जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने के लिए मनुष्य को अपनी पूरी शक्ति, पूरे प्रयत्न तथा पूरी आयु लगा देनी चाहिए। सफलता बहुत बड़े मूल्य पर ही मिलती है। जो व्यक्ति थोड़े से प्रयत्न के साथ ही मनोवाँछित सफलता पाना चाहते हैं वे उन लोगों जैसे ही संकीर्ण विचार वाले होते हैं जो किसी चीज को पूरा मूल्य दिए बिना ही हस्तगत करने को लालायित रहते हैं। ऐसे लोभी, लालची व्यक्ति का चरित्र किसी समय भी गिर सकता है।
औरों को उपदेश करने की अपेक्षा अपना उपदेश आप कर लिया जाये, औरों को ज्ञान देने की अपेक्षा स्वयं के ज्ञान को परिपक्व कर लिया जाये, दूसरों को सुधारने की अपेक्षा अपने को ही सुधार लिया जाये तो अपना भी भला हो सकता है और दूसरे लोगों को भी कर्मजनित प्रेरणा देकर प्रभावित किया जा सकता है।
कितने आश्चर्य की बात है कि भाग्य के अंधविश्वासी अपनी दशा बदलने का उपाय किये बिना ही बड़ी आसानी से यह मान लेते हैं कि गरीबी तो उनका प्रारब्ध भोग है। वह किसी उपाय अथवा उद्योग से नहीं बदली जा सकती। इसलिए इसके विरोध में डटकर मोर्चा लेना बेकार है। इस प्रकार के भाग्य ज्ञाताओं को जरा सोचना चाहिए कि जब तक उन्होंने परिश्रम एवं पुरुषार्थ नहीं किया, तब तक उन्हें यह किस प्रकार पता चल गया कि कोई भी उद्योग सफल न होगा।
औरों को उपदेश करने की अपेक्षा अपना उपदेश आप कर लिया जाये, औरों को ज्ञान देने की अपेक्षा स्वयं के ज्ञान को परिपक्व कर लिया जाये, दूसरों को सुधारने की अपेक्षा अपने को ही सुधार लिया जाये तो अपना भी भला हो सकता है और दूसरे लोगों को भी कर्मजनित प्रेरणा देकर प्रभावित किया जा सकता है।
कितने आश्चर्य की बात है कि भाग्य के अंधविश्वासी अपनी दशा बदलने का उपाय किये बिना ही बड़ी आसानी से यह मान लेते हैं कि गरीबी तो उनका प्रारब्ध भोग है। वह किसी उपाय अथवा उद्योग से नहीं बदली जा सकती। इसलिए इसके विरोध में डटकर मोर्चा लेना बेकार है। इस प्रकार के भाग्य ज्ञाताओं को जरा सोचना चाहिए कि जब तक उन्होंने परिश्रम एवं पुरुषार्थ नहीं किया, तब तक उन्हें यह किस प्रकार पता चल गया कि कोई भी उद्योग सफल न होगा।
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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