बुधवार, 17 मई 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 17 May 2023

यह निर्विवाद है कि दूसरों के सहयोग की उपेक्षा करके कोई व्यक्ति प्रगतिशील, सुखी एवं समृद्ध होना तो दूर, ठीक तरह जिंदगी के दिन भी नहीं गुजार सकता, इसलिए प्रत्येक बुद्धिमान् व्यक्ति को इस बात की आवश्यकता अनुभव होती है कि वह अपने परिवार का, मित्रों का, साथी-सहयोगियों का तथा सर्वसाधारण का अधिकाधिक सहयोग प्राप्त करे और यह तभी संभव है जब हम दूसरों के साथ अधिक सहृदयता एवं सद्भावना पूर्ण व्यवहार करने का अभ्यास करें।

हर व्यक्ति में दक्षता के बीज समुचित मात्रा में विद्यमान रहते हैं। प्रश्न इतना भर है कि उनके विकास का प्रयत्न किया गया या नहीं?  यदि मनुष्य उनके विकास की आवश्यकता सच्चे मन से, गहरी संवेदना के साथ अनुभव करे तो भीतर से इतना उत्साह उठेगा कि प्रसुप्त क्षमताओं के सजग-सक्रिय होने में देर न लगेगी।

आवश्यक नहीं कि हर व्यक्ति को गरीबी या मुसीबत के थपेड़े ही सक्रिय बनावें। प्रश्न दिलचस्पी का है। यदि कार्य की दक्षता को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया जाय और उस आधार पर अपनी प्रतिभा, गरिमा को विकसित करने का लक्ष्य रखा जाय तो यह विश्वास जमेगा कि हाथ में लिया हुआ हर काम अपने वर्चस्व का प्रमाण बनकर बाहर आये। अधूरे और बेतुके काम को यदि अपनी निन्दा, निकृष्टता का उद्घोष समझा जा सके तो फिर मन यही कहेगा कि जो कुछ किया जा रहा है, वह शानदार होना चाहिए। ऐसी ही मनःस्थिति में मनुष्य की दक्षता का विकास होता है।

हर असफलता के बाद हम दूनी क्रियाशीलता के साथ आगे बढ़ें, यह पुरुषार्थ की चुनौती है। जो एक ही ठोकर में निराश हो बैठा, जिसका आशा दीप एक ही फूँक में बुझ गया। उस दुर्बल मन व्यक्ति ने न जीवन का स्वरूप समझा और न संसार का। यहाँ पग-पग पर संघर्ष करना होता है। कदम-कदम पर साहस, धैर्य और पुरुषार्थ की परीक्षा देनी होती है। जो उस मूल्य को चुकाने के लिए तैयार न हों, उन्हें सफलता जैसे वरदान की आशा भी नहीं करनी चाहिए।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 मन को बालक्रीड़ाओं में भटकने न दें (भाग 3)

किसी विचारवान की दृष्टि से देखा जाये तो इस प्रकार जिया जाना कृमि-कीटकों से, पशु-पक्षियों से ऊँचे स्तर का तनिक भी नहीं है। सभी जीवधारी ऐसा ही करते एवं इसी मार्ग पर चलते रहते हैं। भवन बनाने में दीमक, और दाने जमा करने में, श्रम करने में चींटी की मेहनत को सराहा ही जा सकता है। जमाखोरी के लिए खटने वालों में मधुमक्खी का जीवन इसी गोरख-धन्धे में बीतता है। दिन भर वह श्रम करती है और उस संचय का लाभ कोई दूसरे उठाते हैं। मनुष्य भी अपनी क्षमताओं का उपयोग इन्हीं प्रयोजनों के लिए करते रहते हैं। सब ओर जो होता दिखता है उसी की नकल वे स्वयं भी करने लगते हैं। मस्तिष्क में समझ तो बहुत होती है। शिक्षा और चतुरता तो बहुत अर्जित कर ली जाती है। पर उनका उपयोग भी इन्हीं तुच्छ प्रयोजनों के लिए होता रहता है। इसी कोल्हू में चलते पिलते वह दिन आ खड़ा होता है जिसके उपरान्त और कुछ करने को शेष नहीं रह जाता।

मन को समझाया जाना चाहिए कि जिस प्रकार एकाकी स्वार्थ चिन्तन में अपनी बुद्धि लगाई जाती है, उसी प्रकार यह भी देखा जाना चाहिए कि जीवन सम्पदा का उपयोग मानवोचित रीति से हुआ या नहीं? मनुष्य को अतिरिक्त बुद्धिमत्ता, अतिरिक्त क्षमता और प्रतिभाओं से भरा-पूरा जीवन दिया गया है। वह शरीर यात्रा भर के लिए खर्च नहीं हो जाना चाहिए जिस प्रकार कीड़े-मकोड़ों का होता है।

अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए मोर नाचता है, जुगनूँ चमकता है, भौंरा गूँजता है, पर इस विडंबना से क्या तो उन्हें मिलता है और क्या कोई और कुछ पता या सीखता है। वैभव बढ़ाकर ठाठ-बाट रोपने में हमें भी मिथ्या अभिमान के अतिरिक्त और क्या मिल पाता है। उपभोग की एक सीमा है। उसके बाद जो बचता है, उसे दूसरे मुफ्तखोर ही हड़प जाते और हराम की कमाई को फुलझड़ी की तरह जलाते हैं। हो सकता है यह मुफ्तखोर तथाकथित कुटुम्बी सम्बन्धी ही क्यों न हों?

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति फरवरी 1986 पृष्ठ 3


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