सोमवार, 4 मार्च 2019

👉 आध्यात्मिक आदर्श के मूर्तिमान देवता भगवान शिव (अन्तिम भाग)

भगवान् शिव का वाहन वृषभ है। वृषभ सौम्यता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है। तात्पर्य यह कि शिव का साहचर्य उन्हें मिलता है। जो स्वभाव से सरल और सौम्य होते हैं, जिनमें छल-छिद्र आदि विकार नहीं होते। साथ ही जिनमें आलस्य न होकर निरन्तर काम करने की दृढ़ता होती है। श्मशान में उनका निवास है अर्थात् वे मृत्यु को कभी भूलते नहीं। भगवान की शक्ति और नियमों को मृत्यु की तरह अकाट्य मानकर चलने में मनुष्य की आध्यात्मिक वृत्तियां जागृत रहती हैं जिससे वह लौकिक कर्त्तव्यों का पालन करते हुए भी अपने जीवन-लक्ष्य की ओर निष्काम भाव से चलता रह सकता है। मृत्यु को लोग भूले रहते हैं, इसलिए कर्म करते हैं। इस महातत्त्व की उपासना का अर्थ अपने आपको बुरे कर्मों से बचाये रखने के लिये प्रकाश बनाए रखना होता है। इस तरह की जीवन-व्यवस्था व्यक्ति को असाधारण बनाती है। वह शक्ति शिव में पाई जाती है, शिव के उपासकों में भी वह वृत्तियां धुली हुई होनी चाहिए।

यह प्रसंग भगवान् शिव की आध्यात्मिक शक्तियों पर प्रकाश डालते हैं। इनके साथ कथानक और घटनायें भी जुड़ी हुई हैं जो जीवन के आदर्शों की व्याख्या करती हैं इनमें से गंगावतरण की कथा मुख्य है। गंगाजी विष्णुलोक से आती हैं। यह अवतरण महान् आध्यात्मिक शक्ति के रूप में होता है। उसे संभालने का प्रश्न बड़ा विकट था। शिवजी को इसके उपयुक्त समझा गया और भगवती गंगा को उनकी जटाओं में आश्रय मिला। गंगाजी यहां ज्ञान की प्रचण्ड आध्यात्मिक शक्ति के रूप में अवतरित होती हैं। लोक-कल्याण के लिए उसे धरती पर प्रवाहित करने की बात है ताकि अज्ञान से मरे हुए लोगों को जीवन दान मिल सके पर उस ज्ञान को धारण करना भी तो कठिन बात थी जिसे शिव जैसा संकल्प-शक्ति वाला महापुरुष ही धारण कर सकता है। अर्थात् महान बौद्धिक क्रान्तियों का सृजन भी कोई ऐसा व्यक्ति ही कर सकता है जिसके जीवन में भगवान शिव के आदर्श समाये हुए हों वही ब्रह्म-ज्ञान को धारण कर उसे लोक हितार्थ प्रवाहित कर सकता है।

गृहस्थ होकर भी पूर्ण योगी होना शिवजी के जीवन की महत्वपूर्ण घटना है। सांसारिक व्यवस्था को चलाकर भी वे योगी रहते हैं। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। वे अपनी धर्मपत्नी को भी मातृशक्ति के रूप में देखते हैं। यह उनकी महानता का दूसरा आदर्श है। यहां उन्होंने सिद्ध कर दिया है कि गृहस्थ रहकर भी आत्म-कल्याण की साधना असम्भव नहीं। जीवन में पवित्रता रखकर उसे हंसते खेलते पूरा किया जा सकता है।

यह सभी आदर्श इस बात की शिक्षा देते हैं कि मनुष्य शिव की तरह के पदार्थों और समाज में प्रचलित परम्पराओं का आध्यात्मिक मूल्यांकन करना सीख ले तो निस्सन्देह उसका शारीरिक और सामाजिक जीवन अधिकाधिक निरापद होता चला जायेगा। संक्षेप में कहा जा सकता है कि शिव मानव-जीवन की उन सभी आध्यात्मिक विशेषताओं के प्रतीक हैं जिनके बिना मनुष्य-जीवन पाने का अर्थ हल नहीं होता। मनुष्य का धर्म उसकी विवेक-बुद्धि है जिसके सहारे वह ज्ञान-विज्ञान की ओर अग्रसर होता है और मनुष्य से देव बनने में समर्थ होता है। इस की सामर्थ्य प्राप्त करके ही आत्म कल्याण और लोक-हित की परम्परा जीवित रखी जा सकती है। यह सन्देश हमें आदिकाल से भगवान् शिव देते चले आ रहे हैं। इन आध्यात्मिक रहस्यों की ओर से हमें उपेक्षा नहीं रखनी चाहिये।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 आध्यात्मवादी भौतिकता अपनाई जाय पृष्ठ 143-145


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