शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

👉 कर्मन की गति न्यारी

एक कारोबारी सेठ सुबह सुबह जल्दबाजी में घर से बाहर निकल कर ऑफिस जाने के लिए कार का दरवाजा खोल कर जैसे ही बैठने जाता है, उसका पाँव गाड़ी के नीचे बैठे कुत्ते की पूँछ पर पड़ जाता है। दर्द से बिलबिलाकर अचानक हुए इस वार को घात समझ वह कुत्ता उसे जोर से काट खाता है। गुस्से में आकर सेठ आसपास पड़े 10-12 पत्थर कुत्ते की ओर फेंक मारता है पर भाग्य से एक भी पत्थर उसे नहीं लगता है और वह कुत्ता भाग जाता है।

सेठजी अपना इलाज करवाकर ऑफिस पहुँचते हैं जहां उन्होंने अपने मातहत मैनेजर्स की बैठक बुलाई होती है। यहाँ अनचाहे ही कुत्ते पर आया उनका सारा गुस्सा उन बिचारे प्रबन्धकों पर उतर जाता है। वे प्रबन्धक भी मीटिंग से बाहर आते ही एक दूसरे पर भड़क जाते हैं - बॉस ने बगैर किसी वाजिब कारण के डांट जो दिया था। अब दिन भर वे लोग ऑफिस में अपने नीचे काम करने वालों पर अपनी खीज निकलते हैं – ऐसे करते करते आखिरकार सभी का गुस्सा अंत में ऑफिस के चपरासी पर निकलता है जो मन ही मन बड़बड़ाते हुए भुनभुनाते हुए घर चला जाता है।

घंटी की आवाज़ सुन कर उसकी पत्नी दरवाजा खोलती है और हमेशा की तरह पूछती है “आज फिर देर हो गई आने में.... वो लगभग चीखते हुए कहता है “मै क्या ऑफिस कंचे खेलने जाता हूँ? काम करता हूँ, दिमाग मत खराब करो मेरा, पहले से ही पका हुआ हूँ, चलो खाना परोसो” अब गुस्सा होने की बारी पत्नी की थी, रसोई मे काम करते वक़्त बीच बीच में आने पर वह पति का गुस्सा अपने बच्चे पर उतारते हुए उसे जमा के तीन चार थप्पड़ रसीद कर देती है। अब बिचारा बच्चा जाए तो जाये कहाँ, घर का ऐसा बिगड़ा माहौल देख, बिना कारण अपनी माँ की मार खाकर वह रोते रोते बाहर का रुख करता है, एक पत्थर उठाता है और सामने जा रहे कुत्ते को पूरी ताकत से दे मारता है। कुत्ता फिर बिलबिलाता है।

सन्तमत विचार-दोस्तों ये वही सुबह वाला कुत्ता था!! अरे भई उसको उसके काटे के बदले ये पत्थर तो पड़ना ही था केवल समय का फेर था और सेठ जी की जगह इस बच्चे से पड़ना था!! उसका कार्मिक चक्र तो पूरा होना ही था ना!! इसलिए मित्र यदि कोई आपको काट खाये, चोट पहुंचाए और आप उसका कुछ ना कर पाएँ, तो निश्चिंत रहें, उसे चोट तो लग के ही रहेगी, बिलकुल लगेगी, जो आपको चोट पहुंचाएगा, उस का तो चोटिल होना निश्चित ही है, कब होगा किसके हाथों होगा ये केवल ऊपरवाला जानता है पर होगा ज़रूर, अरे भई ये तो सृष्टी का नियम है !!!

समय नहीं मिलता कहना छोड़े
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https://youtu.be/iLsccN62T6s

👉 आत्मचिंतन के क्षण 2 Feb 2019

◾ जीवन की सर्वाेपरि सफलता इसी बात में है कि मनुष्य अपने लिए सम्माननीय स्थिति प्राप्त करे। संसार से धनी, निर्बल, विद्वान्, मूर्ख, बलवान् सभी को एक दिन जाना पड़ता है। वह जो कुछ धन, दौलत, वैभव-विभूति, सुख-दुःख उपार्जित करता है, सब यहीं इसी संसार में छूट जाता है। साथ यदि कुछ जाता है, तो जाती है वह शांति-अशांति, सुख-दुःख, श्रेष्ठता-निकृष्टता जो मनुष्य के कर्मों के अनुसार आत्मा में संचित होती रहती है।

◾ भाग्यवादी वह है, जो स्वयं अपने में विश्वास नहीं करता। वह सदा दूसरों की सलाह का ही मुहताज बना रहता है। जैसा उचित-अनुचित दूसरे लोग सुझा देते हैं, वह वैसा ही मान बैठता है। अपनी मौलिकता और अपने विवेक को वह काम में नहीं लेता। जैसा किसी दूसरे ने उसे दे दिया, वह वैसा ही स्वीकार कर लेता है।

◾ किसी व्यक्ति की उपासना सच्ची है या झूठी, उसकी एक ही परीक्षा है कि साधक की अन्तरात्मा में संतोष, प्रफुल्लता, आशा, विश्वास और सद्भावना का कितनी मात्रा में अवतरण हुआ? यदि यह गुण नहीं आये हैं और हीन वृत्तियाँ उसे घेरे हुए हैं, तो समझना चाहिए कि वह व्यक्ति पूजा-पाठ कितना ही करता हो, उपासना से दूर ही है।

◾ बड़े-बड़े उपदेश, व्याख्यान, भाषण आदि का समाज पर प्रभाव अवश्य पड़ता है, किन्तु वह क्षणिक होता है।  किसी भी भावी क्रान्ति, सुधार, रचनात्मक कार्यक्रम के लिए प्रारंभ में विचार ही देने पड़ते हैं, किन्तु सक्रियता और व्यवहार का संस्पर्श पाये बिना उनका स्थायी और मूर्त रूप नहीं देखा जा सकता।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

जीवन का उद्देश्य क्या है l डॉ चिन्मय पंड्या
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https://youtu.be/ESS7tLe3stM

👉 साहस अपनाया- कृतकृत्य बने

भगतसिंह और सुभाष जैसा यश मिलने की सम्भावना हो तो उस मार्ग पर चलने के लिए हजारों आतुर देखे जाते हैं। समझाया जाय तो कितने ही बिना उतराई लिए पार उतारने की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं। पटेल बनने के लिए कोई भी अपनी वकालत छोड़ सकता है। पर दुर्भाग्य इतना ही रहता है कि समय को पहचानना और उपयुक्त अवसर पर साहस जुटाना सभी लोगों से बन ही नहीं पड़ता। वे जागरूक ही है जो महत्वपूर्ण निर्णय करते, साहसिकता अपनाते और अविस्मरणीय महामानवों की पदवी प्राप्त करते हैं। ऐसे सौभाग्यों में श्रेयार्थी का विवेक ही प्रमुख होता है।

महान् बनने के लिए जहाँ आत्म- साधना और आत्म- विकास की तपश्चर्या को आवश्यक बताया गया है वहाँ इस ओर भी संकेत किया गया है कि उसकी प्रखरता से सम्पर्क साधने और लाभान्वित होने का अवसर भी न चूका जाय। यों ऐसे अवसर कभी- कभी ही आते और किसी भाग्यशाली को ही मिलते है। किन्तु कदाचित् वैसा सुयोग बैठ जाय तो ऐसा अप्रत्याशित लाभ मिलता है जिसे लाटरी खुलने और देखते- देखते मालदार बन- जाने के समतुल्य कहा जा सके।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग १

👉 आज का सद्चिंतन 2 Feb 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 2 Feb 2019

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...