🔵 एक दिन हम लोग उनके पास बैठे थे, तो वे बोले, ‘‘मैं शरीर छोड़ने पर कुछ ऐसा करूँगा जैसे कोई कुर्ता उतारता है, पर फिर मैं तीन स्थानों पर रहूँगा एक माताजी के पास, दूसरा सजल-श्रद्धा प्रखर-प्रज्ञा तीसरा #अखंड_दीपक।’’ हमारे साथ #अमेरिका के एक परिजन भी बैठे थे। उन्होंने कहा, ‘‘गुरुजी, ये तीनों स्थान तो #शान्तिकुञ्ज में हैं और हम लोग तो बहुत दूर हैं।’’ इस पर गुरुजी बोले, ‘‘बेटा! मेरा चौथा स्थान उगता हुआ #सूर्य होगा।’’
🔴 जब #गुरुजी ने शरीर छोड़ने का मन बना लिया था, तो उसकी तैयारी वे बहुत पहले से ही करने लगे थे। उन्होंने संकेत देना प्रारंभ कर दिया था। जहाँ आज सजल-श्रद्धा प्रखर-प्रज्ञा है, वहाँ पहले गुलाब की क्यारियाँ थीं। गुरुजी ने एक दिन सोनी जी, महेंद्र जी, कपिल जी, उपाध्याय जी आदि सभी को बुलाया। माताजी भी बैठी थीं और गुरुजी कहने लगे, ‘‘माताजी, हमने अपने लिये स्थान पसंद कर लिया है। वह जो गुलाब की क्यारियाँ हैं, वह हमें बहुत पसंद आईं। हमने सोचा है, वही स्थान हमारे लिये ठीक है।’’
🔵 माताजी ने कहा, ‘‘आप क्या कह रहे हैं?’’ तो गुरुजी बोले, ‘‘शरीर तो हम छोड़ेंगे ही। अमर तो हैं नहीं।’’ फिर अन्य लोगों के उदाहरण देने लगे कि फलाने बाबाजी की समाधी वहाँ बन गई, फलाने की वहाँ। और हम लोगों से कहने लगे कि देखो! हमें बाहर मत ले जाना। हमारा मन है कि हम और माताजी यहीं रहेंगे। हमारी समाधी यहीं बनाना। ’’हम सभी उदास हो गये, माताजी भी रोने लगीं। तब गुरुजी बोले, ‘‘भावुक क्यों होती हो, क्या यह सच नहीं है?’’ माताजी बोलीं, ‘‘पर बच्चों के सामने क्यों...?’’ गुरुजी बोले, ‘‘आज नहीं तो कल, हमको जाना तो है ही।’’ फिर उस दिन गोष्ठी आगे नहीं बढ़ी।
🔴 कुछ दिन बाद गुरुजी ने गोष्ठी में कहा कि हमने अपने दोनों के लिये जगह चुन ली है। हम दोनों के लिये दो घोंसले बनाओ। फिर एक दिन बोले, ‘‘ऋषिकेश जाओ, वहाँ जो गुरुद्वारे में दो छतरियाँ बनी हैं, उन्हें देखकर आओ और हमारे लिये वैसी ही बना दो। एक का नाम होगा, सजल-श्रद्धा और दूसरी का प्रखर-प्रज्ञा इसी दौरान जयपुर से वीरेन्द्र अग्रवाल जी आये, उनके सामने भी चर्चा हुई, तो उन्होंने कहा, ‘‘गुरुजी, संगमरमर की छतरी बना दें?’’ गुरुजी बोले, ‘‘ठीक है, संगमरमर की बना दो।’’ इस प्रकार गुरुजी ने अपने रहते ही सजल-श्रद्धा और प्रखर-प्रज्ञा का निर्माण करवा दिया था।
🔵 संगमरमर का चबूतरा बना, सामने का फर्श कच्चा रखा गया और गुरुजी ने घोषणा कर दी कि हमारा संस्कार यहीं होगा, हम कहीं बाहर नहीं जायेंगे। हम प्रखर-प्रज्ञा में रहेंगे और माताजी सजल-श्रद्धा में रहेंगी। हमारी #चेतना यहाँ आगामी #सौ वर्षों तक रहेगी और पूरे #विश्व का यह #शक्ति_केंद्र होगा। यहाँ से हम सबको सजल-श्रद्धा और प्रखर-प्रज्ञा का अंश देते रहेंगे। यहाँ हर कोई हमसे मिल सकेगा, अपनी बात कह सकेगा। हम सबकी उसी प्रकार सेवा करते रहेंगे, जैसे जीवित अवस्था में कर रहे हैं। आज सजल-श्रद्धा प्रखर-प्रज्ञा संपूर्ण #गायत्री#परिवार की श्रद्धा का केन्द्र है और परिजन यहाँ पर गुरुजी-माताजी की चेतना को अनुभव भी करते हैं और उनके दर्शन भी।
