सोमवार, 5 अक्टूबर 2020

👉 एक अच्छा मनुष्य बनाइएगा

मैं बिस्तर पर से उठा,अचानक छाती में दर्द होने लगा मुझे... हार्ट की तकलीफ तो नहीं है. ..? ऐसे विचारों के साथ. ..मैं आगे वाले बैठक के कमरे में गया...मैंने नज़र की...कि मेरा परिवार मोबाइल में व्यस्त था...

मैंने ... पत्नी को देखकर कहा...काव्या थोड़ा छाती में रोज से आज ज़्यादा दु:ख रहा है...डाक्टर को बताकर आता हूँ . ..
हां, मगर संभलकर जाना...काम हो तो फोन करना  मोबाइल में देखते देखते ही काव्या बोली...

मैं... एक्टिवा की चाबी लेकर पार्किंग में पहुँचा ... पसीना,मुझे बहुत आ रहा था...एक्टिवा स्टार्ट नहीं हो रहा था...
ऐसे वक्त्त... हमारे घर का काम करने वाला ध्रुव सायकल लेकर आया... सायकल को ताला मारते ही उसे मैंने मेरे सामने खड़ा देखा...
क्यों साब? एक्टिवा चालू नहीं हो रहा है...मैंने कहा नहीं...

आपकी तबीयत ठीक नहीं लगती साब... इतना पसीना क्यों आया है ? 

साब... स्कूटर को किक इस हालत में नहीं मारते....मैं किक मारके चालू कर देता हूँ ...ध्रुव ने एक ही किक मारकर एक्टिवा चालू कर दिया, साथ ही पूछा..साब अकेले जा रहे हो 

मैंने कहा... हां 
ऐसी हालत में अकेले नहीं जाते...चलिए मेरे पीछे बैठ जाइए...मैंने कहा तुम्हें एक्टिवा चलाना आता है? साब... गाड़ी का भी लाइसेंस है, चिंता  छोड़कर बैठ जाओ...

पास ही एक अस्पताल में हम पहुँचे, ध्रुव दौड़कर अंदर गया, और व्हील चेयर लेकर बाहर आया...
साब... अब चलना नहीं, इस कुर्सी पर बैठ जाओ..

ध्रुव के मोबाइल पर लगातार घंटियां बजती रही...मैं समझ गया था... फ्लैट में से सबके फोन आते होंगे..कि अब तक क्यों नहीं आया? ध्रुव ने आखिर थक कर किसी को कह दिया कि... आज नहीँ आ सकता....

ध्रुव डाक्टर के जैसे ही व्यवहार कर रहा था...उसे बगैर पूछे मालूम हो गया था कि, साब को हार्ट की तकलीफ हो रही है... लिफ्ट में से व्हील चेयर ICU कि तरफ लेकर गया....

डाक्टरों की टीम तो तैयार ही थी... मेरी तकलीफ सुनकर... सब टेस्ट शीघ्र ही किये... डाक्टर ने कहा, आप समय पर पहुँच गए हो....इस में भी आपने व्हील चेयर का उपयोग किया...वह आपके लिए बहुत फायदेमंद रहा...

अब... कोई भी प्रकार की राह देखना... वह आपके लिए हानिकारक होगी...इसलिए बिना देर किए हमें हार्ट का ऑपरेशन करके आपके ब्लोकेज जल्द ही दूर करने होंगे...इस फार्म पर आप के स्वजन के हस्ताक्षर की ज़रूरत है...डाक्टर ने ध्रुव को सामने देखा...

मैंने कहा, बेटे, दस्तखत करने आते है? साब इतनी बड़ी जवाबदारी मुझ पर न रखो...

बेटे... तुम्हारी कोई जवाबदारी नहीं है... तुम्हारे साथ भले ही लहू का संबंध नहीं है... फिर भी बगैर कहे तुमने तुम्हारी जवाबदारी पूरी की, वह जवाबदारी हकीकत में मेरे परिवार की थी...एक और जवाबदारी पूरी कर दो बेटा, मैं नीचे लिखकर सही करके लिख दूंगा कि मुझे कुछ भी होगा तो जवाबदारी मेरी है, ध्रुव ने सिर्फ मेरे कहने पर ही हस्ताक्षर  किये हैं, बस अब. ..

