इक संत कहे मे इक अनकहे मे, वो सदा लाभ मे ही रहेगा जो संत कहे मे रहेगा
🔷 बहुत समय पहले की बात है वत्स एक गाँव मे दो परिवार रहते थे एक का मुखिया रामप्रकाश और दुसरे का मुखिया जेठामल था! एक बार गाँव मे बाहर से कोई संत आये और गाँव मे प्रवचन हुआ तो एक दिन संत श्री कह रहे थे की सच्चा और अच्छा जीवन त्याग और तपस्या मे है! आप जो भी कमाओ अथवा तो आपको जो भी मिले उस मेसे परमार्थ के लिये कुछ न कुछ भाग जरूर निकालना!
🔶 यदि आप साधना भी करते हो तो उस साधना मेंसे भी अपनी श्रध्दानुसार परमार्थ के लिये कुछ न कुछ जरूर निकालना ताकि आपके आगे का मार्ग बने और आप धर्म-पथ पे सहजता से चल सको!
🔷 बहूत समय बीत गया और एक दिन रामप्रकाश और जेठामल की एक कार दुर्घटना मे एक साथ मृत्यु हो गई संयोगवश दोनो का ही बीमा था तो दोनो के ही परिवारों को पाँच पाँच लाख रुपये मिले दोनो के ही घर मे चार चार सन्तानें थी तो जेठामल के परिवार ने सवा सवा लाख रुपया आपस मे बाट लिया और रामप्रकाश के परिवार ने उस पाँच लाख में से एक लाख परमार्थ के निमित्त निकाला और एक एक लाख आपस मे बाट लिये!
🔶 रामप्रकाश के पुत्र बड़े संस्कारी थे और उन्होंने परमार्थ का एक अलग ही डिब्बा बना लिया और रोज अपनी श्रद्धानुसार उसमें कुछ न कुछ डालते थे! फिर भाग्य ने ऐसी करवट बदली की एक समय वो आया की वो दाने दाने को मोहताज हो गये अर्थ न था पर वो सभी रोज साधना का कुछ भाग अपनी श्रद्धानुसार परमार्थ के लिये जरूर निकालते थे!
🔷 फिर भाग्य ने करवट बदली और एक दिन जेठामल और रामप्रकाश के घर मे सफाई का कार्य चल रहा था तो वहाँ उन्हे पाँच पाँच सोने की ईंटें मिली! और कुछ सालो बाद रामप्रकाश का परिवार एक बहुत ऊँचे ओहदे पर पहुँच गया और उधर जेठामल का पुरा परिवार तबाही के सागर मे समा गया!
🔶 जब उन पाँच ईंटों का बँटवारा चल रहा था तो रामप्रकाश के परिवार वालों की बड़ी ईच्छा थी कई वर्ष हो गये परमार्थ के निमित्त कुछ निकला नही तो रामप्रकाश के परिवार ने एक ईंट परमार्थ के निमित्त निकाल दी और उधर जेठामल के परिवार वालों ने एक एक ईंट तो ले ली पर बची उस एक ईंट के चक्कर मे उनमें आपस मे विवाद हो गया और फिर चारों भाई आपस मे लड़ने लगे और विवाद इतना बड़ा की चारों कोर्ट कचहरियों के चक्कर मे उलझ गये और कई सालो तक वो आपस मे कोर्ट कचहरी मे लड़ते रहे और जो कुछ भी उनके पास था सब कुछ कोर्ट कचहरी के चक्कर मे चला गया!
🔷 यदि उन्होंने विवेक से काम लिया होता तो सबकुछ बर्बाद न होता! संत श्री ने तो दोनो को ही समझाया था की परमार्थ के निमित्त कुछ न कुछ निकालते रहना! पर एक संत के कहे मे रहा और दुसरा स्वार्थ के घेरे मे! आज यहाँ इंसान एक एक इंच जमीन के चक्कर मे अपनी अनमोल मानव देह को बर्बाद कर रहा है!
🔶 इसलिये नित्य प्रतिदिन अपनी श्रद्धानुसार चाहे धन चाहे तप चाहे जप अथवा तो कुछ भी परमार्थ के निमित्त कुछ न कुछ जरूर निकालते रहे ताकि तुम्हारा आगे का मार्ग प्रशस्त हो और ये बहुत जरूरी भी है क्योंकि इसी से भाग्य के पत्थर हटेंगे और आगे की राह खुलेगी!
🔷 परमार्थ के निमित्त निकाला हुआ कभी व्यर्थ नही जाता देर सवेर वो हमारे ही काम आता है!
