👉 आध्यात्मिक चिकित्सा का मूल है आस्तिकता
वैज्ञानिक समुदाय को हार मानकर यह बात स्वीकारनी पड़ी कि जीवन के सभी तन्तु एक दूसरे से गहराई से गुँथे हैं। जीवन और जगत् अपनी गहराइयों में परस्पर जुड़े हैं। इन्हें अलग समझना भारी भूल है। ये वैज्ञानिक निष्कर्ष ही प्रकारान्तर से इकॉलॉजी, इकोसिस्टम, डीप इकॉलॉजी एवं इन्वायरन्मेटल साइकोलॉजी जैसी शब्दावली के रूप में प्रकाशित हुए। इन तथ्यों को यदि अहंकारी हठवादिता को त्यागते हुए स्वीकारें तो इसे आस्तिकता के अस्तित्व की स्वीकारोक्ति ही कहेंगे। इस वैज्ञानिक निष्कर्ष के बारे में युगों पूर्व श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया था- ‘सूत्रे मणिगणाइव’। यानि कि जीवन के सभी रूप एक परम दिव्य चेतना के सूत्र में मणियों की भाँति गुँथे हैं। उपनिषदों ने इसी सच्चाई को ‘अयमात्मा ब्रह्म’ कहकर प्रतिपादित किया। इसका मतलब यह है कि यह मेरी अन्तरात्मा ही ब्राह्मी चेतना का विस्तार है। इसे यूँ भी कहा जा सकता है कि अपने जीवन का भाव भरा विस्तार ही यह जगत् है। अपने विस्तार में ही समष्टि है।
उपनिषद् युग की इन अनुभूतियों को कई मनीषी इस वैज्ञानिक युग में भी उपलब्ध कर रहे हैं। और यही वजह है कि उन्होंने आस्तिकता को आध्यात्मिक चिकित्सा के सर्वमान्य सिद्धान्त के रूप में मान्यता दी है। इन्हीं में एक टी.एल. मिशेल का कहना है कि आस्तिकता से इन्कार जीवन चेतना को विखण्डित कर इसे अपंग- अपाहिज बना देता है। इस इन्कार से जीवन में अनेकों नकारात्मक भाव पैदा होते हैं, जिनके बद्धमूल होने से कई तरह के रोगों के होने की सम्भावना पनपती है। उनका यह भी मत है कि यदि आस्तिकता को सही अर्थों में समझा एवं आत्मसात कर लिया जाय तो निजी जिन्दगी में पनपती हुई कई तरह की मनोग्रन्थियों से छुटकारा पाया जा सकता है।
इस सम्बन्ध में अंग्रेज पत्रकार एवं लेखक पॉल ब्रॉन्टन की अनुभूति बहुत ही मधुर है। कई देशों की यात्रा करने के बाद पॉल ब्रॉन्टन भारत वर्ष आए। अपनी खोजी प्रकृति के कारण यहाँ वे कई महान् विभूतियों से मिले। इनमें से कई सिद्ध और चमत्कारी महापुरुष भी थे। लेकिन ये सभी चमत्कार, अचरज से भरे करतब उनकी जिज्ञासाओं का समाधान न दे पाए। इन सारी भेंट मुलाकातों के बावजूद उनके सवाल अनुत्तरित रहे। मन जस का तस अशान्त रहा। वे अपने आप में आध्यात्मिक चिकित्सा की गहरी आवश्यकता महसूस कर रहे थे। पर यह सम्भव कैसे हो? अपने सोच- विचार एवं चिन्तन के इन्हीं क्षणों में उन्हें महर्षि रमण का पता चला।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 19
वैज्ञानिक समुदाय को हार मानकर यह बात स्वीकारनी पड़ी कि जीवन के सभी तन्तु एक दूसरे से गहराई से गुँथे हैं। जीवन और जगत् अपनी गहराइयों में परस्पर जुड़े हैं। इन्हें अलग समझना भारी भूल है। ये वैज्ञानिक निष्कर्ष ही प्रकारान्तर से इकॉलॉजी, इकोसिस्टम, डीप इकॉलॉजी एवं इन्वायरन्मेटल साइकोलॉजी जैसी शब्दावली के रूप में प्रकाशित हुए। इन तथ्यों को यदि अहंकारी हठवादिता को त्यागते हुए स्वीकारें तो इसे आस्तिकता के अस्तित्व की स्वीकारोक्ति ही कहेंगे। इस वैज्ञानिक निष्कर्ष के बारे में युगों पूर्व श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया था- ‘सूत्रे मणिगणाइव’। यानि कि जीवन के सभी रूप एक परम दिव्य चेतना के सूत्र में मणियों की भाँति गुँथे हैं। उपनिषदों ने इसी सच्चाई को ‘अयमात्मा ब्रह्म’ कहकर प्रतिपादित किया। इसका मतलब यह है कि यह मेरी अन्तरात्मा ही ब्राह्मी चेतना का विस्तार है। इसे यूँ भी कहा जा सकता है कि अपने जीवन का भाव भरा विस्तार ही यह जगत् है। अपने विस्तार में ही समष्टि है।
उपनिषद् युग की इन अनुभूतियों को कई मनीषी इस वैज्ञानिक युग में भी उपलब्ध कर रहे हैं। और यही वजह है कि उन्होंने आस्तिकता को आध्यात्मिक चिकित्सा के सर्वमान्य सिद्धान्त के रूप में मान्यता दी है। इन्हीं में एक टी.एल. मिशेल का कहना है कि आस्तिकता से इन्कार जीवन चेतना को विखण्डित कर इसे अपंग- अपाहिज बना देता है। इस इन्कार से जीवन में अनेकों नकारात्मक भाव पैदा होते हैं, जिनके बद्धमूल होने से कई तरह के रोगों के होने की सम्भावना पनपती है। उनका यह भी मत है कि यदि आस्तिकता को सही अर्थों में समझा एवं आत्मसात कर लिया जाय तो निजी जिन्दगी में पनपती हुई कई तरह की मनोग्रन्थियों से छुटकारा पाया जा सकता है।
इस सम्बन्ध में अंग्रेज पत्रकार एवं लेखक पॉल ब्रॉन्टन की अनुभूति बहुत ही मधुर है। कई देशों की यात्रा करने के बाद पॉल ब्रॉन्टन भारत वर्ष आए। अपनी खोजी प्रकृति के कारण यहाँ वे कई महान् विभूतियों से मिले। इनमें से कई सिद्ध और चमत्कारी महापुरुष भी थे। लेकिन ये सभी चमत्कार, अचरज से भरे करतब उनकी जिज्ञासाओं का समाधान न दे पाए। इन सारी भेंट मुलाकातों के बावजूद उनके सवाल अनुत्तरित रहे। मन जस का तस अशान्त रहा। वे अपने आप में आध्यात्मिक चिकित्सा की गहरी आवश्यकता महसूस कर रहे थे। पर यह सम्भव कैसे हो? अपने सोच- विचार एवं चिन्तन के इन्हीं क्षणों में उन्हें महर्षि रमण का पता चला।
.... क्रमशः जारी
✍🏻 डॉ. प्रणव पण्ड्या
📖 आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति पृष्ठ 19