🔹 चाहे व्यक्तिगत समृद्धि की बात हो, चाहे समूहगत सम्पन्नता का विषय हो, उपाय एक ही है, लोगों का वर्तमान दृष्टिकोण बदला जाय। मन को प्रफु ल्लित करने के लिए इस सृष्टि में इतना विस्तृत आधार मौजूद है कि हर घड़ी हर्षाेल्लास भरी अनुभूति का आस्वादन करते हुए प्रमुदित- पुलकित रहा जा सके। मन को सुविकसित- संस्कारित बनाने के लिए परिवार में अच्छे विचारण न मिलें, तो भूखी आत्मा वाले ऊँची बात सोच न सकते।
🔸 हमारा व्यक्तित्त्व और राष्ट्रीय भविष्य इस बात पर निर्भर है कि भावी पीढ़ियाँ सुसंस्कृत हों। स्कूली शिक्षा से आजीविका उपार्जन करने तथा विविध क्षेत्रों की साधारण जानकारी मिलने की बात पूरी हो सकती है, पर वे सद्गुण जो मानव की प्रधान सम्पत्ति है और जिनके ऊपर व्यक्ति तथा राष्ट्र की श्रेष्ठता निर्भर करती है, स्कूलों में नहीं सीखे जा सकते, उनके शिक्षण का सही स्थान है- घर का वातावरण और उसका निर्माण करती है गृहिणी।
🔹 शिक्षा का उद्देश्य नौकरी करना और पैसा कमाना ही नहीं, सर्वतोन्मुखी प्रगति के लिए बौद्घिक आधार तैयार करना होता है। शिक्षित नारी अपने बच्चों की व्यवस्था, गृह सज्जा तथा पति की सच्ची सहायिका के रूप में कहीं अधिक सुरुचिपूर्ण ढंग से भाग ले सकती है।
🔸 न केवल घर में, अपितु घर के बाहर भी स्त्रियाँ समाज निर्माण में डाँक्टर, नर्स, इंजीनियर, शिक्षिका आदि अनेकों रूपों में सामाजिक प्रगति में सहयोग दे सकती है। महिला डाक्टर अधिक सेवा तथा कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर कार्य करें, तो समाज का अधिक विकास होगा। शिक्षिका के रूप में नारी अपनी सादगी, सज्जनता, सहनशीलता, सत्यनिष्ठा, सद्व्यवहार आदि से छात्रों को उत्कृष्ठता की ओर चरित्र निर्माण की ओर सतत रूप से बढने की प्रेरणा दे सकती है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
🔸 हमारा व्यक्तित्त्व और राष्ट्रीय भविष्य इस बात पर निर्भर है कि भावी पीढ़ियाँ सुसंस्कृत हों। स्कूली शिक्षा से आजीविका उपार्जन करने तथा विविध क्षेत्रों की साधारण जानकारी मिलने की बात पूरी हो सकती है, पर वे सद्गुण जो मानव की प्रधान सम्पत्ति है और जिनके ऊपर व्यक्ति तथा राष्ट्र की श्रेष्ठता निर्भर करती है, स्कूलों में नहीं सीखे जा सकते, उनके शिक्षण का सही स्थान है- घर का वातावरण और उसका निर्माण करती है गृहिणी।
🔹 शिक्षा का उद्देश्य नौकरी करना और पैसा कमाना ही नहीं, सर्वतोन्मुखी प्रगति के लिए बौद्घिक आधार तैयार करना होता है। शिक्षित नारी अपने बच्चों की व्यवस्था, गृह सज्जा तथा पति की सच्ची सहायिका के रूप में कहीं अधिक सुरुचिपूर्ण ढंग से भाग ले सकती है।
🔸 न केवल घर में, अपितु घर के बाहर भी स्त्रियाँ समाज निर्माण में डाँक्टर, नर्स, इंजीनियर, शिक्षिका आदि अनेकों रूपों में सामाजिक प्रगति में सहयोग दे सकती है। महिला डाक्टर अधिक सेवा तथा कर्तव्य की भावना से प्रेरित होकर कार्य करें, तो समाज का अधिक विकास होगा। शिक्षिका के रूप में नारी अपनी सादगी, सज्जनता, सहनशीलता, सत्यनिष्ठा, सद्व्यवहार आदि से छात्रों को उत्कृष्ठता की ओर चरित्र निर्माण की ओर सतत रूप से बढने की प्रेरणा दे सकती है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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