सोमवार, 9 मई 2016

🌞 शिष्य संजीवनी (भाग 43) :- सदगुरु संग बनें साधना-समर के साक्षी

🔴  शिष्य संजीवनी के सूत्र जब शिष्यों के जीवन में घुलते हैं तो साधना का शास्त्र जन्म लेता है। यह शास्त्र दूसरे तमाम शास्त्रों से एकदम अलग है। क्योंकि इससे कागद कारे होने की बजाय जीवन उजला होता है। जहाँ अन्य शास्त्र निर्जीव होते हैं, वहीं इसमें जीवन छलकता है, जागृति चमकती है। इस फर्क का कारण केवल इतना है कि दूसरे शास्त्रों का लेखन कागज के पन्नों पर किया जाता है। लेकिन यहाँ तो जिन्दगी के फलक पर कर्म के अक्षर उकेरे जाते हैं।

🔵  जिन्होंने ऐसा करने का साहस किया है, वे इसके महत्त्व और महिमा को पहचानते हैं। उन्हें यह अनुभव हुए बिना नहीं रहता कि शिष्यत्व की साधना का सुफल कितने आश्चर्यों से भरा है। हां इतना जरूर है कि इसके लिए जीवन संग्राम में युद्ध करने की कुशलता सीखनी पड़ती है।

🔴  जीवन का यह महासंग्राम अन्य युद्धों से काफी अलग है। साधना के इस महासमर में अपूर्व कुशलता चाहिए। यह कुशलता कैसी हो इसके लिए शिष्य संजीवनी के दसवें सूत्र को अपने जीवन में घोलना होगा। इसमें शिष्यत्व की साधना के विशेषज्ञ जन कहते हैं- भावी साधना समर में साक्षी भाव रखो। और यद्यपि तुम युद्ध करोगे, पर तुम योद्धा मत बनना।

🔵  हां यह सच है कि वह तुम्ही हो, फिर भी अभी की स्थिति में तुम सीमित हो। अभी तुमसे भूल सम्भव है। लेकिन वह शाश्वत और निःसंशय है। जब वह एक बार तुममे प्रवेश करके तुम्हारा योद्धा बन गया, तो समझो कि वह कभी भी तुम्हारा त्याग न करेगा और महाशान्ति के दिन तुम से एकात्म हो जाएगा।

🌹 क्रमशः जारी
🌹 डॉ. प्रणव पण्डया
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