शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

👉 आत्मचिंतन के क्षण 19 Aug 2022

■ संसार की सारी सफलताओं का मूलमंत्र है-प्रबल इच्छा शक्ति। इसी के बल पर विद्या, सम्पत्ति और साधनों का उपार्जन होता है। यही वह आधार है जिस पर आध्यात्मिक तपस्याएँ और साधनाएँ निर्भर रहती हैं। यही वह दिव्य संबल है, जिसे पाकर संसार में खाली हाथ आया मनुष्य वैभवशाली  बनकर संसार को चकित कर देता है। यही वह मोहक और वशीकरण मंत्र है, जिसके बल पर एक अकेला पुरुष कोटि-कोटि जनगण को अपना अनुयायी बना लेता है।

□ हमारा प्रत्येक विचार हमारे पथ में काँटे या पुष्प बिखेरता है। हम जैसा चाहें अपने विचारों की शक्ति द्वारा बन सकते हैं। कोई भी विस्फोटक पदार्थ मनुष्य के प्रचण्ड विचारों से बढ़कर शक्ति नहीं रखता। कोई भी संबंधी, देवी, देवता हमारी इतनी सहायता नहीं कर सकता, जितने हमारे विचार। विचारों द्वारा ही हम शक्ति का केन्द्र मन से निकालते हैं और अपने सबसे बड़े मित्र बन सकते है। अतः जब तक हम अपने विचारों को निम्न, निकृष्ट, खोटी वस्तुओं से हटाकर ऊँचे विषयों में नहीं लगाते, तब तक हमारे विचार परमात्मा की निःसीम शक्ति में सामंजस्य प्राप्त नहीं करते।

◆ हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हम शुभ विचारों को क्रियात्मक स्वरूप प्रदान नहीं करते। उनको जीवन व्यतीत करने का मौका नहीं देते। पुस्तकों में वर्णित स्वर्ण सूत्रों को कार्य रूप में परिवर्तित करने के लिए प्रयत्नशील नहीं होते। उनके अनुसार जीवन को नहीं मोड़ते। शिक्षाओं पर दत्तचित्त, एकाग्र, दृढ़तापूर्वक अमल नहीं करते। शास्त्रीय विधियों का पूर्ण दिल लगाकर अभ्यास नहीं करते, अपने आचरण को उनके अनुसार नहीं बनाते। केवल पढ़कर या जानकर ही संतुष्ट हो जाते हैं। यही बुजदिली आलस्य, कर्महीनता हमें अग्रसर नहीं होने देती।

◇ आलस्य और दुर्भाग्य एक ही वस्तु के दो नाम हैं। जो आलसी है वह न श्रम का महत्त्व समझता है, न समय का मूल्य। ऐसे मनुष्य को कोई सफलता नहीं मिल सकती। सौभाग्य का पुरस्कार उनके लिए सुरक्षित है, जो उसका मूल्य चुकाने के लिए तत्पर हैं। यह मूल्य कठोर श्रम के रूप में चुकाया जाता है। समय ही भगवान् की दी हुई सम्पदा है। हमारी हर श्वास बड़ी मूल्यवान है। यदि प्रस्तुत क्षणों का ठीक तरह उपयोग करते रहा जाय, तो बूँद-बूँद से घट भरने की तरह अगणित सफलताएँ और समृद्धियाँ अनायास ही इकट्ठी होने लगेंगी।

■ आलसी का भविष्य अंधकारपूर्ण है। जिसे श्रम करने में रुचि नहीं, जो मेहनत से डरता है, आरामतलबी जिसे पसंद है, जो समय को ज्यों-त्यों करके अस्त-व्यस्त करता रहता है, समझना चाहिए दुर्भाग्य इसके पीछे लग गया। यह कुछ उपलब्धियाँ प्राप्त कर सकना तो दूर, यदि संयोगवश उत्तराधिकार में कुछ मिल गया है तो उसे भी स्थिर न रख सकेगा। कहते हैं-लक्ष्मी आलसी के घर नहीं रहती। सुना जाता है कि दारिद्र्य वहाँ घोंसला बनाता है, जहाँ आलस्य की सघनता छाई रहती है।

