शनिवार, 23 अप्रैल 2016

शिष्य संजीवनी (भाग 36) : हों, सदगुरु की चेतना से एकाकार


 लेकिन जब तक शिष्य का सम्पूर्ण देहभाव विघटित होकर घुल न जाएगा, जब तक समूची अन्तःप्रकृति आत्म सत्ता से पूर्ण हार मानकर उसके अधिकार में न आ जाएगी तब तक महासिद्धि के फूल नहीं खिल सकते। यह पुण्य क्षण तो तब आता है जब एक ऐसी शान्ति का उदय होता है, जो गर्म प्रदेश में भारी वर्षा के पश्चात छाती है। इस गहन और नीरव शान्ति में ही यह रहस्यमय घटना घटित होती है। जो सिद्ध कर देती है कि मार्ग प्राप्ति हो गयी है।

यह क्षण बड़ा मार्मिक है। सिद्धि के ये फूल बड़े अनोखे हैं। इनकी महक भी बड़ी अनूठी है। इन क्षणों के मर्म को वही अनुभव करते हैं जो इन्हें जी रहे हैं। जिनके हृदय अपने सद्गुरु के प्रति श्रद्धा व समर्पण की सघनता से भरे हुए हैं। वे ही इस सत्य की संवेदना का स्पर्श कर पाते हैं। क्योंकि यही वे क्षण हैं जब शिष्यत्व का कमल सुविकसित व सुवासित होता है।

इन्हीं क्षणों में शिष्य की ग्रहण शक्ति जाग्रत् होती है। इस जागृति के साथ- साथ विश्वास, बोध और निश्चय भी प्राप्त होते हैं। ध्यान रहे, ज्यों ही शिष्य सीखने के योग्य हो जाता है, त्यों ही वह स्वीकृत हो जाता है। वह शिष्य मान लिया जाता है और परम पूज्य गुरुदेव उसे अपनी आत्म चेतना में ग्रहण कर लेते हैं।
 
यह घटना विरल होने पर भी सुनिश्चित है। क्योंकि जिस किसी शिष्य ने अपने शिष्यत्व का दीप जला लिया है, उसकी धन्यता छुपी नहीं रहती। उसके दीप की सुप्रकाशित ज्योति सब ओर फैले बिना नहीं रहती। अभी तक इस सूत्र के पहले जो भी नियम बताए गए हैं, वे नियम प्रारम्भिक हैं। ये और बाद में बताए जाने वाले अन्य सभी नियम परम- प्रज्ञा के मन्दिर की दीवारों पर लिखे हैं। जो शिष्य हैं- वे अच्छी तरह से जान लें कि जो मांगेंगे उन्हें जरूर मिलेंगे। जो पढ़ना चाहेंगे, वे अवश्य पढ़ेंगे और जो सीखना चाहेंगे, वे निश्चित रूप से सीखेंगे। इस सूत्र को पढ़ने वाले शिष्यों- इस पर गहन मनन करो। इस पर मनन करते हुए तुम्हें अविचल शान्ति प्राप्ति हो।
 
क्रमशः जारी
डॉ. प्रणव पण्डया
http://hindi.awgp.org/gayatri/AWGP_Offers/Literature_Life_Transforming/Books_Articles/Devo/jaivic

👉 प्रेरणादायक प्रसंग 30 Sep 2024

All World Gayatri Pariwar Official  Social Media Platform > 👉 शांतिकुंज हरिद्वार के प्रेरणादायक वीडियो देखने के लिए Youtube Channel `S...