🔷 एक नगर का राजा जिसे ईश्वर ने सब कुछ दिया एक समृद्ध राज्य सुशील और गुणवती पत्नी, संस्कारी सन्तान सब कुछ था उसके पास पर फिर भी दुःखी का दुःखी रहता!
🔶 एक बार वो घुमते घुमते एक छोटे से गाँव मे पहुँचा जहाँ एक कुम्हार भगवान भोले बाबा के मन्दिर के बाहर मटकीया बेच रहा था और कुछ मटकीयों मे पानी भर रखा था और वही पर लेटे लेटे हरिभजन गा रहा था!
🔷 राजा वहाँ आया और भगवान भोले बाबा के दर्शन किये और कुम्हार के पास जाकर बैठा तो कुम्हार बैठा हुआ और उसने बड़े आदर से राजा को पानी पिलाया! राजा कुम्हार से कुछ प्रभावित हुआ और राजा ने सोचा की ये इतनी सी मटकीयों को बेच कर क्या कमाता होगा?
🔶 तो राजा ने पूछा क्यों भाई प्रजापति जी मेरे साथ नगर चलोगे तो प्रजापति ने कहा नगर चलकर क्या करूँगा राजाजी?
🔷 राजा - वहाँ चलना और वहाँ खुब मटकीया बनाना!
🔶 प्रजापति - फिर उन मटकीयों का क्या करूँगा?
🔷 राजा - अरे क्या करेगा? उन्हे बेचना खुब पैसा आयेगा तुम्हारे पास!
🔶 प्रजापति - फिर क्या करूँगा उस पैसे का?
🔷 राजा - अरे पैसे का क्या करेगा? अरे पैसा ही सबकुछ है!
🔶 प्रजापति - अच्छा राजन अब आप मुझे ये बताईये की उस पैसे से क्या करूँगा?
🔷 राजा - अरे फिर आराम से भगवान का भजन करना और फिर तुम आनन्द मे रहना!
🔶 प्रजापति - क्षमा करना हॆ राजन पर आप मुझे ये बताईये की अभी मै क्या कर रहा हुं और हाँ पुरी ईमानदारी से बताना! काफी सोच विचार किया राजा ने और मानो इस सवाल ने राजा को झकझोर दिया!
🔷 राजा - हाँ प्रजापति जी आप इस समय आराम से भगवान का भजन कर रहे हो और जहाँ तक मुझे दिख रहा है आप पुरे आनन्द मे हो!
🔶 प्रजापति - हाँ राजन यही तो मै आपसे कह रहा हुं की आनन्द पैसे से प्राप्त नही किया जा सकता है!
🔷 राजा - हॆ प्रजापति जी कृपया कर के आप मुझे ये बताने की कृपा करे की आनन्द की प्राप्ति कैसे होगी?
🔶 प्रजापति - बिल्कुल सावधान होकर सुनना और उस पर बहुत गहरा मंथन करना राजन! हाथों को उल्टा कर लिजिये!
🔷 राजा - वो कैसे?
🔶 प्रजापति - हॆ राजन मांगो मत देना सीखो और यदि आपने देना सिख लिया तो समझ लेना आपने आनन्द की राह पर कदम रख लिया! स्वार्थ को त्यागो परमार्थ को चुनो! हॆ राजन अधिकांशतः लोगो के दुःख का सबसे बड़ा कारण यही है की जो कुछ भी उसके पास है वो उसमे सुखी नही है और बस जो नही है उसे पाने के चक्कर मे दुःखी है! अरे भाई जो है उसमे खुश रहना सीख लो दुःख अपने आप चले जायेंगे और जो नही है क्यों उसके चक्कर मे दुःखी रहते हो!
🔷 आत्मसंतोष से बड़ा कोई सुख नही और जिसके पास सन्तोष रूपी धन है वही सबसे बड़ा सुखी है और वही आनन्द मे है और सही मायने मे वही राजा है!
🔶 एक बार वो घुमते घुमते एक छोटे से गाँव मे पहुँचा जहाँ एक कुम्हार भगवान भोले बाबा के मन्दिर के बाहर मटकीया बेच रहा था और कुछ मटकीयों मे पानी भर रखा था और वही पर लेटे लेटे हरिभजन गा रहा था!
🔷 राजा वहाँ आया और भगवान भोले बाबा के दर्शन किये और कुम्हार के पास जाकर बैठा तो कुम्हार बैठा हुआ और उसने बड़े आदर से राजा को पानी पिलाया! राजा कुम्हार से कुछ प्रभावित हुआ और राजा ने सोचा की ये इतनी सी मटकीयों को बेच कर क्या कमाता होगा?
🔶 तो राजा ने पूछा क्यों भाई प्रजापति जी मेरे साथ नगर चलोगे तो प्रजापति ने कहा नगर चलकर क्या करूँगा राजाजी?
🔷 राजा - वहाँ चलना और वहाँ खुब मटकीया बनाना!
🔶 प्रजापति - फिर उन मटकीयों का क्या करूँगा?
🔷 राजा - अरे क्या करेगा? उन्हे बेचना खुब पैसा आयेगा तुम्हारे पास!
🔶 प्रजापति - फिर क्या करूँगा उस पैसे का?
🔷 राजा - अरे पैसे का क्या करेगा? अरे पैसा ही सबकुछ है!
🔶 प्रजापति - अच्छा राजन अब आप मुझे ये बताईये की उस पैसे से क्या करूँगा?
🔷 राजा - अरे फिर आराम से भगवान का भजन करना और फिर तुम आनन्द मे रहना!
🔶 प्रजापति - क्षमा करना हॆ राजन पर आप मुझे ये बताईये की अभी मै क्या कर रहा हुं और हाँ पुरी ईमानदारी से बताना! काफी सोच विचार किया राजा ने और मानो इस सवाल ने राजा को झकझोर दिया!
🔷 राजा - हाँ प्रजापति जी आप इस समय आराम से भगवान का भजन कर रहे हो और जहाँ तक मुझे दिख रहा है आप पुरे आनन्द मे हो!
🔶 प्रजापति - हाँ राजन यही तो मै आपसे कह रहा हुं की आनन्द पैसे से प्राप्त नही किया जा सकता है!
🔷 राजा - हॆ प्रजापति जी कृपया कर के आप मुझे ये बताने की कृपा करे की आनन्द की प्राप्ति कैसे होगी?
🔶 प्रजापति - बिल्कुल सावधान होकर सुनना और उस पर बहुत गहरा मंथन करना राजन! हाथों को उल्टा कर लिजिये!
🔷 राजा - वो कैसे?
🔶 प्रजापति - हॆ राजन मांगो मत देना सीखो और यदि आपने देना सिख लिया तो समझ लेना आपने आनन्द की राह पर कदम रख लिया! स्वार्थ को त्यागो परमार्थ को चुनो! हॆ राजन अधिकांशतः लोगो के दुःख का सबसे बड़ा कारण यही है की जो कुछ भी उसके पास है वो उसमे सुखी नही है और बस जो नही है उसे पाने के चक्कर मे दुःखी है! अरे भाई जो है उसमे खुश रहना सीख लो दुःख अपने आप चले जायेंगे और जो नही है क्यों उसके चक्कर मे दुःखी रहते हो!
🔷 आत्मसंतोष से बड़ा कोई सुख नही और जिसके पास सन्तोष रूपी धन है वही सबसे बड़ा सुखी है और वही आनन्द मे है और सही मायने मे वही राजा है!