□ आराम की जिन्दगी बिताना केवल निर्जीव, निरुद्देश्य और निकम्मे लोगों को रुचिकर हो सकता है। वे ही उसे सौभाग्य गिन सकते हैं। प्रगतिशील, महत्त्वाकांक्षी लोगों की दृष्टि में तो यह एक मानसिक रुग्णता है, जिसके कारण व्यक्ति का भाग्य, भविष्य, बल और वर्चस्व निरन्तर घटता ही जाता है। अपने देश का दुर्भाग्य श्रम के प्रति उपेक्षा करने की दुष्प्रवृत्ति के साथ आरंभ हुआ है और वह तब तक बना ही रहेगा, जब तक कि हम प्रगतिशील लोगों की तरह परिश्रम के प्रति प्रगाढ़ आस्था उत्पन्न न करेंगे।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

👉 क्षुद्र हम, क्षुद्रतम हमारी इच्छाएँ (भाग 1)

गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

🔴 मन की साधना कैसे करें?

देवियो, भाइयो! मैंने आपको शरीर की साधना के दो माध्यम बताए हैं- आहार और विहार। वैसे ही मन की साधना के भी दो माध्यम हैं- एक का नाम है- विवेक और दूसरे का नाम है- साहस। साहस और विवेक- इनकी जितनी मात्रा हम अपने भीतर इकट्ठी करते हुए चले जाते हैं, उतना ही हमारा जीवन विभूतियों से- समृद्धियों से, ऋद्धियों से और सिद्धियों से भरता हुआ चला जाता है। मित्रो! इस सम्बन्ध में मैं आपको इतिहास की बात बताना चाहता हूँ, कुछ घटनाएँ सुनाना चाहता हूँ।

🔵 विवेकवान् की रीति−नीति

समर्थ गुरु रामदास के ब्याह की तैयारियाँ चल रही थीं। बुआ ने कहा कि उनका ब्याह तो जरूर होना चाहिए। अम्मा ने कहा- ‘‘मेरे बेटे का ब्याह नहीं होगा, तो काम कैसे चलेगा?’’ ढोलक बजायी जा रही थी और हल्दी चढ़ाई जा रही थी। घोड़ी चढ़ाने के लिए बारात निकाली और बारात वहाँ जा पहुँची बेटी वालों के यहाँ। बेटी वालों के यहाँ मंडप सजाया गया। समर्थ गुरु रामदास व्याह करने के लिए वहाँ जा पहुँचे। एक पुरोहित ने कहा कि महाराज! यहाँ ब्याह करने पर एक आवाज लगाई जाती है। उन्होंने कहा- ‘‘लड़का लड़की सावधान’’! लड़के ने कहा कि पल भर की देरी है, लेकिन सावधान क्यों कहा गया? अरे! जीवन के मोल का यही अंत? चार छोकरी- चार छोकरे और एक पंडित-  नौ ग्रह, नौ की दुहाई, नौ तरह की बीमारियाँ। मर जायेगा। अरे अभागे! दो तरीके से मारा जायेगा। इसीलिए भगवान् चिल्ला रहा है- सावधान! सावधान! अरे, दोनों तरफ की दिशाएँ क्या देख रहा है? एक तरफ चल और समर्थ गुरु रामदास ये भागे, वो भागे। लोगों ने बाजा बजाना बन्द कर दिया। वह गया, सो गया। बुआ ने कहा- बेवकूफ, अम्मा ने कहा पागल, बाप ने कहा- सिरफिरा, रिश्तेदारों ने कहा कि उल्लू है। सबने जाने क्या- क्या कहा। दुनिया वाले क्या- क्या कहते हैं, लेकिन विवेकवानों की विचार करने की शैली अलग होती है। वे अपना रास्ता अलग बनाते हैं और अपने रास्ते पर आप चला करते हैं।

