🌹 राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।
🔴 संसार भर में एक ही जाति का अस्तित्व रहेगा और वह है सुसंस्कृत, सभ्य मनुष्य जाति का। काले, पीले, सफेद, गेहुँआ आदि रंगों की चमड़ी होने से किसी को भी अपनी अलग बिरादरी बनाए रह सकना अब संभव न होगा। समझदारी के माहौल में मात्र न्याय ही जीवित रहेगा और औचित्य ही सराहा, अपनाया जाएगा, तूती उसी की ही बोलेगी।
धर्म सम्प्रदायों के नाम पर, भाषा, जाति, प्रथा, क्षेत्र आदि के नाम पर जो कृत्रिम विभेद की दीवारें बन गई हैं, वे लहरों की तरह अपना-अपना अलग प्रदर्शन भले ही करती रहें, पर वे सभी एक ही जलाशय की सामयिक हलचल भर मानी जाएँगी। पानी में उठने वाले बबूले थोड़ी देर उछलने-मचलने का कौतूहल दिखाते हैं, इसके बाद त्वरित ही उनका अथाह जलराशि में विलय, समापन हो जाता है।
🔵 मनुष्य को अलगाव और बिखराव में बाँधने वाले प्रचलन इन दिनों कितने ही पुरातन, शास्त्र-सम्मत अथवा संकीर्णता पर आधारित होने के कारण कितने ही प्रबल प्रतीत क्यों न होते हों, पर अगले तूफान में इन बालुई घर-घरोंदों में से एक का भी पता न चलेगा। मनुष्य जाति अभी इन दिनों भले ही एक न हो, पर अगले ही दिनों वह सुनिश्चित रूप से एक बन कर रहेगी। धरातल एक देश बन कर रहेगा। देशों की कृत्रिम दीवारें खींचकर उसके टुकड़े बने रहना न तो व्यावहारिक रहेगा, न सुविधाजनक। इनके रहते शोषण, आक्रामकता, आपाधापी का माहौल बना ही रहेगा। देश भक्ति के नाम पर युद्ध छिड़ते रहेंगे और समर्थ दुर्बलों को पीसते रहेंगे। ‘‘जंगल का कानून-मत्स्य न्याय’’ इस अप्राकृतिक विभाजन की व्यवस्था ने ही उत्पन्न किया है। हर क्षेत्र का नागरिक अपनी ही छोटी कोठरियों में रहने के लिए बाधित है। वहाँ यह सुविधा नहीं कि अपनी अनुकूलता वाले किसी भी क्षेत्र में बस सकें।
🔴 कुछ देशों के पास अपार भूमि है, कुछ को बेतुकी घिचपिच में रहना पड़ता है। कुछ देशों ने अपने क्षेत्र की खनिज एवं प्राकृतिक सम्पदाओं पर अधिकार घोषित करके धन कुबेर जैसी स्थिति प्राप्त कर ली है और कुछ को असीम श्रम करने पर भी प्राकृतिक सम्पदा का लाभ न मिलने पर असहायों की तरह तरसते रहना पड़ता है। भगवान ने धरती को अपने सभी पुत्रों के लिए समान सुविधा देने के लिए सृजा है। प्राकृतिक सम्पदा पर सभी का समान हक है। फिर कुछ देश अनुचित अधिकार को अपनी पिटारी में बंद कर शेष को दाने-दाने के लिए तरसावें, यह विभाजन अन्यायपूर्ण होने के कारण देर तक टिकेगा नहीं।
🔵 आज की दादागीरी आगे भी इसी प्रकार अपनी लाठी बजाती रहेगी, यह हो नहीं सकेगा। विश्व एक देश होगा और उस पर रहने वाले सभी मनुष्य ईश्वर प्रदत्त सभी साधनों का उपयोग एक पिता की संतान होने के नाते कर सकेंगे। परिश्रम और कौशल के आधार पर किसी को कुछ अधिक मिले, यह दूसरी बात है, पर पैतृक सम्पदा पर तो सभी संतानों का समान अधिकार होना ही चाहिए। औचित्य होना चाहिए, ऐसा मनीषा ने घोषित किया है। न्याय युग में उसे ‘‘हो रहा है’’ या ‘‘हो गया’’ कहा जाएगा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.88