🔴 जीवन के अंतिम क्षणों में गुरुजी, माताजी को निर्देश दे गये थे कि उनके शरीर छोड़ने पर भी उनके किसी भी कार्य में कोई व्यवधान नहीं आना चाहिये। उस समय माताजी के उस स्वरूप को देखकर हमें आज भी आश्चर्य होता है, और साथ ही विश्वास भी कि वे साक्षात् पार्वती ही थीं, जिन्हें अपने शिव की अनश्वरता का पूर्ण अहसास था, अन्यथा साधारण माटी की महिला तो ऐसा नहीं कर सकती कि मालूम है, गुरुजी शरीर छोड़ चुके हैं, फिर भी प्रवचन दिया, सबसे मिलीं। जितनी भीड़ आई थी, सबको भोजन करने का निर्देश दिया। सबके भोजन कर चुकने के बाद ही गुरुजी के शरीर छोड़ने के विषय में बताया।
🔵 शाम को गुरुजी के पार्थिव शरीर को अग्नि के सुपुर्द कर दिया गया। उस समय हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था, जब माताजी ने नादयोग की घंटी बजाने का निर्देश दिया। हम उनकी ओर देखते रह गये। वे बोलीं, ‘‘गुरुजी का निर्देश है, सब कार्य यथावत् चलेंगे, कोई कार्य रुकेगा नहीं। मैं यहीं हूँ, कहीं नहीं जा रहा, बस स्थूल देह त्यागी है।’’ शाम को माताजी ने सबके लिये खिचड़ी बनाने का निर्देश दिया और कहा, ‘‘कोई भूखा नहीं सोयेगा।’’ अगले दिन सुबह के भी सभी क्रम यथावत् चले, माता जी सबसे मिलीं भी।
🔴 गुरुजी के अंतिम समय के शब्दों को सुनने के लिए हम लोग लालायित थे। बड़ी तड़प थी। सो माताजी से जब अनुनय-विनय किया तो उन्होंने कहा, ‘‘वे बहुत पहले से ही कहने लगे थे कि मैं गायत्री जयंती के दिन यह शरीर छोड़ दूँगा। उस दिन साढ़े चार बजे मैं गुरुजी को प्रणाम करके 6:30 बजे स्टेज पर पहुँच गई। मैंने भाषण भी दिया। चार शादियाँ थीं, बच्चों को आशीर्वाद भी दिया, तिलक किया, माला पहनाई, बच्चों को खाना भी खिलाया। प्रणाम में केवल पाँच व्यक्तियों को मैंने फूल दिये और आगे मैं फूल न दे सकी। कारण, मेरा शरीर प्रणाम करा रहा था, पर मुझे मालूम था कि गुरुजी ने अपने शरीर से विदाई ले ली है। चलते समय गुरुजी ने हाथ पकड़कर अंतिम बार मुझे बस इतना ही कहा था कि मैं गायत्री परिवार के बच्चों की जिम्मेदारी तुम पर और केवल तुम पर छोड़े जा रहा हूँ। मैंने भी वायदा निभाने की सौगंध खाई।’’
🔵 गुरुजी का लिखा यह गीत, जिसे माताजी ने हम सबके लिए गाया है-
तुम न घबराओ, न आँसू ही बहाओ अब,
और कोई हो न हो, पर मैं तुम्हारा हूँ।
मैं तुम्हारे घाव धो, मरहम लगाऊँगा,
मैं खुशी के गीत गा-गाकर सुनाऊँगा।
यह उनके न केवल भाव थे, बल्कि उनका जीवन था, जो हमने देखा।