और हां, घर फोन लगा कर खबर कर दो...

बस, उसी समय मेरे सामने, मेरी पत्नी काव्या का मोबाइल ध्रुव के मोबाइल पर आया.वह शांति से काव्या को सुनने लगा...

थोड़ी देर के बाद ध्रुव बोला, मैडम, आपको पगार काटने का हो तो काटना, निकालने का हो तो निकाल दो, मगर अभी अस्पताल ऑपरेशन शुरु होने के पहले पहुँच जाओ। हां मैडम, मैं साब को अस्पताल लेकर आया हूँ। डाक्टर ने ऑपरेशन की तैयारी कर ली है, और राह देखने की कोई जरूरत नहीं है...

मैंने कहा, बेटा घर से फोन था...?

हाँ साब.
मैंने मन में सोचा, काव्या तुम किसकी पगार काटने की बात कर रही है, और किस को निकालने की बात कर रही हो? आँखों में आंसू के साथ ध्रुव के कंधे पर हाथ रख कर, मैं बोला, बेटा चिंता नहीं करते।।

मैं एक संस्था में सेवाएं देता हूं, वे बुज़ुर्ग लोगों को सहारा देते हैं, वहां तुम जैसे ही व्यक्तियों की ज़रूरत है।
तुम्हारा काम बरतन कपड़े धोने का नहीं है, तुम्हारा काम तो समाज सेवा का है...बेटा. ..पगार मिलेगा, इसलिए चिंता ना करना।

ऑपरेशन बाद, मैं होश में आया... मेरे सामने मेरा पूरा परिवार नतमस्तक खड़ा था, मैं आँखों में आंसू के साथ बोला, ध्रुव कहाँ है?

काव्या बोली-: वो अभी ही छुट्टी लेकर गांव गया, कहता था, उसके पिताजी हार्ट अटैक में गुज़र गऐ है... 15 दिन के बाद फिर से आयेगा।

अब मुझे समझ में आया कि उसको मेरे में उसका बाप दिखता होगा...

हे प्रभु, मुझे बचाकर आपने उसके बाप को उठा लिया!

पूरा परिवार हाथ जोड़कर, मूक नतमस्तक माफी मांग रहा था...

एक मोबाइल की लत (व्यसन)...अपने व्यक्ति को अपने दिल से कितना दूर लेकर जाता है... वह परिवार देख रहा था....यही नहीं मोबाइल आज घर घर कलह का कारण भी बन गया है बहू छोटी-छोटी बाते तत्काल अपने मां-बाप को बताती है और मां की सलाह पर ससुराल पक्ष के लोगो से व्यवहार करती है परिणामस्वरूप वह बीस बीस साल भी ससुराल पक्ष के लोगो से अपनापा जोड़ नहीं पाती।

डाक्टर ने आकर कहा, सब से पहले यह बताइए ध्रुव भाई आप के क्या लगते?

मैंने कहा डाक्टर साहब, कुछ संबंधों के नाम या गहराई तक न जाएं तो ही बेहतर होगा उससे संबंध की गरिमा बनी रहेगी।

बस मैं इतना ही कहूंगा कि, वो आपात स्थिति में मेरे लिए फरिश्ता बन कर आया था!

पिन्टू बोला :- हमको माफ करो पप्पा... जो फर्ज़ हमारा था, वह ध्रुव ने पूरा किया, वह हमारे लिए शर्मजनक है, अब से ऐसी भूल भविष्य में कभी भी नहीं होगी. ..

बेटा, जवाबदारी और नसीहत (सलाह) लोगों को देने के लिए ही होती है...
जब लेने की घड़ी आये, तब लोग ऊपर नीचे (या बग़ल झाकते है) हो जातें है।

अब रही मोबाइल की बात...

बेटे, एक निर्जीव खिलोने ने, जीवित खिलोने को गुलाम कर दिया है, समय आ गया है, कि उसका मर्यादित उपयोग करना है।

नहीं तो.... परिवार, समाज और राष्ट्र को उसके गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे और उसकी कीमत चुकाने को तैयार रहना पड़ेगा।
बेटे और बेटियों को बड़ा अधिकारी या व्यापारी बंनाने की जगह एक अच्छा मनुष्य बनाइएगा।

👉 A TRUE PRAYER

Our prayers should be worthy of us as children of The Divine. We must pray the Almighty to arouse our indwelling love, wisdom and strength, which would support and guide steps in all phases of the revolving wheel of circumstances. We, as sparks of Divine Light, ought to pray for illuminating our inner self with the subliminal glow of divinity so that no storm of hardship or turbulence of ups and downs of life could ever quaver the flame of our faith in the divine origin of our souls.

