बुधवार, 31 मई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 31 May 2023

🔷 यह सोचना व्यर्थ है कि पारमार्थिक जीवन में हानि अधिक है। सच तो यह है कि पाप-पंक में फँसे रहने पर पग-पग पर, पल-पल पर जो आत्म-प्रताड़ना तथा बाहरी व्यथा-बाधाएँ सहनी पड़ती हैं। उनकी तुलना में दिव्य जीवन में आने वाली विपत्तियाँ नगण्य हैं। यदि कुछ हैं भी तो आदर्शों के लिए किये जाने वाले त्याग, बलिदान के फलस्वरूप मिलने वाले आत्म-संतोष, लोक-सम्मान एवं ईश्वरीय अनुग्रह की उपलब्धियों को देखते हुए अतीव नगण्य हैं।

🔶 यदि मनुष्यता को जीवित रहना है तो उसे एकता और आत्मीयता की दिशा में बढ़ना होगा। मतभेदों की दीवारें गिरानी पड़ेंगी तथा चिंतन और कर्तृत्व की एकरूपता प्रस्तुत कर सकने वाला राजमार्ग बनाना पड़ेगा। जीवन और मरण के बीच और कोई विकल्प नहीं। सद्भावनापूर्वक निर्वाह करने या मर-कट कर नष्ट हो जाने के अतिरिक्त शान्ति का और कोई मार्ग नहीं। मतभेद जितने भी बने रहेंगे विनाश का असुर उतना ही भयावह होता चलेगा।

🔷 सत्य-असत्य का भेद करने के लिए मनोभूमि निष्पक्ष होनी चािहए। उसमें किसी प्रकार के पूर्वाग्रह नहीं होने चाहिए। किसी मान्यता पर आग्रह जमा हो तो मनोभूमि पक्षपात से ग्रसित हो जाएगी, तब अपनी ही बात को किसी न किसी प्रकार सिद्ध करने के लिए बुद्धि-कौशल चलता रहेगा। बुरी से बुरी बात को भली सिद्ध करने के लिए तर्क ढूँढे जा सकते हैं और अपने पक्ष के समर्थन में कितने ही तथ्य तथा उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं। इस तरह के विवादों का कभी अंत नहीं होता।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 सहृदयता में जीवन की सार्थकता (भाग 1)

रूखापन जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन है। कई आदमियों का स्वभाव बड़ा नीरस, रूखा शुष्क, निष्ठुर, कठोर और अनुदार होता है। उनका आत्मीयता का दायरा बहुत ही छोटा और संकुचित होता है । उस दायरे से बाहर के व्यक्तियों तथा पदार्थों में उन्हें कुछ दिलचस्पी नहीं होती, किसी की हानि लाभ, उन्नति अवनति, खुशी रंज, अच्छाई बुराई से उन्हें कुछ मतलब नहीं होता। अपने अत्यन्त ही छोटे दायरे में स्त्री, पुत्र, तिजोरी, मोटर, मकान आदि में उन्हें थोड़ा रस जरूर होता है। बाकी की अन्य वस्तुओं के प्रति उनके मन में बहुत ही अनुदारता पूर्ण रुखाई होती है।

कोई कोई तो इतने कंजूस होते है कि अपने शरीर के अतिरिक्त अपनी छाया पर भी उदारता या कृपा नहीं दिखाना चाहते। इससे भी महान कंजूस इतने बड़े चढ़े होते है कि ये कंजूसी में ही तन्मय हो जाते है, आत्मा के साथ कृपा करना तो दूर शरीर के साथ में भी उदारता दिखाना नहीं चाहते। अच्छे भोजन, अच्छे वस्त्र, अच्छे मकान आदि आवश्यक वस्तुओं में भी आवश्यकता से अधिक कठोरता करते है। ऐसे रूखे आदमी यह समझ ही नहीं सकते कि मनुष्य जीवन में कोई आनन्द भी है, अपने रूखेपन के अत्युत्तर में दुनिया उन्हें बड़ी रूखी, नीरस, कर्कश, खुदगर्ज, कठोर और कुरूप मालूम पड़ती है।

रूखापन जीवन की बड़ी भारी कुरूपता है रूखी रोटी में क्या मजा है, रूखे बाल कैसे खराब लगते है, रूखी मशीन में बड़ी आवाज होती है और पुर्जे जल्दी ही टूट जाते है रूखे रेगिस्तान में जहाँ रेत का सूखा हुआ समुद्र पड़ा है कौन रहना पसंद करेगा। वैसे तो प्राणिमात्र ही विशेष रूप से ऐसे तत्वों से निर्मित है जिसके लिए सरसता की, स्निग्धता की, आवश्यकता है। मनुष्य का अन्तःकरण रसिक है, कवि है भावुक है सौंदर्य उपासक है, कला प्रिय है प्रेम मय है। हृदय का यही गुण है, सहृदयता का अर्थ कोमलता, मधुरता,आर्द्रता है जिसमें यह गुण नहीं उसे हृदय हीन कहा जाता है। हृदय हीन का तात्पर्य है जड़ पशुओं से भी नीचा। नीतिकार का कथन है कि “संगीत साहित्य कला विहीन साक्षात पशुः पुच्छविषाण हीनः” इस उक्ति में कला विहीन-नीरस मनुष्य को पशुओं से भी नीचा ठहराया गया है क्योंकि पशुओं में तो सींग पूछ की दो विशेषताएं तब भी है उस मनुष्य में तो इसका भी अभाव है। 

.... शेष कल
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति- जून 1944 पृष्ठ 5


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