'उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए' का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, समाज सुधारक युवा युग-पुरुष 'स्वामी विवेकानंद' का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (वर्तमान में में कोलकाता) में हुआ। इनके जन्मदिन को ही राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
🌹 स्वामी विवेकानंद का जन्म परिचय
स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को गौड़ मोहन मुखर्जी स्ट्रीट,कोलकाता में हुआ था. उस दिन हिन्दू कालदर्शक के अनुसार संवत् १९२० की मकर सक्रांति का दिन था. आज हम स्वामी जी के जन्मदिवस को केरियर डे के रूप में मनाते हैं, स्वामी विवेकानन्द आज की युवा पीढ़ी के सच्चे मार्गदर्शक हैं उनके कार्यो और शिक्षाओ पर चलकर जीवन में हर असंभव सफलता के द्वार खोले जा सकते हैं, स्वामी विवेकानंद जी के बचपन का नाम नरेन्द्र था, जो बचपन से ओजस्वी वाणी और ज्ञानवान थे स्वामी जी १८९३ के विश्व सर्व घर्म सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. और अपने विचारो और सोच से पूरी दुनिया के गुरू कहलाये।
एक कालीन परिवार में जन्मे नरेन्द्र घर्म और आद्यात्मिक की तरफ बचपन से ही उनका झुकाव था. स्वामी जी के गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस थे. उनकी शिक्षाए और बातो से नरेन्द्र बहुत प्रभावित हुए, विवेकानंद ने परमहंस से ही सिखा कि हर एक आत्मा में परमात्मा का वास होता हैं इसी सोच ने नरेन्द्र के नजरिये और सोच में बड़ा बदलाव आया।
आज हमारे देश में स्वामी विवेकानंद को एक महान संत, और राष्ट्र सुधारक समझे जाते हैं इसी कारण 12 जनवरी को उनके जन्मदिन को राष्ट्रिय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं।
🌹 स्वामी विवेकानन्द का बचपन
स्वामी जी के पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कलकत्ता हाई कोर्ट के जाने-माने वकील थे.और दादा दुर्गा चरण जी फारसी और संस्कर्त के ज्ञाता थे.माँ भुवनेश्वरी देवी स्वामी जी की माता जी का नाम था. जो कि एक धार्मिक स्वभाव की महिला थी. उनका अधिकतर समय महादेव की पूजा में ही व्यतीत होता था. उनकी सोच और विचारो का बालक नरेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा बालपन में ही स्वामी जी तेज बुद्दी और ओजस्वी होने के साथ-साथ बड़े नटकट थे. वो अध्यापको और किसी का मजाक उड़ाने में पीछे नहीं हटते थे. बचपन में ही उन्हें माता से धार्मिक पाठ और रामायण सुनना बहुत पसंद था उनके घर में हमेशा भजन कीर्तन हुआ करते थे. इस प्रकार के वातावरण में उनमे गहरी घार्मिक आस्था का जन्म हुआ और भगवान् को जानने का रहस्य उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना दिया जब भी उन्हें कोई ज्ञानी पंडित मिलते उन्हें ईश्वर के स्वरूप के बारे में जरुर पूछते. स्वामी विवेकानंद ने 25 वर्ष की उम्रः में ही घर छोड़ सन्यासी बन गये थे।
🌹 स्वामी विवेकानंद की शिक्षा
मात्र आठ वर्ष की उम्रः में नरेन्द्र ने कलकता के प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान ईश्वर चंद्र विद्यासागर में दाखिला लिया. फिर उनका परिवार रायपुर आ बसा फिर से कलकता लोटे और प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढाई की और इस कॉलेज से फस्ट डिविजन से उत्तीर्ण करने वाले नरेन्द्र पहले छात्र थे।
नरेन्द्र बचपन से ही घार्मिक, इतिहास, समाज, कला और साहित्य के किताबो और ग्रंथो को पढने में अधिक रूचि रखते थे. साथ ही रामायण, महाभारत और गीता व् वेदों को गहन अध्ययन किया करते थे. स्वामी जी ने बचपन में भारतीय शास्त्रीय सगीत की भी शिक्षा ली. और नित्य शारीरिक खेलो और व्यायामों में भाग लेते थे. इसके साथ ही नरेन्द्र ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज पिश्चमी सभ्यता और संस्कर्ती का गहन अध्ययन किया. नरेन्द्र ने वर्ष 1881 में ललित कला की परीक्षा पार की और वर्ष 1884 में कला वर्ग में स्नातक पास की।।
नरेन्द्र ने सभी वैज्ञानिकों और शिक्षा शास्त्रियों के ग्रंथो का अध्ययन किया जिनमे डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोज़ा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार, ऑगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन की रचनाये शामिल थी. नरेन्द्र ने कई विदेशी भाषा की पुस्तको का हिन्दी और स्थानीय भाषा बंगाली में अनुवाद भी किया..
