मंगलवार, 24 जुलाई 2018

👉 सबसे खुश कौन ??

🔶 जंगल में एक कौआ रहता था जो अपने जीवन से पूर्णतया संतुष्ट था। लेकिन एक दिन उसने बत्तख देखी और सोचा, “यह बत्तख कितनी सफ़ेद है और मैं कितना काला हूँ. यह बत्तख तो संसार की सबसे ज़्यादा खुश पक्षी होगी।” उसने अपने विचार बत्तख से बतलाए. बत्तख ने उत्तर दिया, “दरसल मुझे भी ऐसा ही लगता था कि मैं सबसे अधिक खुश पक्षी हूँ जब तक मैंने दो रंगों वाले तोते को नहीं देखा था। अब मेरा ऐसा मानना है कि तोता सृष्टि का सबसे अधिक खुश पक्षी है।”

🔷 फिर कौआ तोते के पास गया. तोते ने उसे समझाया, “मोर को मिलने से पहले तक मैं भी एक अत्यधिक खुशहाल ज़िन्दगी जीता था। परन्तु मोर को देखने के बाद मैंने जाना कि मुझमें तो केवल दो रंग हैं जबकि मोर में विविध रंग हैं।” तोते को मिलने के बाद वह कौआ चिड़ियाघर में मोर से मिलने गया. वहाँ उसने देखा कि उस मोर को देखने के लिए हज़ारों लोग एकत्रित थे।

🔶 सब लोगों के चले जाने के बाद कौआ मोर के पास गया और बोला, “प्रिय मोर, तुम तो बहुत ही खूबसूरत हो. तुम्हें देखने प्रतिदिन हज़ारों लोग आते हैं. पर जब लोग मुझे देखते हैं तो तुरंत ही मुझे भगा देते हैं। मेरे अनुमान से तुम भूमण्डल के सबसे अधिक खुश पक्षी हो।”

🔷 मोर ने जवाब दिया, “मैं हमेशा सोचता था कि मैं भूमण्डल का सबसे खूबसूरत और खुश पक्षी हूँ। परन्तु मेरी इस सुंदरता के कारण ही मैं इस चिड़ियाघर में फंसा हुआ हूँ। मैंने चिड़ियाघर का बहुत ध्यान से परीक्षण किया है और तब मुझे यह अहसास हुआ कि इस पिंजरे में केवल कौए को ही नहीं रखा गया है. इसलिए पिछले कुछ दिनों से मैं इस सोच में हूँ कि अगर मैं कौआ होता तो मैं भी खुशी से हर जगह घूम सकता था।”

🔶 यह कहानी इस संसार में हमारी परेशानियों का सार प्रस्तुत करती है: कौआ सोचता है कि बत्तख खुश है, बत्तख को लगता है कि तोता खुश है, तोता सोचता है कि मोर खुश है जबकि मोर को लगता है कि कौआ सबसे खुश है।

सीख :

🔷 दूसरों से तुलना हमें सदा दुखी करती है। हमें दूसरों के लिए खुश होना चाहिए, तभी हमें भी खुशी मिलेगी. हमारे पास जो है उसके लिए हमें सदा आभारी रहना चाहिए। खुशी हमारे मन में होती है।. हमें जो दिया गया है उसका हमें सर्वोत्तम उपयोग करना चाहिए। हम दूसरों की ज़िन्दगी का अनुमान नहीं लगा सकते। हमें सदा कृतज्ञ रहना चाहिए। जब हम जीवन के इस तथ्य को समझ लेंगें तो सदा प्रसन्न रहेंगें।

👉 आज का सद्चिंतन 24 July 2018

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 24 July 2018


👉 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार 1 (भाग 11)

👉 विशिष्टता का नए सिरे से उभार

🔶 प्रयत्नपूर्वक खदानों से हीरे खोज तो लिए जाते हैं, पर उन्हें चमकदार, बहुमूल्य और हार में शोभायमान स्थान पाने के लिए खरादना अनिवार्य रूप से आवश्यक होता है। धातुएँ अनेक बार के अग्नि संस्कार से ही संजीवनी जैसे रसायनों के रूप में परिणत होती हैं। पहलवान अखाड़े में लंबा अभ्यास करने के उपरांत ही दंगल में विजयश्री वरण करते हैं। शिल्पी और कलाकार अपने विषय में प्रवीण-पारंगत बनने के लिए लंबे समय तक अभ्यासरत रहते हैं। प्रतिभाओं का प्रशिक्षण और परिवर्धन, आदर्शवादी गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भूमिका निभाने के उपरांत ही संभव हो पाता है।

🔷 उस तथ्य के अनुरूप जहाँ प्रतिभाओं को खोजा जा रहा है, वहीं उनकी प्रखरता निखारने के लिए ऐसे कार्यों में जुटाया भी जा रहा है, जिनके कारण उनका ओजस्, तेजस् और वर्चस् जाज्वल्यमान हो सके। विश्वामित्र ने दशरथ पुत्रों को, युगसृजन प्रयोजन के लिए, उपयुक्त समय पर उनकी तेजस्विता उभारने के लिए यज्ञ की रक्षा करने और असुरों से जूझने का काम सौंपा था। हनुमान्, अर्जुन आदि ने ऐसी ही अग्निपरीक्षाओं से गुजरते हुए असाधारण गौरव पाया था। इनसे बचकर किसी पर भी महानता आकाश से नहीं बरसी है। पराक्रम से जी चुराने वाले तो कृपणों-प्रमादियों की तरह, मात्र हाथ ही मलते रहते हैं।
  
