गुरुवार, 9 नवंबर 2017

👉 गाथा इस देश की, गाई विदेशियों ने (भाग 3)

🔶 विश्व के विविध विषयों के जब आँकड़े प्रस्तुत किये जाते हैं तो यह देखकर तीव्र वेदना होती है कि उनमें भारतवर्ष पिछड़ी श्रेणी में आता है। शिक्षा के क्षेत्र में हम सबसे कमजोर, भारतीयों की औसत आय संसार में सबसे कम, आरोग्य के नाम पर सबसे दुःखी, दुर्बल और रोगग्रस्त; आहार में सबसे कम कैलोरी वाला, निर्धनता में सबसे पहले दर्जे का। अवनति की कोई हद नहीं। कोई क्षेत्र नहीं छूटा जहाँ मात न खाई हो। क्या वह समृद्धि हम फिर से देख सकेंगे जिसका वर्णन प्रसिद्ध यूनानी विद्वान एरियन ने इस तरह किया है-

🔷 “जो लोग भारत से आकर यहाँ बसे थे वे कैसे थे? वे देवताओं के वंशज थे, उनके पास विपुल सोना था। वे रेशम के कामदार ऊनी दुशाले ओढ़ते थे। हाथी दाँत की वस्तुयें व्यवहार में लाते थे और बहुमूल्य रत्नों के हार पहनते थे।”

🔶 जो विध्वंसक विज्ञान और एटमी हथियार इन दिनों बन रहे हैं उनसे भी बड़ी शक्ति वाले आयुध यहाँ वैदिक युग में प्रयुक्त हुये हैं। सरस्वती की उपासना के साथ साथ शक्ति की भी समवेत उपासना इस देश में हुई है। अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर जो “अशनि” शब्द का प्रयोग हुआ है उसका अर्थ आजकल की भीमकाय तोपों जैसा ही है। प्रोफेसर विल्सन का कथन है—”गोलों का आविष्कार सबसे पहले भारत में हुआ था। यूरोप के संपर्क में आने के बहुत समय पहले उनका प्रयोग भारत में होता था।”

🔷 कर्नल रशब्रुक विलियम ने एक स्थान पर लिखा है—
“शीशे की गोलियाँ और बन्दूकों के प्रयोग का हाल विस्तार से यजुर्वेद में मिलता है। भारतवर्ष में तोपों और बन्दूकों का प्रयोग वैदिक काल से ही होता था।”
डफ महोदय लिखते हैं—”भारतीय विज्ञान इतना विस्तृत है कि यूरोपीय विज्ञान के सब अंग वहाँ मिलते हैं।”

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति 1965 अगस्त पृष्ठ 10
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1965/August/v1.10

👉 आज का सद्चिंतन 9 Nov 2017

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 9 Nov 2017


👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...