🔴 पात्रता की अनिवार्यता

मित्रो! जो विवेकवान् लोग अपने रास्ते पर चले हैं, वे संसार के इतिहास में उज्ज्वल तारे की तरह टिमटिमाते रहे हैं और टिमटिमाते रहेंगे। यह परम्पराएँ पहले भी चलीं थीं और आगे भी चलती रहेंगी। मैंने आपको मन की, मस्तिष्क की, सूक्ष्म शरीर की उपासना के साथ साधना करने की विधि पहले भी बताई थी और विवेकशीलता को उसका एक अंग बताया था। एक दूसरा अंग है, पात्रता का विकास, व्यक्तित्व का विकास। इसके अभाव में सारी साधना, उपासना निष्फल चली जाती है।

एक बड़े सम्भ्रान्त व्यक्ति ने सुन रखा था कि संसार में सबसे बड़ा लाभदायक काम भगवान् का प्यार प्राप्त करना है। भगवान् सारी दुनिया का स्वामी है, मालिक है। सारी संपदाएँ और सारी सुविधाएँ उसके एक इशारे पर चलती रहती हैं। मनुष्य को भी जिन सुविधाओं की आवश्यकता है, जिन लाभों की जरूरत है, जिन वस्तुओं की जरूरत है, वह भगवान् के एक कृपांश के ऊपर, भगवान् के एक इशारे के ऊपर, इशारे की एक किरण के ऊपर टिके हुए हैं। भगवान् अगर हमसे नाराज हो जाये, तो हमारा अच्छा भला शरीर देखते ही देखते बरबाद हो जाये। गठिया आदि लग जाये, लकवा आदि हो जाये। हमारा सारा खाना- पीना भी बट्टे खाते में चला जाये। हमारी पढ़ाई- लिखाई सब बेकार चली जाये। सोलह वर्ष तक पढ़ाई की। एम.ए. की पढ़ाई की और डिवीजन खराब हो जाये, थर्ड डिवीजन पास हो जाये और नौकरी के लिए जगह न मिले। चपरासी के लिए मारा- मारा फिरना पड़े, तब? भगवान् की एक कृपा का कण यदि हमारे विरुद्ध हो जाये, तो हमारा सब कुछ चौपट हो जायेगा।

🔵 कैसे मिले भगवान् का प्यार

उस व्यक्ति को मालूम था कि भगवान् का प्यार पाना और भगवान् का अनुग्रह प्राप्त करना मनुष्य के लिए जीवन का सबसे बड़ा लाभ है। उस लाभ को प्राप्त करने के लिए अपने समय के सबसे बड़े उदार संत और भगवान् के सबसे बड़े भक्त सुकरात के पास वह व्यक्ति गया और कहने लगा कि भगवन्! मुझे ऐसा उपाय बताइये, जिससे मैं भगवान् की कृपा प्राप्त कर सकूँ और भगवान् का साक्षात्कार कर सकूँ। भगवान् तक पहुँच सकूँ। सुकरात चुप हो गये। उन्होंने कहा कि फिर कभी देखा जायेगा। कई दिनों बाद वह व्यक्ति फिर आया। उसने कहा- ‘‘भगवन्! आपने भगवान् को देखा है और भगवान् का प्यार पाया है। क्या आप मुझे भी प्राप्त करा सकेंगे?’’ क्या भगवान् का अनुग्रह मेरे ऊपर न होगा? सुकरात ने कहा- ‘अच्छा तुम कल आना और मेरी एक सेवा करना, फिर मैं तुम्हें उसका मार्गदर्शन करूँगा।’ दूसरे दिन वह व्यक्ति सुकरात के पास पहुँचा। सुकरात ने मिट्टी का कच्चा वाला एक घड़ा पहले से ही मँगाकर रखा था। वह पकाया नहीं गया था, वरन् मिट्टी का बना हुआ कच्चा था। सुकरात ने कहा- ‘ बच्चे जाओ मेरे लिए एक घड़ा पानी लाओ और मैं उससे स्नान कर लूँ, पानी पी लूँ, पीछे मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूँगा।’

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