इन सबका प्राण तो मैंने सिखाया भी नहीं था। मैं चाहता था कि चलते- चलते इनका प्राण सिखा जाऊँ ,, ताकि आपका अध्यात्म जीवंत हो सके ; ताकि आपकी उपासना जीवंत हो सके और जीवंत उपासना का जो लाभ आपको मिलना चाहिए, वह लाभ आपको मिलने मे समर्थ हो सके और आप अपनी जिंदगी में यह अनुभव कर सकें कि हमको कोई ऐसी चीज बताई गई थी। अगर हमने नहीं की तो ठीक है, लेकिन की तो उसका पूरे का पूरा फायदा उठाया। हम आपको ऐसा ही अध्यात्म सिखाने के इच्छुक हैं। आपको ऐसा अध्यात्म सीखना चाहिए और ऐसा अध्यात्म जानना चाहिए।
मित्रो ! अध्यात्म में आत्मशोधन पहली प्रकिया है। पंचमुखी गायत्री के पाँच मुखों को पाँच दिशाओं, पाँच धाराओं, गायत्री उपासना के पाँच टुकड़ों में बाँट दिया गया है। इसमें तीन चरण हैं, एक पर्व है। इसमें एक ‘ऊँ’ है। गायत्री पाँच हिस्सों में बँटी हुई है, जिसकी हम पाँच हिस्सों में व्याख्या कर सकते हैं। इसको हम पाँच कोशों का जागरण कह सकते हैं। इसके लिए हम आपको पाँच उपासनाएँ सिखा सकते हैं, जिसे आपको समझना चाहिए।
गायत्री माता का पहला वाला खंड वह है, जिसे हम प्रत्येक क्रियाकृत्य के साथ- साथ सबसे पहले सिखाते हैं और कहते हैं कि इसके बिना कोई कृत्य पूरा नहीं हो सकता। वह क्या हो सकता है? वह है- आत्मशोधन की प्रकिया। आत्मशोधन- प्रकिया के कौन- कौन से अंग हैं? आप उसके बिना जप नहीं कर सकते ; उसके बिना हवन नहीं कर सकते। उसके बिना कोई कर्मकांड नहीं कर सकते; यह तो हमारे कर्म का प्रारंभ है और यह हमारे अध्यात्म का प्रारंभ है, जिसको हम आत्मशोधन की प्रकिया कहते हैं।
क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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