शुक्रवार, 22 मार्च 2019

Raajtantra Ko Aadhyatmaik Margdarshan | Dr Chinmay Pandya

Look to yourself for Guidance | मार्गदर्शन के लिए अपनी ही ओर देखो | हारि...

👉 समस्या का समाधान

एक चिंताग्रस्त महिला डोक्टर के पास जाती है: 'डॉक्टर, मुझे एक प्रॉब्लम है, और आपकी मदद चाहिए! मेरा बच्चा अभी एक साल का भी नहीं हुआ और मै फिर से pregnant हूँ. I don't want kids so close together.

तब डॉक्टर पूछता है: 'ठीक है, तो मै क्या कर सकता हूँ आपके लिए?' महिला: 'मै चाहती हूँ के आप मेरी प्रेग्नंच्य रोक दो.. मै आपकी शुक्रगुज़ार रहूंगी.' डॉक्टर ने थोड़ी देर सोचा और कुछ शांतता के बाद उसने महिला से कहा: 'मेरे पास इस से अच्छा solution है आपकी प्रॉब्लम के लिए. जिसमे आपको खतरा भी कम है.' वो मुस्कुराई, उसे लगा के डॉक्टर उसका काम कर ही देगा अब.

डॉक्टर बोला: "देखो जैसे तुमने कहा की तुम एक समय पर दो बच्चो की देखभाल नहीं कर सकती, तो वही बच्चा मार देते है जो अभी तुम्हारे पास है. इस तरह तुम्हे आराम के लिए दूसरा बच्चा पैदा होने से पहले और भी वक्त मिल जायेगा. अगर हमें दोनों में से किसी को मरना ही है तो क्या फर्क पड़ता है 'पहला या दूसरा' से."

महिला थोड़ी घबराई और बोली: "नहीं डॉक्टर, कितना भयानक है ऐसा करना. 'I agree'," डॉक्टर बोला. "लेकिन तुम तो कुछ ऐसे ही कह रही थी, इसलिए मैंने सोचा की यही बेहतर उपाय होगा." डॉक्टर हँसा, उसने उसकी बात समझा दी थी.

उसने उस माँ को इस बात से सहमत कराया था के, "पैदा बच्चे को मरना और पैदा होने वाले बच्चे को मरना इसमें कोई फर्क नहीं है. The crime is the same!

"प्यार माने खुद की ज़िन्दगी दुसरो के हित के लिए sacrifice करना" Abortion माने किसी और की ज़िन्दगी अपने हित के लिए sacrifice करना.

👉 प्रज्ञा पुराण (भाग 1) श्लोक 52 से 59

नारद उवाच-

पप्रच्छ नारदो भगवन् स्पष्टतो विस्तरादपि।
किं नु कार्यं मया ब्रूहि मानवै: कारयामि किम्॥५२॥

श्री भगवानुवाच-
उवाच भगवाँस्तात ! हिमाच्छादित एकदा।
उत्तराखण्ड संशोभिन्यारण्यक शुभस्थले॥५३॥
तत्वावधाने प्राज्ञस्य पिप्पलादस्य नारद।
प्रज्ञासत्रसमारम्भो जात: पञ्चदिनात्मक:॥५४॥
अष्टावक्र : श्वेतकेतुरुद्दालकशृङ्गिणौ।
दुर्वासाश्चेति जिज्ञासा: पञ्चाकुर्वन् क्रमादिमे॥५५॥
तत्वदर्शी महाप्राज्ञस्तेषां संमुख एव स:।
संक्षिप्तं ब्रह्मविद्याया: प्रास्तौत्सारं सममृषि:॥५६॥
सर्वसाधारणोऽप्येनं ज्ञातुं बोधयितुं क्षम:।
इह लोके परे चायमृद्धिसिद्धिप्रद: स्मृत:॥५७॥
तं प्रसङ्ग स्मारयामि ध्यानेन हृदये कुरु।
प्रज्ञा पुरगारूपे च योजितं यन्त्रतस्तु तम्॥५८॥
वरिष्ठानामात्मानं तु पूर्व साधारणस्य च।
हृदयगंममेनं त्वं कारयाद्य महामुने ॥५९॥

