मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016

👉 शिष्य संजीवनी (भाग 3)


अनुभव के अक्षर

महान् शिष्यों के साधनामय जीवन का सार यह कथन बड़ा ही रहस्यमय एवं अतिशय प्रभावी है। इसमें पहली बात बड़ी स्पष्ट है कि कोरी भावुकता, बात- बात में आँसू बहाना गुरु भक्ति का परिचय नहीं है। शिष्यत्व की साधना के लिए पहली जरूरत समर्पित दृढ़ता की है। दृढ़ता से भरी अश्रुविहीन आँखें ही गुरुचेतना को निहार सकती हैं। जहाँ तक कानों की बात है- सो वे गुरु निन्दा और विषय चर्चा के लिए बहरे हों ताकि वे सद्गुरु की परावाणी सुन सकें। और यदि हम यह चाहते हैं कि हमारे स्वर सद्गुरु को स्पर्श करें- तो हमारी वाणी का किसी और को चोट पहुँचाने की प्रवृत्ति से मुक्त होना आवश्यक है। ऊपर कही गयी इन तीनों बातों का मेल बड़ा दुर्लभ है। क्योंकि जब समर्पित भक्ति जगती है, तो उसमें कहीं से, चुपके से कट्टरता, संकीर्णता आकर जहर घोल देती है। और हम अपने विरोधियों के लिए विद्रोही बन जाते हैं।

परन्तु शिष्यत्व की साधना करने के लिए यह पूर्णतया वर्जित है। उनका अन्तःकरण तो गुरु- प्रेम से इस कदर परिपूर्ण होना चाहिए कि उसमें तनिक से भी द्वेष और तनिक सी भी कड़वाहट की कोई गुंजाइश ही न रहे। हमारी भक्ति इतनी अधिक प्रगाढ़ हो कि शिष्यत्व की साधना के लिए बढ़ने वाला हमारा प्रत्येक कदम हमारे अपने हृदय के रक्त से यानि की प्रगाढ़ भावनाओं से धुला हुआ- परम पवित्र हो। यदि हम यह कर सकते हैं तो ही हम शिष्यत्व की साधना के अधिकारी हैं। और ये शिष्य संजीवनी के परम गोपनीय सूत्र हमारे लिए हैं। इन योग्यताओं के साथ ही हम इस राह पर आगे बढ़ सकते हैं। क्योंकि यह राह हठी, उन्मादियों एवं अहंकारियों के लिए नहीं है। साधना का परम रहस्य मार्ग केवल शिष्यों के लिए है। जिनमें समर्पित संकल्प और संकल्पित समर्पण कूट- कूटकर भरा है।

गुरु पूर्णिमा के परम दुर्लभ क्षणों में इस पुस्तक के प्रकाशन के अवसर पर प्रत्येक शिष्य टटोलें अपने आप को, करें स्वयं का आत्मावलोकन, करें सच्ची समीक्षा स्वयं अपने आपकी। क्या आप तैयार हैं शिष्य बनने के लिए? क्या आपके पास है वह साहस और हौसला जो शिष्यत्व की साधना की कठिन राह पर आपको चला सके? यदि हाँ- तो शिष्य संजीवनी हम सभी के साधना पथ पर अपना उजाला बिखेरने के लिए आप के हाथों में है। इसके सभी अक्षर अनुभव के अक्षर हैं। जिन्हें मैंने परम पूज्य गुरुदेव के प्रत्यक्ष एवं परोक्ष सान्निध्य में रहकर अर्जित किया है।

क्रमशः जारी
- डॉ. प्रणव पण्डया
गुरु पूर्णिमा, 7 जुलाई 2009
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/ex

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