🔶 इन दिनों जन्मान्तरों से संचित सुसंस्कारों वाली प्रतिभाएँ खोज निकाली गई हैं। उन्हें युगचेतना के साथ जोड़ा गया है। इन्हें नवसृजन साहित्य के माध्यम से पुष्प वाटिका में मधुमक्खियों की तरह, दिव्य सुगंध ने आमंत्रित किया है और उसी परिकर में छत्ता बनाकर रहने के लिए सहमत किया है। प्रज्ञा परिकर को इसी रूप में देखा, समझा और आँका जा सकता है। प्रज्ञा परिजनों को युगसृजन का लक्ष्य लेकर अवतरित हुई दिव्य आत्माओं का समुदाय कहा जा सकता है। वे अंतरात्मा को अमृत पिलाने वाले, युगसाहित्य का रसास्वादन करते रहे हैं, मिशन की पत्रिकाएँ नियमित रूप से पढ़ते रहे हैं। युगचेतना की भावभरी प्रेरणाओं का यथासंभव अनुसरण भी करते रहे हैं। उनके अब तक के योगदान को, परमार्थ पुरुषार्थ को, मुक्त कंठ से सराहा जा सकता है, पर बड़े प्रयोजनों के लिए इतना ही तो पर्याप्त नहीं? समय की बढ़ती माँग को देखते हुए, बड़े कदम भी तो उठाने पड़ेंगे। बच्चे का छोटा-सा पुरुषार्थ भी अभिभावकों द्वारा भली-भाँति सराहा जाता है, पर युवा होने पर बचपन की पुनरावृत्तियाँ करने भर से कौन यशस्वी बनता है?
  
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 युग की माँग प्रतिभा परिष्कार पृष्ठ 13

👉 मनुष्य, अनन्त शक्ति का भाण्डागार है।

🔶 मनुष्य अपने आप में एक परिपूर्ण इकाई है। उसमें वे समस्त शक्तियाँ और सम्भावनायें जन्मजात रूप में विद्यमान् हैं, जिनके आधार पर किसी भी दिशा में पूर्णता एवं सफलता के उच्च-शिखर पर पहुँचना सम्भव हो सकता है।

🔷 समस्त दैवी शक्तियों का प्रतिनिधित्व मनुष्य की अन्तःचेतना करती है। प्रसुप्त पड़ी रहने पर वह भले ही अपना गौरव प्रकट न कर सके पर जब वह जाग जाती है तो यही अन्तःचेतना व्यक्तित्व में अगणित ऐसे सद्गुण प्रस्फुटित करती है, जिनसे किसी दिशा में चमत्कार प्रस्तुत किये जा सकते हैं।

🔶 बाहरी हानि-लाभ, सहयोग और अवरोध मनुष्य की प्राप्ति एवं अवगति के उतने बड़े कारण नहीं, जितने कि अपने आन्तरिक सद्गुण एवं दुर्गुण। व्यक्ति स्वयं ही अपने उत्थान, पतन का उत्तरदायी है। जिसने अपने को समझा, सम्भाला और बढ़ाया वह निश्चित रूप से प्रगति के पथ पर अग्रसर हुआ है। अपने भीतरी शक्ति-कोष को जगाने पर मनुष्य अपरिमित दिव्य-शक्तियों से विभूषित हो सकता है।

🔷 बाहरी सहायता की अपेक्षा करने की तुलना में यह अच्छा है कि मनुष्य अपने भीतर छिपी सत्प्रवृत्तियों को ढूंढ़े एवं उभारे। प्रगति का सार आधार व्यक्ति की अन्तःचेतना और भावनात्मक स्फुरण पर ही तो अवलम्बित है।

✍🏻 ~ जे. कृष्ण मूर्ति
📖 अखण्ड ज्योति 1968 अगस्त पृष्ठ 1
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1968/August/v1

👉 सच्चा आत्म-समर्पण करने वाली देवी

🔶 थाईजेन्ड ग्रीनलैण्ड पार्क में स्वामी विवेकानन्द का ओजस्वी भाषण हुआ। उन्होंने संसार के नव-निर्माण की आवश्यकता का प्रतिपादन करते हुए कहा- ‘‘यदि मुझे सच्चा आत्म-समर्पण करने वाले बीस लोक-सेवक मिल जायें, तो दुनिया का नक्शा ही बदल दूँ।”

🔷 भाषण बहुत पसन्द किया गया और उसकी सराहना भी की गई, पर सच्चे आत्म-समर्पण वाली माँग पूरा करने के लिए एक भी तैयार न हुआ।

🔶 दूसरे दिन प्रातःकाल स्वामीजी सोकर उठे तो उन्हें दरवाजे से सटी खड़ी एक महिला दिखाई दी। वह हाथ जोड़े खड़ी थी।

🔷 स्वामीजी ने उससे इतने सवेरे इस प्रकार आने का प्रयोजन पूछा, तो उसने रूंधे कंठ और भरी आँखों से कहा- भगवन्! कल आपने दुनिया का नक्शा बदलने के लिए सच्चे मन से आत्म-समर्पण करने वाले बीस साथियों की माँग की थी। उन्नीस कहाँ से आयेंगे यह मैं नहीं जानती, पर एक मैं आपके सामने हूँ। इस समर्पित मन और मस्तिष्क का आप चाहे जो उपयोग करें।

🔶 स्वामी विवेकानन्द गद्-गद् हो गये। इस भद्र महिला को लेकर वे भारत आये। उसने हिन्दू साध्वी के रूप में नव-निर्माण के लिए जो अनुपम कार्य किया उसे कौन नहीं जानता। वह महिला थी भगिनी निवेदिता- पूर्व नाम था मिस नोबल।

📖 अखण्ड ज्योति 1968 मार्च पृष्ठ 1
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1968/March/v1.3

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...