🌹 समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन का एक अविच्छिन्न अंग मानेंगे।
🔴 सुसंस्कारिता का तीसरा पक्ष है- जिम्मेदारी मनुष्य अनेकानेक जिम्मेदारियों से बँधा हुआ है। यों गैर जिम्मेदार लोग कुछ भी कर गुजरते हैं, किसी भी दिशा में चल पड़ते हैं। अपने किन्हीं भी उत्तरदायित्वों से निर्लज्जतापूर्वक इंकार कर सकते हैं, पर जिम्मेदार लोगों को ही अपने अनेक उत्तरदायित्वों का सही रीति से, सही समय पर निर्वाह करना पड़ता है। स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने की, जीवन सम्पदा का श्रेष्ठतम सदुपयोग करने की, लोक परलोक को उत्कृष्ट बनाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी जो निभाना चाहते हैं, वे ही संतोष, यश और आरोग्य का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
🔵 पारिवारिक जिम्मेदारियाँ समझने वाले आश्रितों को स्वावलम्बी, सद्गुणी बनाने में निरत रहते हैं और संतान बढ़ाने के अवसर आने पर फूँक- फूँ क कर कदम रखते हैं। हजार बार सोचते- समझते हैं और विचार करते हैं कि अभ्यागत को बुलाने के लिए उपयुक्त सामग्री, आश्रितों और असमर्थों के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने में संकीर्ण स्वार्थपरता उन्हें बाधा नहीं डालती।
🔴 पेट और प्रजनन तक ही मनुष्य की सीमा नहीं है। धर्म और संस्कृति के प्रति, विश्व मानवता के प्रति, मनुष्य के सामाजिक एवं सार्वभौम उत्तरदायित्व जुड़े हैं, यहाँ तक कि अन्य प्राणियों एवं वनस्पतियों के प्रति भी। उन सभी के संबंध में दायित्वों एवं कर्तव्यों के निर्वाह की चिंता हर किसी को रहनी चाहिए। यह कार्य तभी संभव है, जब अपनी संकीर्ण स्वार्थपरता पर अंकुश लगाया जाए। औसत व्यावहारिक स्तर का निर्वाह स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किया जाए।
🔵 यह लोभ, मोह, अहंकार का, वासना, तृष्णा और संकीर्ण स्वार्थपरता का घटाटोप ऊपर छाया होगा, तो फिर नासमझ बच्चों का मन, न तो उस स्तर का सोचेगा और न सयानों से लोकमंगल के लिए कुछ निकालते बन पड़ेगा। आवश्यकताएँ तो कोई थोड़े श्रम, समय में पूरी कर सकता है, पर वैभव जन्य भौतिक महत्त्वाकाँक्षाएँ तो ऐसी हैं जिन्हें पूरी कर सकना रावण, हिरण्यकश्यपु, सिकंदर आदि तक के लिए संभव नहीं हुआ, फिर सामान्य स्तर के लोगों की तो बात ही क्या है? वे हविश की जलती चिताओं वाली कशमकश में आजीवन विचरण करते रहते हैं। भूत- पलीत की तरह डरते- डराते समय गुजारते और अन्ततः असंतोष तथा पाप की चट्टानों ही सिर पसर लादकर विदा होते हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.44
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.7
🔴 सुसंस्कारिता का तीसरा पक्ष है- जिम्मेदारी मनुष्य अनेकानेक जिम्मेदारियों से बँधा हुआ है। यों गैर जिम्मेदार लोग कुछ भी कर गुजरते हैं, किसी भी दिशा में चल पड़ते हैं। अपने किन्हीं भी उत्तरदायित्वों से निर्लज्जतापूर्वक इंकार कर सकते हैं, पर जिम्मेदार लोगों को ही अपने अनेक उत्तरदायित्वों का सही रीति से, सही समय पर निर्वाह करना पड़ता है। स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने की, जीवन सम्पदा का श्रेष्ठतम सदुपयोग करने की, लोक परलोक को उत्कृष्ट बनाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी जो निभाना चाहते हैं, वे ही संतोष, यश और आरोग्य का लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
🔵 पारिवारिक जिम्मेदारियाँ समझने वाले आश्रितों को स्वावलम्बी, सद्गुणी बनाने में निरत रहते हैं और संतान बढ़ाने के अवसर आने पर फूँक- फूँ क कर कदम रखते हैं। हजार बार सोचते- समझते हैं और विचार करते हैं कि अभ्यागत को बुलाने के लिए उपयुक्त सामग्री, आश्रितों और असमर्थों के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने में संकीर्ण स्वार्थपरता उन्हें बाधा नहीं डालती।
🔴 पेट और प्रजनन तक ही मनुष्य की सीमा नहीं है। धर्म और संस्कृति के प्रति, विश्व मानवता के प्रति, मनुष्य के सामाजिक एवं सार्वभौम उत्तरदायित्व जुड़े हैं, यहाँ तक कि अन्य प्राणियों एवं वनस्पतियों के प्रति भी। उन सभी के संबंध में दायित्वों एवं कर्तव्यों के निर्वाह की चिंता हर किसी को रहनी चाहिए। यह कार्य तभी संभव है, जब अपनी संकीर्ण स्वार्थपरता पर अंकुश लगाया जाए। औसत व्यावहारिक स्तर का निर्वाह स्वेच्छापूर्वक स्वीकार किया जाए।
🔵 यह लोभ, मोह, अहंकार का, वासना, तृष्णा और संकीर्ण स्वार्थपरता का घटाटोप ऊपर छाया होगा, तो फिर नासमझ बच्चों का मन, न तो उस स्तर का सोचेगा और न सयानों से लोकमंगल के लिए कुछ निकालते बन पड़ेगा। आवश्यकताएँ तो कोई थोड़े श्रम, समय में पूरी कर सकता है, पर वैभव जन्य भौतिक महत्त्वाकाँक्षाएँ तो ऐसी हैं जिन्हें पूरी कर सकना रावण, हिरण्यकश्यपु, सिकंदर आदि तक के लिए संभव नहीं हुआ, फिर सामान्य स्तर के लोगों की तो बात ही क्या है? वे हविश की जलती चिताओं वाली कशमकश में आजीवन विचरण करते रहते हैं। भूत- पलीत की तरह डरते- डराते समय गुजारते और अन्ततः असंतोष तथा पाप की चट्टानों ही सिर पसर लादकर विदा होते हैं।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.44
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.7