एक व्यक्ति प्रतिदिन आकर महात्मा बुद्ध का प्रवचन सुना करता था। उसका यह क्रम एक माह तक बराबर चला पर इस सबका उसके जीवन पर कोई प्रभाव नही पडा। महात्मा बुद्ध उसको बारबार समझाते थे कि लोभ, द्वेष और मोह पाप के मूल हैं, इन्हें त्यागो। परंतु इन बुराइयों से बचना तो दूर वह इनमे और अधिक फँसता गया।
महात्मा बुद्ध कहते थे कि क्रोध करने वाले पर जो क्रोध करता है, उसका अधिक अहित होता है। लेकिन जो क्रोध का उत्तर क्रोध से नही देता, वह एक भारी युद्ध जीत लेता है। बुद्ध के ऐसे प्रवचन सुनने के बाद भी उस व्यक्ति का स्वभाव उग्र से उग्रतर होता जा रहा था।
एक दिन वह परेशान होकर बुद्ध के पास गया, और उन्हें प्रणाम निवेदन करके अपनी समस्या सुनाई।
बुद्ध ने कहा- “कहाँ के रहने वाले हो..?”
वो बोला- “श्रावस्ती का..।“
बुद्ध ने फिर पूछा- “ राजगृह से श्रावस्ती कितनी दूर है...?“
उसने बता दिया।
बुद्ध ने पूछा- “कैसे जाते हो वहाँ...?”
वो बोला- “सवारी से...।“
बुद्ध ने फिर पूछा- “कितना वक्त लगता है..?“
उसने हिसाब लगाकर ये भी बताया।
बुद्ध बोले- “अब ये बताओ, यहाँ बैठे-बैठे श्रावस्ती पहुँच सकते हो..।“
वो बोला- “ये कैसे हो सकता है..? वहाँ पहुँचने के लिये तो चलना होगा...।“
बुद्ध बडे प्यार से बोले- "तुमने सही कहा। चलने पर ही मँजिल तक पहुँचा जा सकता है। इसी तरह अच्छी बातों का असर तभी पडता है जब उन पर अमल किया जाए। ज्ञान के अनुसार कर्म ना होने पर वह व्यर्थ जाता है।“
इसी तरह हर जानी गई अच्छी बात असर तभी लाती है जब उसको कर्म में ढाला जाए या उसका व्यवहार किया जाए। बिना अमल किया ज्ञान सिर्फ व्यर्थ ही नहीं चला जाता बल्कि वह समय के साथ भूल भी जाता है। फिर कुछ लोग यह कहते पाए जाते हैं कि वह यह अच्छी बात इसलिए नही अपना पाते हैं कि परिस्थिति अनुकूल नहीं है, तो जरा विचार कीजिए अनुकूल परिस्थिति इसीलिए तो नहीं है कि कोई भी अच्छाई पर अमल ही नही कर रहा है। बिना अच्छाई पर अमल किए अच्छी परिस्थिति कैसे आएगी। आखिर कहीं से तो शुरुआत करनी होगी॥
महात्मा बुद्ध कहते थे कि क्रोध करने वाले पर जो क्रोध करता है, उसका अधिक अहित होता है। लेकिन जो क्रोध का उत्तर क्रोध से नही देता, वह एक भारी युद्ध जीत लेता है। बुद्ध के ऐसे प्रवचन सुनने के बाद भी उस व्यक्ति का स्वभाव उग्र से उग्रतर होता जा रहा था।
एक दिन वह परेशान होकर बुद्ध के पास गया, और उन्हें प्रणाम निवेदन करके अपनी समस्या सुनाई।
बुद्ध ने कहा- “कहाँ के रहने वाले हो..?”
वो बोला- “श्रावस्ती का..।“
बुद्ध ने फिर पूछा- “ राजगृह से श्रावस्ती कितनी दूर है...?“
उसने बता दिया।
बुद्ध ने पूछा- “कैसे जाते हो वहाँ...?”
वो बोला- “सवारी से...।“
बुद्ध ने फिर पूछा- “कितना वक्त लगता है..?“
उसने हिसाब लगाकर ये भी बताया।
बुद्ध बोले- “अब ये बताओ, यहाँ बैठे-बैठे श्रावस्ती पहुँच सकते हो..।“
वो बोला- “ये कैसे हो सकता है..? वहाँ पहुँचने के लिये तो चलना होगा...।“
बुद्ध बडे प्यार से बोले- "तुमने सही कहा। चलने पर ही मँजिल तक पहुँचा जा सकता है। इसी तरह अच्छी बातों का असर तभी पडता है जब उन पर अमल किया जाए। ज्ञान के अनुसार कर्म ना होने पर वह व्यर्थ जाता है।“
इसी तरह हर जानी गई अच्छी बात असर तभी लाती है जब उसको कर्म में ढाला जाए या उसका व्यवहार किया जाए। बिना अमल किया ज्ञान सिर्फ व्यर्थ ही नहीं चला जाता बल्कि वह समय के साथ भूल भी जाता है। फिर कुछ लोग यह कहते पाए जाते हैं कि वह यह अच्छी बात इसलिए नही अपना पाते हैं कि परिस्थिति अनुकूल नहीं है, तो जरा विचार कीजिए अनुकूल परिस्थिति इसीलिए तो नहीं है कि कोई भी अच्छाई पर अमल ही नही कर रहा है। बिना अच्छाई पर अमल किए अच्छी परिस्थिति कैसे आएगी। आखिर कहीं से तो शुरुआत करनी होगी॥