शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

👉 पाप कर्मों से बचते रहो

‘मैं भूखा हूँ, इसलिए चोरी करूंगा’ ऐसा मत विचारो। क्योंकि इससे तुम्हारी भूख घटेगी नहीं, बढ़ ही जायगी। कीचड़ खाकर किसने दुर्भिक्ष को काटा है? पाप कर्म तो तुम्हें और भी अधिक कंगाल बना देंगे। आग से आग की उत्पत्ति होती है और पाप से पाप की, इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि भूख के मूल कारण पाप से ही दूर रहा जाय। ओस चाटने से तृप्ति नहीं हो सकती और न अधर्म का धन संतोष करा सकता है। तुम्हारा पेट चोरी से नहीं परिश्रम से भरेगा। किसी की तिजोरी को मत झाँको, अपनी भुजाओं को देखो, उनमें पेट के भर देने की भरपूर क्षमता है।

पाप कर्मों से दूर रहो जैसे साँप से दूर रहते हो। यदि तुमने पाप का भूत पाल लिया, तो यह बड़ा दुख देगा। जहाँ जाओगे वहीं छाया की तरह घेरे फिरेगा और हर घड़ी नारकीय यातनाओं से झुलसाता रहेगा। यदि तुम्हें अपने आप से प्रेम है तो देखो, पाप कर्मों की ओर मत झुकना। आपत्तियों को सहना, पर कर्तव्य धर्म से विचलित मत होना। वे मूर्ख हैं, जो पाप को पसंद करते हैं और दुख भोगते हैं, तुम्हारे लिए दूसरा मार्ग मौजूद है, वह यह कि आधे पेट खाना पर पाप कर्मों के पास न जाना।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड-ज्योति अक्टूबर 1941 पृष्ठ 1

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👉 सत्य नारायण का व्रत

सत्य की साधना में प्रवृत्त होते ही अनेक प्रलोभन और विघ्न आपको सत्य मार्ग से डिगाने की चेष्टा करेंगे। कभी ऐसा भी देखोगे कि मिथ्या का आश्रय लेने से ही आप धन, ऐश्वर्य, यश, गौरव आदि पार्थिव सुख भोग की वस्तुएं अनायास प्राप्त कर सकते हैं। किन्तु उस दशा में ऐसे प्रलोभन के हाथ से बचने की चेष्टा करो। मिथ्या का आश्रय लेकर समस्त पृथ्वी का आधिपत्य भी मिले तो उसे तुच्छ समझो। सत्य-धर्म के आश्रय में रह कर यदि सदा दरिद्री रहना पड़े, भिक्षा से निर्वाह करना पड़े, लाच्छिंत होना पड़ो, चाहे मृत्यु भी हो जाय तो उसे सहस्र गुण श्रेय समझो, ऐसा मनोबल लाने की चेष्टा करो।

यदि तुम देखो कि असत्य के प्रलोभन से तुम्हारा चित्त दुर्बल हो गया है तो काय-मनो-वाक्य से दुर्बल के बल भगवान, के चरणों में सर्वतो भाव से शरणागत हो जाओ। ‘प्रभो हमें बल दीजिये, हमारा मन मिथ्या के जाल पर मुग्ध होना चाहता है। जानते हैं कि यह मिथ्या है, असत्य है, इसका परिणाम बुरा है, तथापि दुर्बल मन किसी प्रकार मिथ्या का प्रलोभन त्याग नहीं सकता। इस मिथ्या प्रलोभन से हमारी रक्षा कीजिये। ऐसी प्रार्थना करने से भगवान् निश्चय ही रक्षा करेंगे, और यदि उनकी शरण लेने पर अनेक बार सफलता न भी हो तो भी हताश न होइये, भगवान को दोष न दीजिये बल्कि कहिये कि यथार्थ रूप से हम प्रार्थना नहीं कर सके हैं, इस कारण सफलता नहीं हुई। याद रखिए कि बार-बार की अकृत कार्यता ही अभीष्ट-सिद्धि का पूर्व लक्षण है।

📖 अखण्ड-ज्योति अक्टूबर 1941 पृष्ठ 17

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👉 महिमा गुणों की ही है

🔷 असुरों को जिताने का श्रेय उनकी दुष्टता या पाप-वृति को नहीं मिल सकता। उसने तो अन्तत: उन्हें विनाश के गर्त में ही गिराया और निन्दा के न...