विचार से भी परे
पर ब्रह्म को विचार इसलिये कहा गया कि वह सूक्ष्म है अन्यथा शास्त्रकारों ने उसे अचिंत्य, अगोचर और अगम्य कहा गया है। उसकी व्याख्या विवेचना में तत्व वेत्ताओं ने कुछ चर्चा की है पर साथ ही नेति नेति कह कर अपने ज्ञान परिधि की स्वल्पता स्वीकार कर ली है। वस्तुतः समग्र ब्रह्म का विवेचन बुद्धि विज्ञान एवं साधनों के माध्यम से सम्भव हो ही नहीं सकता। तब प्रश्न उत्पन्न होता है कि ईश्वर प्राप्ति की—ईश्वर दर्शन की—जो चर्चाएं होती रहती हैं, वे क्या हैं? यहां इतना ही कहा जा सकता है कि जीव और ब्रह्म की मिलन पृष्ठ भूमि के रूप में जिस ईश्वर की विवेचना होती है उसी का साक्षात्कार एवं अनुभव सम्भव है।
आकाश और धरती जहां मिलते हैं उसे अन्तरिक्ष कहते हैं। अन्तरिक्ष का सुहावना दृश्य सूर्योदय और सूर्यास्त के समय प्रातः सायं देखा जा सकता है। दो रंगों के मिलने से एक तीसरा रंग बनता है। भूमि और बीज के समन्वय की प्रतिक्रिया अंकुर के रूप में फूटती है। पति-पत्नी का मिलन अभिनव उल्लास के रूप में प्रकट होता है और प्रतिफल सन्तान के रूप में सामने आता है। जीव और ब्रह्म के मिलन की प्रतिक्रिया को ईश्वर कह सकते हैं। गैस और गैस मिल कर पानी के रूप में परिणत हो जाती है। शरीर और प्राण का मिलन जीवन के रूप में दृष्टिगोचर होता है। आग और जल के मिलने से भाप बनती है नैगेटिव और पौजिटिव धाराएं मिलने पर शक्तिशाली विद्युत प्रवाह गतिशील होता है। हम उसी ईश्वर से परिचित होते हैं जो आत्मा से परमात्मा के मिलन की प्रतिक्रिया के रूप में अनुभव की जाती है।
वेदान्त दर्शन में ईश्वर के रूप-स्वरूप की जितने तात्विक स्वरूप की विवेचना की गई है उतनी अन्यत्र कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती। ‘तत्वमसि’, ‘अयमात्मा ब्रह्म’, ‘शिवोहम्’ सच्चिदानन्दोहम् सोहम्, आदि सूत्रों में यह रहस्योद्घाटन किया गया है कि यह आत्मा ही ब्रह्म है। यहां आत्मा से तात्पर्य पवित्र और परिष्कृत चेतना से है। अति मानस-सुपर ईगो—पूर्ण पुरुष—भगवान परमहंस—स्थिति प्रज्ञ-आदि शब्दों में व्यक्तित्व के उस उच्चस्तर का संकेत हैं जिसे देवात्मा एवं परमात्मा भी कहा जाता है। इसी स्थिति को उपलब्ध कर लेना आत्म-साक्षात्कार—ईश्वर प्राप्ति आदि के नाम से निरूपित किया गया है। बन्धन, मुक्ति या जीवन-मुक्ति इसी स्थिति को कहते हैं।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 तत्व दृष्टि से बन्धन मुक्ति पृष्ठ ८२
परम पूज्य गुरुदेव ने यह पुस्तक 1979 में लिखी थी