प्रेम और समता मनुष्य को ज्ञान देता है कि वह अपनी सीमाओं से बाहर भी है और वह अखिल जगत की आत्मा का ही भाग है। समता की यह अनुभूति मानव की आत्मा में उमड़ कर ही कला, विज्ञान, साहित्य
और श्रेष्ठ रचना द्वारा संसार में सद्गुण, सद्विचार तथा सद्प्रेरणा देने में सहायक होती है। तभी हमारी महान आत्माएं स्वार्थ, निष्कपटता, उदारतादि द्वारा संसार में सहायक होती हैं। तभी हमारी महान आत्माएं स्वार्थ त्याग, निष्कपटता, उदारतादि द्वारा संसार में प्यार-प्रेम, परोपकार और सद्व्यवहार का प्रसार करती हैं। महान आत्माओं ने प्रेम के मार्ग में अनेक कष्ट, शारीरिक-यंत्रणाएं सहकर, यही नहीं मृत्यु तक का भी स्वागत कर मनुष्य के सच्चे स्वरूप को समझा और आदर्श जीवन व्यतीत करके मानवता के परम सत्य की पुष्टि की। इसीलिए हम उन्हें महात्मा अर्थात् महान आत्मा वाला महापुरुष कहकर संबोधित करते हैं।
हमारी आत्मा जब संकीर्णता का वरण करती है तो निज की विशेषता खो देती है। इसकी विशेषता, समत्व में ही है। हम विश्व से समभाव होकर ही अपने वास्तविक स्वरूप का बोध कर सकेंगे और तभी हमें वास्तविक आनन्दानुभूति होगी। हम भययुक्त और संघर्ष की विषम स्थितियों में तभी तक रहते हैं जब तक कि प्रकृति के व्यापक-समत्व के सिद्धाँत को नहीं समझ पाते और तभी तक हमें सारा संसार पराया जान पड़ता है। अपने और पराये तथा अपने अन्तःकरण और विश्व की व्याख्या के बीच जो सहज समता है उसे अनुभव कर इसी एक मंगलमय सूत्र के द्वारा जीवन को धन्य बनाता है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर
अखण्ड ज्योति जून 1964 पृष्ठ 1