टीका:- नारद ने पूछा-"भगवन्! और भी स्पष्ट करें कि क्या करना और क्या कराना है। "
भगवान् बोले-"हे तात्! एक बार उत्तराखण्ड के हिमाच्छादित एक शुभ आरण्यक में महाप्राज्ञ पिप्पलाद के तत्वाधान में पाँच दिवसीय 'प्रज्ञा-सत्र' हुआ था। उसमें क्रमश: अष्टावक्र, श्वेतकेतु, शृंगी, उद्दालक और दुर्वासा ने पाँच जिज्ञासाएँ की थीं। तत्वदर्शी महाप्राज्ञ ऋषि ने उनके समक्ष ब्रह्मविद्या का सार-संक्षेप प्रस्तुत किया था वह सर्वसाधारण के समझने-समझाने योग्य है साथ ही लोक- परलोक में उभय-पक्षीय ऋद्धि-सिद्धियाँ प्रदान करने वाला भी है। उस प्रसंग का तुम्हें स्मरण दिलाता हूँ। ध्यान-मग्न होकर हृदयंगम करो सुनियोजित करो और 'प्रज्ञा पुराण' के रूप में सर्वप्रथम वरिष्ठ आत्माओं को तदुपरान्त सर्वसाधारण को हृदयंगम कराओ॥५२-५९॥

व्याख्या:- अध्यात्म विज्ञान के व्यावहारिक शिक्षण की विस्तृत कार्य प्रणाली जानने को उत्सुक देवर्षि को भगवान् एक विशिष्ट प्रज्ञासत्र का स्मरण दिलाते हैं। यह ऋषि प्रणाली है कि किसी भी तथ्य का समर्थन, प्रतिपादन प्रत्यक्ष उदाहरणों द्वारा किया जाय। ध्यान मग्न नारद को भगवान ने ज्ञान सत्रों में हुई चर्चा को संक्षेप में अपनी परावाणी, विचार सम्प्रेषण द्वारा समझा दिया एवं अग्रदूतों तक इसे पहुँचाने, उन्हें इस ज्ञान आलोक से प्रकाशित करने का निर्देश भी दिया।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 प्रज्ञा पुराण (भाग १) पृष्ठ 24

👉 Amrit Chintan

■ As you sow, so you reap.
Seed will give its own fruit.
Our evil acts respond in the same coin. We can not blame any power. If our planting is of Cactus we can not get fruiting of mangoes. Law of action is that reaction is equal and opposite.

Mahatma Kabir

□ Our celebration of festival, occasions and commitment must be shared with others in a way. That they follow the moral code of conduct and establish harmony and peace in social life.

📖 Vangmay No. 36, p 3.18

◆ In every field of life love and sacrifice play a important role. If you took into the history of great men on this earth, we will always find that these two virtues of love and sacrifice make than great.

~Dr Anivesent

◇ To save the human destiny from great disaster there is only one way and that is to extend the field a common welfare, love and sincerity among ourselves, the mission of Yug-Nirman.

👉 स्वार्थी इक्कड़ की दुर्गति

एक हाथी बड़ा स्वार्थी और अहंकारी था। दल के साथ रहने की अपेक्षा वह अकेला रहने लगा। अकेले में दुष्टता उपजती है, वे सब उसमें भी आ गयीं। एक बटेर ने छोटी झाड़ी में अंडे दिए। हाथियों का झुंड आते देखकर बटेर ने उसे नमन किया और दलपति से उसके अंडे बचा देने की प्रार्थना की। हाथी भला था। उसने चारों पैरों के बीच झाड़ी छुपा ली और झुंड को आगे बढ़ा दिया। अंडे तो बच गए परं उसने बटेर को चेतावनी दी कि एक इक्कड़ हाथी पीछे आता होगा, जो अकेला रहता है और दुष्ट हैं उसने अंडे बचाना तुम्हारा काम है। थोड़ी देर में वह आ ही पहुँचा। उसने बटेर की प्रार्थना अनसुनी करके जान- बूझ कर अंडे कुचल डाले। 

बटेर ने सोचा कि दुष्ट को मजा न चखाया तो वह अन्य अनेक का अनर्थ करेगा। उसने अपने पड़ोसी कौवे तथा मेढक से प्रार्थना की। आप लोग सहायता करें तो हाथी को नीचा दिखाया जा सकता है। योजना बन गई। कौवे ने उड़-उड़ कर हाथी की आँखें फोड़ दी। वह प्यासा भी था।

मेढक पहाड़ी की चोटी पर टर्राया। हाथी ने वहाँ पानी होने का अनुमान लगाया और चढ़ गया । अब मेढक नीचे आ गया और वहाँ टर्राया। हाथी ने नीचे पानी होने का अनुमान लगाया और नीचे को उतर चला। पैर फिसल जाने से वह खड्ड में गिरा और मर गया।

एकाकी स्वार्थ-परायणों को इसी प्रकार नीचा देखना पड़ता है ।

📖 प्रज्ञा पुराण भाग 2 पृष्ठ 8

👉 आज का सद्चिंतन 22 March 2019


👉 प्रेरणादायक प्रसंग 22 March 2019

👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...