नरेन्द्र की कुशाग्र बुद्दी के बारे में हेस्टी नाम के प्रोफ़ेसर ने नरेन्द्र के बारे में कहा की -नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला का एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं।
🌹 स्वामी विवेकानंद का जन्म परिचय
स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी 1863 को गौड़ मोहन मुखर्जी स्ट्रीट,कोलकाता में हुआ था. उस दिन हिन्दू कालदर्शक के अनुसार संवत् १९२० की मकर सक्रांति का दिन था. आज हम स्वामी जी के जन्मदिवस को केरियर डे के रूप में मनाते हैं, स्वामी विवेकानन्द आज की युवा पीढ़ी के सच्चे मार्गदर्शक हैं उनके कार्यो और शिक्षाओ पर चलकर जीवन में हर असंभव सफलता के द्वार खोले जा सकते हैं, स्वामी विवेकानंद जी के बचपन का नाम नरेन्द्र था, जो बचपन से ओजस्वी वाणी और ज्ञानवान थे स्वामी जी १८९३ के विश्व सर्व घर्म सम्मलेन में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. और अपने विचारो और सोच से पूरी दुनिया के गुरू कहलाये।
एक कालीन परिवार में जन्मे नरेन्द्र घर्म और आद्यात्मिक की तरफ बचपन से ही उनका झुकाव था. स्वामी जी के गुरू श्री रामकृष्ण परमहंस थे. उनकी शिक्षाए और बातो से नरेन्द्र बहुत प्रभावित हुए, विवेकानंद ने परमहंस से ही सिखा कि हर एक आत्मा में परमात्मा का वास होता हैं इसी सोच ने नरेन्द्र के नजरिये और सोच में बड़ा बदलाव आया।
आज हमारे देश में स्वामी विवेकानंद को एक महान संत, और राष्ट्र सुधारक समझे जाते हैं इसी कारण 12 जनवरी को उनके जन्मदिन को राष्ट्रिय युवा दिवस के रूप में मनाते हैं।
🌹 स्वामी विवेकानन्द का बचपन
स्वामी जी के पिता जी का नाम विश्वनाथ दत्त था जो कलकत्ता हाई कोर्ट के जाने-माने वकील थे.और दादा दुर्गा चरण जी फारसी और संस्कर्त के ज्ञाता थे.माँ भुवनेश्वरी देवी स्वामी जी की माता जी का नाम था. जो कि एक धार्मिक स्वभाव की महिला थी. उनका अधिकतर समय महादेव की पूजा में ही व्यतीत होता था. उनकी सोच और विचारो का बालक नरेन्द्र पर गहरा प्रभाव पड़ा बालपन में ही स्वामी जी तेज बुद्दी और ओजस्वी होने के साथ-साथ बड़े नटकट थे. वो अध्यापको और किसी का मजाक उड़ाने में पीछे नहीं हटते थे. बचपन में ही उन्हें माता से धार्मिक पाठ और रामायण सुनना बहुत पसंद था उनके घर में हमेशा भजन कीर्तन हुआ करते थे. इस प्रकार के वातावरण में उनमे गहरी घार्मिक आस्था का जन्म हुआ और भगवान् को जानने का रहस्य उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना दिया जब भी उन्हें कोई ज्ञानी पंडित मिलते उन्हें ईश्वर के स्वरूप के बारे में जरुर पूछते. स्वामी विवेकानंद ने 25 वर्ष की उम्रः में ही घर छोड़ सन्यासी बन गये थे।
🌹 स्वामी विवेकानंद की शिक्षा
मात्र आठ वर्ष की उम्रः में नरेन्द्र ने कलकता के प्रसिद्ध शिक्षा संस्थान ईश्वर चंद्र विद्यासागर में दाखिला लिया. फिर उनका परिवार रायपुर आ बसा फिर से कलकता लोटे और प्रेसीडेंसी कॉलेज में पढाई की और इस कॉलेज से फस्ट डिविजन से उत्तीर्ण करने वाले नरेन्द्र पहले छात्र थे।
नरेन्द्र बचपन से ही घार्मिक, इतिहास, समाज, कला और साहित्य के किताबो और ग्रंथो को पढने में अधिक रूचि रखते थे. साथ ही रामायण, महाभारत और गीता व् वेदों को गहन अध्ययन किया करते थे. स्वामी जी ने बचपन में भारतीय शास्त्रीय सगीत की भी शिक्षा ली. और नित्य शारीरिक खेलो और व्यायामों में भाग लेते थे. इसके साथ ही नरेन्द्र ने स्कॉटिश चर्च कॉलेज पिश्चमी सभ्यता और संस्कर्ती का गहन अध्ययन किया. नरेन्द्र ने वर्ष 1881 में ललित कला की परीक्षा पार की और वर्ष 1884 में कला वर्ग में स्नातक पास की।।
नरेन्द्र ने सभी वैज्ञानिकों और शिक्षा शास्त्रियों के ग्रंथो का अध्ययन किया जिनमे डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोज़ा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार, ऑगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन की रचनाये शामिल थी. नरेन्द्र ने कई विदेशी भाषा की पुस्तको का हिन्दी और स्थानीय भाषा बंगाली में अनुवाद भी किया..
नरेन्द्र की कुशाग्र बुद्दी के बारे में हेस्टी नाम के प्रोफ़ेसर ने नरेन्द्र के बारे में कहा की -नरेंद्र वास्तव में एक जीनियस है। मैंने काफी विस्तृत और बड़े इलाकों में यात्रा की है लेकिन उनकी जैसी प्रतिभा वाला का एक भी बालक कहीं नहीं देखा यहाँ तक की जर्मन विश्वविद्यालयों के दार्शनिक छात्रों में भी नहीं।