“चकमक पत्थर चाहे सौ वर्ष तक जल में पड़ा रहे तो भी उसकी अग्नि नष्ट नहीं होती। उस जल से निकाल कर लोहे पर मारते ही चिनगारी निकलने लगती है। इसी प्रकार ईश्वर पर विश्वास रखने वाले व्यक्ति चाहे हजारों अपवित्र-संसारी लोगों के बीच में पड़े रहें तो भी उनकी श्रद्धा और भक्ति बनी रहेंगी।”
जिनका मनोबल इस योग्य नहीं होता कि चिन्तन और मनन के सहारे आत्म सुधार और आत्म विकास का प्रयोजन कर सके। उनके लिए वस्तुपरक एवं क्रियापरक कर्मकाण्डों का आश्रय लेना ही उपयुक्त पड़ता है। अपने दोष दुर्गुणों को ढूँढ़ निकालना और उन्हें सुधारने तक आत्म-शोधन तक की साधना में निरत रहना होता है। विचारों से विचारों को काटने की प्रणाली अपनानी पड़ती है। पर इस सबके लिए बलिष्ठ मनोबल चाहिए। उसमें कमी पड़ती हो तो वस्तुओं से, वातावरण से, सहयोग से एवं क्रियाओं में सुधार कार्य को अग्रगामी बनाना पड़ता है।
दुर्जन बनना इसलिए बुरा है कि उससे आत्मा का पतन होता है। व्यक्तित्व का स्तर गिरता है और अप्रामाणिक समझे जाने पर स्नेह सहयोग का रास्ता बन्द होता है। सज्जनता के अनेक गुण हैं। उनके कारण मनुष्य देवोपम एवं श्रद्धा का पात्र बनता है। उसमें बुराई का समावेश तब होता है जब अतिशय भावुकता प्रदर्शित की जाती है और वह सतर्कता चली जाती है जिसकी कसौटी पर कसकर वस्तुस्थिति समझी जाती है।
जिनका मनोबल इस योग्य नहीं होता कि चिन्तन और मनन के सहारे आत्म सुधार और आत्म विकास का प्रयोजन कर सके। उनके लिए वस्तुपरक एवं क्रियापरक कर्मकाण्डों का आश्रय लेना ही उपयुक्त पड़ता है। अपने दोष दुर्गुणों को ढूँढ़ निकालना और उन्हें सुधारने तक आत्म-शोधन तक की साधना में निरत रहना होता है। विचारों से विचारों को काटने की प्रणाली अपनानी पड़ती है। पर इस सबके लिए बलिष्ठ मनोबल चाहिए। उसमें कमी पड़ती हो तो वस्तुओं से, वातावरण से, सहयोग से एवं क्रियाओं में सुधार कार्य को अग्रगामी बनाना पड़ता है।
दुर्जन बनना इसलिए बुरा है कि उससे आत्मा का पतन होता है। व्यक्तित्व का स्तर गिरता है और अप्रामाणिक समझे जाने पर स्नेह सहयोग का रास्ता बन्द होता है। सज्जनता के अनेक गुण हैं। उनके कारण मनुष्य देवोपम एवं श्रद्धा का पात्र बनता है। उसमें बुराई का समावेश तब होता है जब अतिशय भावुकता प्रदर्शित की जाती है और वह सतर्कता चली जाती है जिसकी कसौटी पर कसकर वस्तुस्थिति समझी जाती है।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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