रविवार, 18 जून 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 18 June 2023

जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने के लिए मनुष्य को अपनी पूरी शक्ति, पूरे प्रयत्न तथा पूरी आयु लगा देनी चाहिए। सफलता बहुत बड़े मूल्य पर ही मिलती है। जो व्यक्ति थोड़े से प्रयत्न के साथ ही मनोवाँछित सफलता पाना चाहते हैं वे उन लोगों जैसे ही संकीर्ण विचार वाले होते हैं जो किसी चीज को पूरा मूल्य दिए बिना ही हस्तगत करने को लालायित रहते हैं। ऐसे लोभी, लालची व्यक्ति का चरित्र किसी समय भी गिर सकता है।

औरों को उपदेश करने की अपेक्षा अपना उपदेश आप कर लिया जाये, औरों को ज्ञान देने की अपेक्षा स्वयं के ज्ञान को परिपक्व कर लिया जाये, दूसरों को सुधारने की अपेक्षा अपने को ही सुधार लिया जाये तो अपना भी भला हो सकता है और दूसरे लोगों को भी कर्मजनित प्रेरणा देकर प्रभावित किया जा सकता है।

कितने आश्चर्य की बात है कि भाग्य के अंधविश्वासी अपनी दशा बदलने का उपाय किये बिना ही बड़ी आसानी से यह मान लेते हैं कि गरीबी तो उनका प्रारब्ध भोग है। वह किसी उपाय अथवा उद्योग से नहीं बदली जा सकती। इसलिए इसके विरोध में डटकर मोर्चा लेना बेकार है। इस प्रकार के भाग्य ज्ञाताओं को जरा सोचना चाहिए कि जब तक उन्होंने परिश्रम एवं पुरुषार्थ नहीं किया, तब तक उन्हें यह किस प्रकार पता चल गया कि कोई भी उद्योग सफल न होगा।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 दूसरों के दोष ही गिनने से क्या लाभ (अंतिम भाग)

अतएव हमें महात्मा कबीरदास की नम्रतापूर्ण उक्ति को सदा ध्यान में रखना चाहिए।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न दीखा कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझ सा बुरा न होय॥


दूसरों के व्यक्तिगत दोषों के प्रति हमारा क्या रुख होना चाहिए इसका विवेचन करते हुए महात्मा तुलसी दास लिखते हैं कि “साधुओं का चरित्र कपास जैसा निर्मल और शुभ्र होता है, उसका फल परम गुणमय होता है और वह स्वयं दुख सहकर दूसरों के पाप रूपी छिद्रों को ढकता है। इसी गुण के कारण वह संसार में वन्दनीय है। अतएव यदि हमें भी इस शुभ्र कपास जैसा वन्दनीय होना है तो हमें दूसरों की व्यक्तिगत भूलों के प्रति बड़ा सहृदय होना चाहिए। सहृदय होने पर ही, हम किसी व्यक्ति के हृदय में स्थान पा सकते हैं। तभी वह हमें अपना हितेच्छु जानकर हम पर अपने हृदय का भेद प्रकट कर सकता है और तभी हम उसके मन की गाँठें खोलने में उसकी सहायता कर उसका सच्चा सुधार कर सकते हैं।

हमें किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत दोषों के लिए जितना सहृदय होना है उतना ही हमें सामाजिक अपराध करने वालों के प्रति निर्मम होना पड़ेगा। सामाजिक अपराध करने वालों के उन अपराधों को हजार कान और आँखों से हमें सुनना और देखना पड़ेगा और उन्हें उनका दण्ड दिलवाना होगा।

.....समाप्त
📖 अखण्ड ज्योति-अप्रैल 1949 पृष्ठ 18

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...