🌹 ब्राह्मण मन और ऋषि कर्म
🔵 विश्वामित्र गायत्री महामंत्र के द्रष्टा, नूतन सृष्टि के सृजेता माने गए हैं। उनने सप्तऋषियों सहित जिस क्षेत्र में तप करके आद्यशक्ति का साक्षात्कार किया था, वह पावन भूमि यही गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज की है, जिसे हमारे मार्गदर्शक ने दिव्य चक्षु प्रदान करके दर्शन कराए थे एवं आश्रम निर्माण हेतु प्रेरित किया था। विश्वामित्र की सृजन साधना के सूक्ष्म संस्कार यहाँ सघन हैं। महाप्रज्ञा को युग शक्ति का रूप देने उनकी चौबीस मूर्तियों की स्थापना कर सारे राष्ट्र एवं विश्व में आद्यशक्ति का वसुधैव कुटुम्बकम् एवं सद्बुद्धि की प्रेरणा वाला संदेश यहीं से उद्घोषित हुआ। अनेक साधकों ने यहाँ गायत्री अनुष्ठान किए हैं एवं आत्मिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त की है। शब्द शक्ति एवं सावित्री विधा पर वैज्ञानिक अनुसंधान विश्वामित्र परम्परा का ही पुनर्जीवन है।
🔴 जमदग्नि का गुरुकुल-आरण्यक उत्तरकाशी में स्थित था एवं बालकों, वानप्रस्थों की समग्र शिक्षा व्यवस्था का भांडागार था। अल्पकालीन साधना, प्रायश्चित, संस्कार आदि कराने एवं प्रौढ़ों के शिक्षण की यहाँ समुचित व्यवस्था थी। प्रखर व्यक्तित्वों के उत्पादन, वानप्रस्थ, परिव्राजक हेतु लोकसेवियों का शिक्षण, गुरुकुल में बालकों को नैतिक शिक्षण तथा युग शिल्पी विद्यालय में समाज निर्माण की विधा का समग्र शिक्षण इस ऋषि परम्परा को आगे बढ़ाने हेतु शान्तिकुञ्ज द्वारा संचालित ऐसे ही क्रिया कलाप हैं।
🔵 देवर्षि नारद ने गुप्त काशी में तपस्या की। वे निरंतर अपने वीणवादन से जन-जागरण में निरत रहते थे। उन्होंने सत्परामर्श द्वारा भक्ति भावनाओं को प्रसुप्ति से प्रौढ़ता तक समुन्नत किया था। शान्तिकुञ्ज के युग गायन शिक्षण विद्यालय ने अब तक हजारों ऐसे परिव्राजक प्रशिक्षित किए हैं। वे एकाकी अपने-अपने क्षेत्रों में एवं समूह में जीप टोली द्वारा भ्रमण कर नारद परम्परा का ही अनुकरण कर रहे हैं।
🔴 देव प्रयाग में राम को योग वशिष्ठ का उपदेश देने वाले वशिष्ठ ऋषि धर्म और राजनीति का समन्वय करके चलते थे। शान्तिकुञ्ज के सूत्रधार ने सन् १९३० से सन् १९४७ तक आजादी की लड़ाई लड़ी है। जेल में कठोर यातनाएँ सही हैं। बाद में साहित्य के माध्यम से समाज एवं राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है। धर्म और राजनीति के समन्वय साहचर्य के लिए जो बन पड़ा है, हम उसे पूरे मनोयोग से करते रहे हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/hari/brahman.3
🔵 विश्वामित्र गायत्री महामंत्र के द्रष्टा, नूतन सृष्टि के सृजेता माने गए हैं। उनने सप्तऋषियों सहित जिस क्षेत्र में तप करके आद्यशक्ति का साक्षात्कार किया था, वह पावन भूमि यही गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज की है, जिसे हमारे मार्गदर्शक ने दिव्य चक्षु प्रदान करके दर्शन कराए थे एवं आश्रम निर्माण हेतु प्रेरित किया था। विश्वामित्र की सृजन साधना के सूक्ष्म संस्कार यहाँ सघन हैं। महाप्रज्ञा को युग शक्ति का रूप देने उनकी चौबीस मूर्तियों की स्थापना कर सारे राष्ट्र एवं विश्व में आद्यशक्ति का वसुधैव कुटुम्बकम् एवं सद्बुद्धि की प्रेरणा वाला संदेश यहीं से उद्घोषित हुआ। अनेक साधकों ने यहाँ गायत्री अनुष्ठान किए हैं एवं आत्मिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त की है। शब्द शक्ति एवं सावित्री विधा पर वैज्ञानिक अनुसंधान विश्वामित्र परम्परा का ही पुनर्जीवन है।
🔴 जमदग्नि का गुरुकुल-आरण्यक उत्तरकाशी में स्थित था एवं बालकों, वानप्रस्थों की समग्र शिक्षा व्यवस्था का भांडागार था। अल्पकालीन साधना, प्रायश्चित, संस्कार आदि कराने एवं प्रौढ़ों के शिक्षण की यहाँ समुचित व्यवस्था थी। प्रखर व्यक्तित्वों के उत्पादन, वानप्रस्थ, परिव्राजक हेतु लोकसेवियों का शिक्षण, गुरुकुल में बालकों को नैतिक शिक्षण तथा युग शिल्पी विद्यालय में समाज निर्माण की विधा का समग्र शिक्षण इस ऋषि परम्परा को आगे बढ़ाने हेतु शान्तिकुञ्ज द्वारा संचालित ऐसे ही क्रिया कलाप हैं।
🔵 देवर्षि नारद ने गुप्त काशी में तपस्या की। वे निरंतर अपने वीणवादन से जन-जागरण में निरत रहते थे। उन्होंने सत्परामर्श द्वारा भक्ति भावनाओं को प्रसुप्ति से प्रौढ़ता तक समुन्नत किया था। शान्तिकुञ्ज के युग गायन शिक्षण विद्यालय ने अब तक हजारों ऐसे परिव्राजक प्रशिक्षित किए हैं। वे एकाकी अपने-अपने क्षेत्रों में एवं समूह में जीप टोली द्वारा भ्रमण कर नारद परम्परा का ही अनुकरण कर रहे हैं।
🔴 देव प्रयाग में राम को योग वशिष्ठ का उपदेश देने वाले वशिष्ठ ऋषि धर्म और राजनीति का समन्वय करके चलते थे। शान्तिकुञ्ज के सूत्रधार ने सन् १९३० से सन् १९४७ तक आजादी की लड़ाई लड़ी है। जेल में कठोर यातनाएँ सही हैं। बाद में साहित्य के माध्यम से समाज एवं राष्ट्र का मार्गदर्शन किया है। धर्म और राजनीति के समन्वय साहचर्य के लिए जो बन पड़ा है, हम उसे पूरे मनोयोग से करते रहे हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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