“Oh Lord! Bless us with strength, courage and wisdom so that we could meet adversities as opportunities to refine our qualities and strengthen our potentials. The roadblocks of obstacles and challenges of the path should serve as harbingers of a brighter tomorrow.” –– Such would be an ideal prayer to elevate the level of our optimism and enthusiasm and would protect us from becoming disheartened, weak or cowardly.

We have to become intrepid warriors of Light and not perplexed fugitives in the battlefield of life.  Prayer is less about asking for things we are attached to than it is about our relinquishing our attachments – thus taking us beyond fear. When we pray, we don’t change the world; we change ourselves. We move away from BEGGING to LETTING – “IN THIS MOMENT I AM HERE, OH DIVINE MASTER, USE ME. LET THY WILL BE DONE THROUGH ME.”

✍🏻 Pt. Shriram Sharma Acharya

👉 समाज−सुधार का आधार

व्यक्तियों के समूह का नाम ही तो समाज है। हम सब अपने आपको सुधारें तो समाज का सुधार हुआ ही रखा है। कुछ मूढ़ताऐं, अन्ध−परम्पराएँ, अनैतिकताऐं, संकीर्णताऐं, हमारे सामूहिक जीवन में प्रवेश पा गई हैं। दुर्बल मन से सोचने पर वे बड़ी कठिन बड़ी दुस्तर, बड़ी गहरी जमी हुई दीखती हैं, पर वस्तुतः वे कागज के बने रावण की तरह डरावनी दीखते हुए भी भीतर ही भीतर खोखली हैं। हर विचारशील उनसे घृणा करता है। पर अपने को एकाकी अनुभव करके आस−पास घिरे लोगों की भावुकता से डर कर कुछ कर नहीं पाता। कठिनाई इतनी सी है। इसे कुछ ही थोड़े से विवेकशील लोग, यदि संगठित होकर उठ खड़े हों और जमकर विरोध करने लगें तो उन कुरीतियों को मामूली से संघर्ष के बाद चकनाचूर कर सकते हैं, तोड़−मरोड़ कर फेंक सकते हैं। गोवा की जनता ने जिस प्रकार भारतीय फौजों का स्वागत किया वैसा ही स्वागत इन कुरीतियों से सताई हुई जनता उनका करे जो इन अन्ध परम्पराओं को तोड़−मरोड़ कर रख देने के लिए कटिबद्ध सैनिकों की तरह मार्च करते हुए आगे बढ़ेंगे।

हत्यारा दहेज कागज के रावण की तरह बड़ा वीभत्स−नृशंस एवं डरावना लगता है। हर कोई भीतर ही भीतर उससे घृणा करता है, पर पास जाने से डरता है। कुछ साहसी लोग उसमें पलीता लगाने को दौड़ पड़ें तो उसका जड़ मूल से उन्मूलन होने में देर न लगेगी। दास−प्रथा, देवदासी प्रथा, वेश्या नृत्य, बहु−विवाह, जन्मते ही कन्यावध, भूत पूजा, पशुबलि आदि अनेक सामाजिक कुरीतियाँ किसी समय बड़ी प्रबल लगती थीं, अब देखते−देखते उनका नाम निशान मिटता चला जा रहा है। आज जो कुरीतियाँ, अनैतिकताऐं एवं संकीर्णताऐं मजबूती से जड़ जमाये दीखती हैं विवेकशीलों के संगठित प्रतिरोध के सामने देर तक न ठहर सकेंगी। बालू की दीवार की तरह वे एक ही धक्के में भरभरा का गिर पड़ेंगी। विचारों की क्रान्ति का एक ही तूफान इस तिनकों के ढेर को उड़ाकर बात की बात में छितरा देगा। जिस नये समाज की रचना आज स्वप्न सी लगती है, विचारशीलता के जाग्रत होते ही वह मूर्तिमान होकर सामने खड़ी दीखेगी।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति फरवरी 1962 

