◾ बुराइयों के प्रति लोगों में जिस तरह आकर्षण होता है, उसी तरह यदि ऐसा दृढ़ भाव हो जाय कि हमें अमुक शुभ कर्म अपने जीवन में पूरा करना ही है तो उस कार्य की सफलता असंदिग्ध हो जायगी। यदि सिनेमा न देखने का, बीड़ी, सिगरेट न पीने का, जुआ न खेलने का, मांस-मदिरा न सेवन करने का व्रत ठाना जाय और उस व्रत का दृढ़तापूर्वक पालन किया जाय तो इन दुर्गुणों के कारण मलिन होने वाले स्वभाव में स्वच्छता आयेगी
◾ जीवन एक संग्राम है। इसमें वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है, जो या तो परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढाल लेता है या जो अपने पुरुषार्थ के बल पर परिस्थिति को बदल देता है। हम इन दोनों में से किसी भी एक मार्ग को या समयानुसार दोनों मार्गों का उपयोग कर जीवन संग्राम में विजयी हो सकते हैं।
◾ शिष्टाचार हमारे आचरण और व्यवहार का एक नैतिक मापदण्ड है, जिस पर सभ्यता और संस्कृति का भवन निर्माण होता है। एक दूसरे के प्रति सद्भावना, सहानुभूति, सहयोग आदि शिष्टाचार के मूलाधार हैं। इन मूल भावनाओं से प्रेरित होकर दूसरों के प्रति नम्र, विनयशील, संयम, आदरपूर्ण उदार आचरण ही शिष्टाचार है।
◾ भाग्यवाद का नाम लेकर अपने जीवन में निराशा, निरुत्साह के लिए स्थान मत दीजिए। आपका गौरव निरन्तर आगे बढ़ते रहने में है। भगवान् का वरद् हस्त सदैव आपके मस्तक पर है। वह तो आपका पिता, अभिभावक, संरक्षक, पालक सभी कुछ है। उसकी निष्ठुरता आप पर भला क्यों होगी? क्या यह सच नहीं कि उसने आपको यह अमूल्य मनुष्य शरीर दिया, बुद्धि दी, विवेक दिया है। कुछ अपनी इन शक्तियों से भी काम लीजिए, देखिए आपका भाग्य बनता है या नहीं?
◾ जीवन एक संग्राम है। इसमें वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है, जो या तो परिस्थिति के अनुकूल अपने को ढाल लेता है या जो अपने पुरुषार्थ के बल पर परिस्थिति को बदल देता है। हम इन दोनों में से किसी भी एक मार्ग को या समयानुसार दोनों मार्गों का उपयोग कर जीवन संग्राम में विजयी हो सकते हैं।
◾ शिष्टाचार हमारे आचरण और व्यवहार का एक नैतिक मापदण्ड है, जिस पर सभ्यता और संस्कृति का भवन निर्माण होता है। एक दूसरे के प्रति सद्भावना, सहानुभूति, सहयोग आदि शिष्टाचार के मूलाधार हैं। इन मूल भावनाओं से प्रेरित होकर दूसरों के प्रति नम्र, विनयशील, संयम, आदरपूर्ण उदार आचरण ही शिष्टाचार है।
◾ भाग्यवाद का नाम लेकर अपने जीवन में निराशा, निरुत्साह के लिए स्थान मत दीजिए। आपका गौरव निरन्तर आगे बढ़ते रहने में है। भगवान् का वरद् हस्त सदैव आपके मस्तक पर है। वह तो आपका पिता, अभिभावक, संरक्षक, पालक सभी कुछ है। उसकी निष्ठुरता आप पर भला क्यों होगी? क्या यह सच नहीं कि उसने आपको यह अमूल्य मनुष्य शरीर दिया, बुद्धि दी, विवेक दिया है। कुछ अपनी इन शक्तियों से भी काम लीजिए, देखिए आपका भाग्य बनता है या नहीं?
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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