🔷 बहुत समय पहले की बात है वत्स एक गाँव मे दो परिवार रहते थे एक का मुखिया रामप्रकाश और दुसरे का मुखिया जेठामल था! एक बार गाँव मे बाहर से कोई संत आये और गाँव मे प्रवचन हुआ तो एक दिन संत श्री कह रहे थे की सच्चा और अच्छा जीवन त्याग और तपस्या मे है! आप जो भी कमाओ अथवा तो आपको जो भी मिले उस मेसे परमार्थ के लिये कुछ न कुछ भाग जरूर निकालना!
🔶 यदि आप साधना भी करते हो तो उस साधना मेंसे भी अपनी श्रध्दानुसार परमार्थ के लिये कुछ न कुछ जरूर निकालना ताकि आपके आगे का मार्ग बने और आप धर्म-पथ पे सहजता से चल सको!
🔷 बहूत समय बीत गया और एक दिन रामप्रकाश और जेठामल की एक कार दुर्घटना मे एक साथ मृत्यु हो गई संयोगवश दोनो का ही बीमा था तो दोनो के ही परिवारों को पाँच पाँच लाख रुपये मिले दोनो के ही घर मे चार चार सन्तानें थी तो जेठामल के परिवार ने सवा सवा लाख रुपया आपस मे बाट लिया और रामप्रकाश के परिवार ने उस पाँच लाख में से एक लाख परमार्थ के निमित्त निकाला और एक एक लाख आपस मे बाट लिये!
🔶 रामप्रकाश के पुत्र बड़े संस्कारी थे और उन्होंने परमार्थ का एक अलग ही डिब्बा बना लिया और रोज अपनी श्रद्धानुसार उसमें कुछ न कुछ डालते थे! फिर भाग्य ने ऐसी करवट बदली की एक समय वो आया की वो दाने दाने को मोहताज हो गये अर्थ न था पर वो सभी रोज साधना का कुछ भाग अपनी श्रद्धानुसार परमार्थ के लिये जरूर निकालते थे!
🔷 फिर भाग्य ने करवट बदली और एक दिन जेठामल और रामप्रकाश के घर मे सफाई का कार्य चल रहा था तो वहाँ उन्हे पाँच पाँच सोने की ईंटें मिली! और कुछ सालो बाद रामप्रकाश का परिवार एक बहुत ऊँचे ओहदे पर पहुँच गया और उधर जेठामल का पुरा परिवार तबाही के सागर मे समा गया!
🔶 जब उन पाँच ईंटों का बँटवारा चल रहा था तो रामप्रकाश के परिवार वालों की बड़ी ईच्छा थी कई वर्ष हो गये परमार्थ के निमित्त कुछ निकला नही तो रामप्रकाश के परिवार ने एक ईंट परमार्थ के निमित्त निकाल दी और उधर जेठामल के परिवार वालों ने एक एक ईंट तो ले ली पर बची उस एक ईंट के चक्कर मे उनमें आपस मे विवाद हो गया और फिर चारों भाई आपस मे लड़ने लगे और विवाद इतना बड़ा की चारों कोर्ट कचहरियों के चक्कर मे उलझ गये और कई सालो तक वो आपस मे कोर्ट कचहरी मे लड़ते रहे और जो कुछ भी उनके पास था सब कुछ कोर्ट कचहरी के चक्कर मे चला गया!
🔷 यदि उन्होंने विवेक से काम लिया होता तो सबकुछ बर्बाद न होता! संत श्री ने तो दोनो को ही समझाया था की परमार्थ के निमित्त कुछ न कुछ निकालते रहना! पर एक संत के कहे मे रहा और दुसरा स्वार्थ के घेरे मे! आज यहाँ इंसान एक एक इंच जमीन के चक्कर मे अपनी अनमोल मानव देह को बर्बाद कर रहा है!
🔶 इसलिये नित्य प्रतिदिन अपनी श्रद्धानुसार चाहे धन चाहे तप चाहे जप अथवा तो कुछ भी परमार्थ के निमित्त कुछ न कुछ जरूर निकालते रहे ताकि तुम्हारा आगे का मार्ग प्रशस्त हो और ये बहुत जरूरी भी है क्योंकि इसी से भाग्य के पत्थर हटेंगे और आगे की राह खुलेगी!
🔷 परमार्थ के निमित्त निकाला हुआ कभी व्यर्थ नही जाता देर सवेर वो हमारे ही काम आता है!