👉 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान (भाग ४३)

जब वैराग्य से धुल जाए मन

अन्तर्यात्रा का विज्ञान- महर्षि पतंजलि एवं ब्रह्मर्षि परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक प्रयोगों का निष्कर्ष है। परम पूज्य गुरुदेव ने बार-बार अपने इस जीवन सत्य को दुहराया है कि अध्यात्म एक सम्पूर्ण विज्ञान है। हाँ, यह अन्तर्जगत् का विज्ञान है, जबकि प्रचलित विज्ञान की अन्य शाखा-प्रशाखाएँ बाह्य जगत् की हैं। उनके एक-एक शब्द को समझने की कोशिश करनी होगी। दरअसल यह कठिन कार्य है। क्योंकि उनकी शब्दावली तर्क की, विवेचना की, विज्ञान की है, पर उनका संकेत परमात्मा की ओर है, महाभाव की ओर, प्रभु प्रेम के अहोभाव की ओर है। 
     
वैराग्य ऐसा ही शब्द है। कुछ लोगों ने इसका अर्थ जिम्मेदारियों से भाग कर निठल्लेपन से जिंदगी बिताना बना लिया है। पर वास्तव में देखा जाए तो इसका महत्व अनंत है। इसकी  अति दुर्लभ अवस्था सम्प्रज्ञात समाधि की ओर ले जाती है। यह सम्प्रज्ञात समाधि क्या है? इस जिज्ञासा के समाधान  में महर्षि कहते हैं-
वितर्कविचारानंदास्मितारूपानुगमात्सम्प्रज्ञातः॥ १/१७॥

शब्दार्थ- वितर्क विचारानन्दास्मितारूपानुगमात्= वितर्क, विचार, आनन्द और अस्मिता- इन चारों के सम्बन्ध से युक्त (चित्तवृत्ति का समाधान), सम्प्रज्ञातः=सम्प्रज्ञात समाधि है।
अर्थात् सम्प्रज्ञात समाधि वह समाधि है, जो वितर्क, विचार, आनन्द और अस्मिता के भाव से संयुक्त होती है।
    
दरअसल यह वैराग्य से धुले हुए निर्मल चित्त की सहज परिणति है। इस स्थिति में मन पूरी तरह से सूक्ष्म और शुद्ध हो जाता है। यह इतना शुद्ध एवं सूक्ष्म हो जाता है कि उसकी कोई प्रवृत्ति नहीं रहती चिपकने की। हालाँकि यह समाधि का पहला चरण है। इसके अगले चरण में तो मन ही नहीं रहता। अ-मन की अवस्था है वह। लेकिन यह जो पहला चरण है, वह भी पुलकन और आनन्द से ओत-प्रोत है। ज्यादातर साधक तो यहीं ठहर जाते हैं। उन्हें आगे बढ़ने की सुध ही नहीं रहती। इस पहले चरण में भी चार भाव दशाएँ हैं।
    
पहली भावदशा है—वितर्क की। यह तर्क का एक खास रूप है। यूँ तर्क साधारण तौर पर तीन रूपों में प्रकट होता है। इनमें से पहली अवस्था है कुतर्क की। यह तर्क की निषेधात्मक स्थिति है। कुतर्क में जीने वालों की नजर हमेशा ही जिन्दगी के अँधेरे पहलुओं पर होती है। उदाहरण के लिए गुलाब के पौधे में सुन्दर फूल होते हैं, लेकिन चुभने वाले काँटे भी होते हैं। कुतर्क वाला व्यक्ति काँटों की गिनती करेगा और अन्ततः यह नतीजा निकालेगा कि वास्तविक सच्चाई तो कांटे ही हैं, यह गुलाब तो निरा भ्रम है। फिर है तर्क-यानि की गोल-गोल चक्करों वाली भुलभुलैया। तर्क में प्रवीण व्यक्ति कितना ही तर्क करे, पर पहुँचेगा कहीं नहीं। वह यूँ ही पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण में भटकता हुआ ऊर्जा गँवाएगा। बिना ध्येय का विचार तर्क कहलाता है।

.... क्रमशः जारी
📖 अन्तर्जगत् की यात्रा का ज्ञान-विज्ञान पृष्ठ ७८
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

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