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.16
🔴 संसार भर में एक ही जाति का अस्तित्व रहेगा और वह है सुसंस्कृत, सभ्य मनुष्य जाति का। काले, पीले, सफेद, गेहुँआ आदि रंगों की चमड़ी होने से किसी को भी अपनी अलग बिरादरी बनाए रह सकना अब संभव न होगा। समझदारी के माहौल में मात्र न्याय ही जीवित रहेगा और औचित्य ही सराहा, अपनाया जाएगा, तूती उसी की ही बोलेगी।
धर्म सम्प्रदायों के नाम पर, भाषा, जाति, प्रथा, क्षेत्र आदि के नाम पर जो कृत्रिम विभेद की दीवारें बन गई हैं, वे लहरों की तरह अपना-अपना अलग प्रदर्शन भले ही करती रहें, पर वे सभी एक ही जलाशय की सामयिक हलचल भर मानी जाएँगी। पानी में उठने वाले बबूले थोड़ी देर उछलने-मचलने का कौतूहल दिखाते हैं, इसके बाद त्वरित ही उनका अथाह जलराशि में विलय, समापन हो जाता है।
🔵 मनुष्य को अलगाव और बिखराव में बाँधने वाले प्रचलन इन दिनों कितने ही पुरातन, शास्त्र-सम्मत अथवा संकीर्णता पर आधारित होने के कारण कितने ही प्रबल प्रतीत क्यों न होते हों, पर अगले तूफान में इन बालुई घर-घरोंदों में से एक का भी पता न चलेगा। मनुष्य जाति अभी इन दिनों भले ही एक न हो, पर अगले ही दिनों वह सुनिश्चित रूप से एक बन कर रहेगी। धरातल एक देश बन कर रहेगा। देशों की कृत्रिम दीवारें खींचकर उसके टुकड़े बने रहना न तो व्यावहारिक रहेगा, न सुविधाजनक। इनके रहते शोषण, आक्रामकता, आपाधापी का माहौल बना ही रहेगा। देश भक्ति के नाम पर युद्ध छिड़ते रहेंगे और समर्थ दुर्बलों को पीसते रहेंगे। ‘‘जंगल का कानून-मत्स्य न्याय’’ इस अप्राकृतिक विभाजन की व्यवस्था ने ही उत्पन्न किया है। हर क्षेत्र का नागरिक अपनी ही छोटी कोठरियों में रहने के लिए बाधित है। वहाँ यह सुविधा नहीं कि अपनी अनुकूलता वाले किसी भी क्षेत्र में बस सकें।
🔴 कुछ देशों के पास अपार भूमि है, कुछ को बेतुकी घिचपिच में रहना पड़ता है। कुछ देशों ने अपने क्षेत्र की खनिज एवं प्राकृतिक सम्पदाओं पर अधिकार घोषित करके धन कुबेर जैसी स्थिति प्राप्त कर ली है और कुछ को असीम श्रम करने पर भी प्राकृतिक सम्पदा का लाभ न मिलने पर असहायों की तरह तरसते रहना पड़ता है। भगवान ने धरती को अपने सभी पुत्रों के लिए समान सुविधा देने के लिए सृजा है। प्राकृतिक सम्पदा पर सभी का समान हक है। फिर कुछ देश अनुचित अधिकार को अपनी पिटारी में बंद कर शेष को दाने-दाने के लिए तरसावें, यह विभाजन अन्यायपूर्ण होने के कारण देर तक टिकेगा नहीं।
🔵 आज की दादागीरी आगे भी इसी प्रकार अपनी लाठी बजाती रहेगी, यह हो नहीं सकेगा। विश्व एक देश होगा और उस पर रहने वाले सभी मनुष्य ईश्वर प्रदत्त सभी साधनों का उपयोग एक पिता की संतान होने के नाते कर सकेंगे। परिश्रम और कौशल के आधार पर किसी को कुछ अधिक मिले, यह दूसरी बात है, पर पैतृक सम्पदा पर तो सभी संतानों का समान अधिकार होना ही चाहिए। औचित्य होना चाहिए, ऐसा मनीषा ने घोषित किया है। न्याय युग में उसे ‘‘हो रहा है’’ या ‘‘हो गया’’ कहा जाएगा।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.88
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.16