🔴 एक बार सन्त तुकाराम अपने खेत से गन्ने का गट्ठा लेकर घर आ रहे थे। रास्ते में उनकी उदारता से परिचित बच्चे उनसे गन्ने माँगते तो उन्हें एक-एक बाँटते घर पहुँचे। तब केवल एक ही गन्ना उनके हाथ में था। उनकी स्त्री बड़ी क्रोधी स्वभाव की थी। उसने पूछा शेष गट्ठा कहाँ गया? उत्तर मिला बच्चों को बाँट दिया। इस पर वह और भी क्रुद्ध हुई और उस गन्ने को तुकाराम की पीठ पर जोर से दे मारा। गन्ने के दो टुकड़े हो गये।
🔵 बहुत चोट लगी। फिर भी वे क्रुद्ध न हुए और हँसते हुए बड़े स्नेह से बोले- तुमने अच्छा किया, टुकड़े करने का मेरा श्रम बचा दिया। लो एक टुकड़ा तुम खाओ, एक मैं लिये लेता हूँ। उनकी इस सहनशीलता को देखकर स्त्री पानी-पानी हो गई और चरणों पर गिर कर अपने अपराध के लिए क्षमा माँगने लगी।
🔴 ईश्वर भक्त सब में अपनी ही आत्मा देखते है, इसलिये वे किसी पर क्रोध नहीं करते अपनी सज्जनता के प्रभाव से दूसरों के हृदय परिवर्तन का कार्य करते रहते है।
🌹 अखण्ड ज्योति जून 1961
🔵 बहुत चोट लगी। फिर भी वे क्रुद्ध न हुए और हँसते हुए बड़े स्नेह से बोले- तुमने अच्छा किया, टुकड़े करने का मेरा श्रम बचा दिया। लो एक टुकड़ा तुम खाओ, एक मैं लिये लेता हूँ। उनकी इस सहनशीलता को देखकर स्त्री पानी-पानी हो गई और चरणों पर गिर कर अपने अपराध के लिए क्षमा माँगने लगी।
🔴 ईश्वर भक्त सब में अपनी ही आत्मा देखते है, इसलिये वे किसी पर क्रोध नहीं करते अपनी सज्जनता के प्रभाव से दूसरों के हृदय परिवर्तन का कार्य करते रहते है।
🌹 अखण्ड ज्योति जून 1961