा जाते है और उडा़ जाते हैं। ऐसे लोग संसार में पतन का कारण बनते है।
📖 प्रज्ञा पुराण भाग १ से
👉 तीन प्रकार के धनिक:-
एक बार एक भक्त ने नानक से पूछा आप कहते है कि सब पैसे वाले एक से नहीं होते। इसका क्या तात्पर्य है।' नानक बोले- 'उत्तम लोग वे है जो उपार्जन को सत्प्रयोजनों के निमित्त खर्च कर देते हैं। मध्यम श्रेणी के व्यक्ति वे है जो कमाते है, जमा करते हैं पर सदुपयोग करना भी जानते है। तीसरी श्रेणी उनकी है जो कमाते नहीं, कहीं से पा जाते है और उडा़ जाते हैं। ऐसे लोग संसार में पतन का कारण बनते है।
📖 प्रज्ञा पुराण भाग १ से
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