🔶 एक गाँव मे एक संत आये हुये थे श्री रामदास कुछ दिनो तक वो वही पर सत्संग का प्रवचन करने के लिये ठहरे हुये थे वो बहुत ही शालीन स्वभाव के थे और स्वयं के हाथों से सात्विक आहार बनाकर ग्रहण करते थे!
🔷 एक बार एक युवक आया और उसने रामदास जी से अपने घर भोजन ग्रहण करने के लिये कहा तो महात्मा जी ने कहा वत्स मैं अन्यत्र कही भोजन नही करता हूँ ये मेरा नियम है पर वो युवक बड़ी जिद्दी करने लगा और बार बार समझाने पर भी जब वो न समझा तो रामदास जी ने उसका दिल रखने के लिये अपनी स्वीकृति दे दी!
🔶 अगले दिन महात्मा जी उसके घर भोजन करने को गये तो उस युवक ने भोजन का थाल लगाया नाना प्रकार के व्यंजन बनाये और उस थाल मे परोसकर महात्माजी के आगे रखे और फिर महात्माजी ने हाथ जोड़कर भगवान को प्रणाम किया और जैसे ही महात्माजी ने आँखे खोली तो उस युवक ने महात्मा जी से कहा रे ढोंगी तु तो कही भोजन नही करता फिर यहाँ क्यों आया और उसने उन्हे काफी अपशब्द कहे फिर महात्मा जी वहाँ से मुस्कुराकर चले गये और बारम्बार भगवान श्री राम का शुक्रिया अदा कर रहे थे!
🔷 श्री रामदास जी की वो मुस्कुराहट और उनके द्वारा भगवान श्री राम जी को शुक्रिया अदा करना उस युवक के समझ मे न आया और बारबार श्री रामदास जी की वो मुस्कुराहट एक तीर की तरह उसके सीने मे उतर गई और फिर जिस दिन कथा की पूर्णाहुति थी वो युवक श्री रामदास जी के पास गया और क्षमा प्रार्थना करने लगा तो महात्माजी ने उन्हे तत्काल क्षमा कर दिया!
🔶 युवक ने कहा देव उसदिन जब मैंने आपको इतने असभ्य शब्द बोले तो आपने वापिस प्रति उत्तर क्यों न दिया ? और रामजी का शुक्रिया अदा क्यों कर रहे थे?
🔷 हॆ वत्स दो कारण थे एक तो मेरे गुरुदेव ने मुझसे कहा था की बेटा रामदास जब भी कोई तुझे असभ्य शब्द बोले तो अपने नाम को उल्टा कर के समझ लेना अर्थात सदा मरा हुआ समझ लेना वो जो कहे उसे सुनना ही मत! और यदि तु सुन भी ले तो तु यही समझना की ये अपने असभ्य खानदान का परिचय दे रहा है और जब कोई सामने वाला अपना परिचय दे तो तु भी अपना परिचय देना और हर परिस्तिथि मे मुस्कुराहट और सभ्यता के साथ पेश आना और चुकी तुम्हे संत बनना है तो संयम ही संत का और उसके खानदान का परिचय है तो तु संयम से अपना परिचय देना कही तु अपना आपा मत खो देना कही तु भी उसकी तरह असंयमितता का परिचय मत दे देना!
🔶 और मैं श्री राम जी का इसलिये शुक्रिया अदा कर रहा था की हॆ मेरे राम तुने नियम भी बचा लिया और गूरू आदेश भी! और आज मैं संतुष्ट होकर तुम्हारे गाँव से जा रहा हूँ और एक बार फिर से रामजी का आभार प्रकट करता हूँ!
🔷 युवक ने कहा पर आप अब क्यों आभार प्रकट कर रहे है?
🔶 रामदास जी ने कहा बेटा तेरा ह्रदय परिवर्तन हो गया और तेरे गाँव मे आना मेरा सार्थक हो गया और वो युवक संत श्री के चरणों मे गिर गया!
http://awgpskj.blogspot.com/2016/06/blog-post_23.html
🔷 एक बार एक युवक आया और उसने रामदास जी से अपने घर भोजन ग्रहण करने के लिये कहा तो महात्मा जी ने कहा वत्स मैं अन्यत्र कही भोजन नही करता हूँ ये मेरा नियम है पर वो युवक बड़ी जिद्दी करने लगा और बार बार समझाने पर भी जब वो न समझा तो रामदास जी ने उसका दिल रखने के लिये अपनी स्वीकृति दे दी!
🔶 अगले दिन महात्मा जी उसके घर भोजन करने को गये तो उस युवक ने भोजन का थाल लगाया नाना प्रकार के व्यंजन बनाये और उस थाल मे परोसकर महात्माजी के आगे रखे और फिर महात्माजी ने हाथ जोड़कर भगवान को प्रणाम किया और जैसे ही महात्माजी ने आँखे खोली तो उस युवक ने महात्मा जी से कहा रे ढोंगी तु तो कही भोजन नही करता फिर यहाँ क्यों आया और उसने उन्हे काफी अपशब्द कहे फिर महात्मा जी वहाँ से मुस्कुराकर चले गये और बारम्बार भगवान श्री राम का शुक्रिया अदा कर रहे थे!
🔷 श्री रामदास जी की वो मुस्कुराहट और उनके द्वारा भगवान श्री राम जी को शुक्रिया अदा करना उस युवक के समझ मे न आया और बारबार श्री रामदास जी की वो मुस्कुराहट एक तीर की तरह उसके सीने मे उतर गई और फिर जिस दिन कथा की पूर्णाहुति थी वो युवक श्री रामदास जी के पास गया और क्षमा प्रार्थना करने लगा तो महात्माजी ने उन्हे तत्काल क्षमा कर दिया!
🔶 युवक ने कहा देव उसदिन जब मैंने आपको इतने असभ्य शब्द बोले तो आपने वापिस प्रति उत्तर क्यों न दिया ? और रामजी का शुक्रिया अदा क्यों कर रहे थे?
🔷 हॆ वत्स दो कारण थे एक तो मेरे गुरुदेव ने मुझसे कहा था की बेटा रामदास जब भी कोई तुझे असभ्य शब्द बोले तो अपने नाम को उल्टा कर के समझ लेना अर्थात सदा मरा हुआ समझ लेना वो जो कहे उसे सुनना ही मत! और यदि तु सुन भी ले तो तु यही समझना की ये अपने असभ्य खानदान का परिचय दे रहा है और जब कोई सामने वाला अपना परिचय दे तो तु भी अपना परिचय देना और हर परिस्तिथि मे मुस्कुराहट और सभ्यता के साथ पेश आना और चुकी तुम्हे संत बनना है तो संयम ही संत का और उसके खानदान का परिचय है तो तु संयम से अपना परिचय देना कही तु अपना आपा मत खो देना कही तु भी उसकी तरह असंयमितता का परिचय मत दे देना!
🔶 और मैं श्री राम जी का इसलिये शुक्रिया अदा कर रहा था की हॆ मेरे राम तुने नियम भी बचा लिया और गूरू आदेश भी! और आज मैं संतुष्ट होकर तुम्हारे गाँव से जा रहा हूँ और एक बार फिर से रामजी का आभार प्रकट करता हूँ!
🔷 युवक ने कहा पर आप अब क्यों आभार प्रकट कर रहे है?
🔶 रामदास जी ने कहा बेटा तेरा ह्रदय परिवर्तन हो गया और तेरे गाँव मे आना मेरा सार्थक हो गया और वो युवक संत श्री के चरणों मे गिर गया!
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