🔴 पहला अध्याय
कः कालः कानि मित्राणि, को देशः कौ व्ययाऽऽगमौ।
कश्चाहं का च मे शक्तिरितिचिन्त्यं मुहुर्मुहः॥
-चाणक्य नीति 4.18
🔵 ''कौन सा समय है, मेरे मित्र कौन हैं, शत्रु कौन हैं, कौन सा देश (स्थान) है, मेरी आय-व्यय क्या है, मैं कौन हूँ, मेरी शक्ति कितनी है? इत्यादि बातों का बराबर विचार करते रहो।'' सभी विचारकों ने ज्ञान का एक ही स्वरूप बताया है, वह है ''आत्म-बोध''। अपने सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद कुछ जानना शेष नहीं रह जाता। जीव असल में ईश्वर ही है। विचारों से बँधकर वह बुरे रूप में दिखाई देता है, परन्तु उसके भीतर अमूल्य निधि भरी हुई है। शक्ति का वह केन्द्र है और इतना है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। सारी कठिनाइयाँ, सारे दुःख इसी बात के हैं कि हम अपने को नहीं जानते। जब आत्म स्वरूप को समझ जाते हैं, तब किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं रहता।
🔴 आत्म स्वरूप का अनुभव करने पर वह कहता है-
''नाहं जातो जन्म मृत्यु कुतो मे, नाहं प्राणः क्षुस्मिपासे कुतो मे।
नाहं चित्तं शोक मोहौ कुतो मे, नाहं कर्ता बंध मोक्षौ कुतो मे॥''
🔵 मैं उत्पन्न नहीं हुआ हूँ, फिर मेरा जन्म-मृत्यु कैसे? मैं प्राण नहीं हूँ, फिर भूख-प्यास मुझे कैसी? मैं चित्त नहीं हूँ, फिर मुझे शोक-मोह कैसे? मैं कर्ता नहीं हूँ, फिर मेरा बन्ध-मोक्ष कैसे?
🌹 क्रमशः जारी 🌹
🌹 मैं क्या हूँ? 🌹
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य 🌹
कः कालः कानि मित्राणि, को देशः कौ व्ययाऽऽगमौ।
कश्चाहं का च मे शक्तिरितिचिन्त्यं मुहुर्मुहः॥
-चाणक्य नीति 4.18
🔵 ''कौन सा समय है, मेरे मित्र कौन हैं, शत्रु कौन हैं, कौन सा देश (स्थान) है, मेरी आय-व्यय क्या है, मैं कौन हूँ, मेरी शक्ति कितनी है? इत्यादि बातों का बराबर विचार करते रहो।'' सभी विचारकों ने ज्ञान का एक ही स्वरूप बताया है, वह है ''आत्म-बोध''। अपने सम्बन्ध में पूरी जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद कुछ जानना शेष नहीं रह जाता। जीव असल में ईश्वर ही है। विचारों से बँधकर वह बुरे रूप में दिखाई देता है, परन्तु उसके भीतर अमूल्य निधि भरी हुई है। शक्ति का वह केन्द्र है और इतना है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। सारी कठिनाइयाँ, सारे दुःख इसी बात के हैं कि हम अपने को नहीं जानते। जब आत्म स्वरूप को समझ जाते हैं, तब किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं रहता।
🔴 आत्म स्वरूप का अनुभव करने पर वह कहता है-
''नाहं जातो जन्म मृत्यु कुतो मे, नाहं प्राणः क्षुस्मिपासे कुतो मे।
नाहं चित्तं शोक मोहौ कुतो मे, नाहं कर्ता बंध मोक्षौ कुतो मे॥''
🔵 मैं उत्पन्न नहीं हुआ हूँ, फिर मेरा जन्म-मृत्यु कैसे? मैं प्राण नहीं हूँ, फिर भूख-प्यास मुझे कैसी? मैं चित्त नहीं हूँ, फिर मुझे शोक-मोह कैसे? मैं कर्ता नहीं हूँ, फिर मेरा बन्ध-मोक्ष कैसे?
🌹 क्रमशः जारी 🌹
🌹 मैं क्या हूँ? 🌹
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य 🌹