प्रशंसा का मिठास चखिए और दूसरों को चखाइए
कोरे कागज पर काली स्याही के अक्षर छपाकर इस माध्यम द्वारा हम अपने हृदयगत भावों को आपकी अंतःचेतना में उड़ेलने का प्रयत्न कर रहे हैं। हमारा लिखना और आपका पढना निःस्सार है यदि किसी कर्म प्रवृत्ति के लिए इससे प्रेरणा न मिले। आज इस पुस्तक को साक्षी बनाकर हम-आप हृदय से हृदय का वार्तालाप कर रहे हैं। आपके विचार इस समय एकांत की शांति में हैं इस अवसर पर हम अपनी समस्त सद्भावनाओं को एकत्रित करके, आपके सच्चे हित चिंतन से प्रेरित होकर, घुटने टेक कर विनयपूर्वक यह प्रार्थना कर रहे हैं कि बंधु जीवन की अमूल्य घडियो का महत्त्व समझो, सुर दुर्लभ मानव जीवन को यो ही बर्बाद मत करो, नरक की यातना में मत तपो, यह बिलकुल आपके हाथ की बात है कि आज के अव्यस्थित जीवन को स्वर्गीय आनंद से परिपूर्ण बना लें। पिछले दिनों आपसे गलतियाँ हो चुकी हैं इसके लिए न तो लज्जित होने की जरूरत है और न दु:खी, या निराश होने की। सच्चा पश्चाताप यह है कि गलती की पुनरावृत्ति न होने दी जाए। बुरे भूतकाल को यदि आप नापसंद करते और अच्छे भविष्य की आशा करते हैं तो वर्तमान काल का सुव्यवस्थित रीति से निर्माण करना आरंभ कर दीजिए। वह शुभ आज ही है, अब ही है, इसी क्षण ही है जबकि अपने चिर संचित सद्ज्ञान को कार्य रूप में लाना चाहिए। अब आप इसके लिए तत्पर हो जाइए कि उत्तम श्रेणी का, उच्चकोटि का, सद्गुणों से परिपूर्ण जीवन बिताते हुए इस लोक और परलोक में दिव्य आनंद का उपभोग करेंगे।
सात्विक जीवन में प्रवेश पाने के लिए आप अच्छे गुणों को अपने में धारण करने का प्रयत्न आरंभ कर दीजिए। विनय, नम्रता, मुस्कराहट, प्रसन्नता, मधुर भाषण, प्रेमभाव, आत्मीयता-यह सब प्रशंसनीय गुण हैं, यदि आपके भीतर पुराने दुर्भावों के संचित संस्कार भरे हैं और वे मन ही मन झुँझलाहट, क्रोध, स्वार्थ जैसी निम्नकोटि की आदतों को भड़काते रहते हैं तो हताश मत हूजिए ।
बाहरी मन से ही सही, बनावट से ही सही, इन गुणों को नकली तौर से प्रकट करना आरंभ कीजिए। मन में चिड़चिड़ाहट हो भीतर ही भीतर क्रोध आ रहा हो, इतने में कोई बाहर का आदमी आता है तो आप भीतर की वृत्तियों को बदल दीजिए और चेहरे पर प्रसन्नता की रेखाएँ प्रकट करिए मुस्कराइए और हँसते उसका अभिवादन कीजिए। किसी अन्य कारण से क्रोध आ रहा है तो भी मधुर भाषण करिए नाराजी को दबा दीजिए। यदि किसी के प्रति प्रेम या आत्मीयता की न्यूनता है तो भी उसे कुछ बढा कर प्रकट करने का प्रयत्न करिए। मन में बसने वाले दुर्भावों को दबा कर उनके स्थान पर सद्भावों को जरा बढा-चढा कर प्रकट करने का अभ्यास आरंभ कीजिए। अभ्यास से किसी काम में सफलता मिलती है। जो गुण सोए हुए पड़े हैं, उन्हें जगाने के लिए बनावटी सहारा लगाने की आवश्यकता पड़े तो वैसा करना चाहिए। छोटे बालक को खड़ा होना और चलना सिखाने के लिए लकड़ी की गाडी का सहारा दिया जाता है या उँगली पकड़ कर चलाया जाता है। निस्संदेह यह बनावटी सहायता है, इसकी तुलना अपने आप दौड़ने वाले बालक की सफलता से नहीं हो सकती तो भी अपने समय पर वह भी आवश्यक है।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आंतरिक उल्लास का विकास पृष्ठ ३७
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