मंगलवार, 6 सितंबर 2022

👉 क्षुद्र हम, क्षुद्रतम हमारी इच्छाएँ (अन्तिम भाग )

🔴 अब पछताय होत क्या?
राजा जो था, वह बहुत दुःखी हुआ और बेचारा बैठकर रोने लगा। क्या हुआ? उन्होंने कहा कि राजा के सारे खजाने में जो लाखों रुपया रखा था, दंगाई आये, डकैत आये और लूट खसोट कर ले गये। फिर राजा के मंत्री आये और दूसरे लोग आये। उन्होंने कहा कि यह दंगा कैसे हो गया? बलवा कैसे हो गया? एक एक कमेटी बैठायी गयी और एक आयोग नियुक्त किया गया, जो इस बात की इन्क्वायरी करे कि दंगा होने की वजह क्या थी?

🔵 दंगा होने की वजह जब मालूम की गयी, तो यह मालूम हुआ कि जो दंगा हुआ था, इसलिए हुआ था कि ब्राह्मणों और ठाकुरों में लड़ाई हुई थी। फिर पता चला कि कुत्तों के मारे लड़ाई हो गयी। फिर यह पूछा गया कि कुत्तों की लड़ाई क्यों हुई? तब पता चला कि बिल्ली को पकड़ने के लिए कुत्ते आ गये थे, इसलिए यह हुआ। बिल्लियाँ कहाँ से आयीं? क्योंकि छिपकलियाँ आ गयीं थी और उन्होंने ऐसे गड़बड़ किया कि उन्हें पकड़ने के लिए बिल्ली आ गयी। फिर उन्होंने कहा कि अच्छा। छिपकलियाँ कहाँ से आयीं? उन्होंने कहा कि वहाँ मक्खियाँ भिन−भिना रही थीं और उन मक्खियों के भिनभिनाने की वजह? उन्होंने कहा राजा साहब ने जो शहद खाया था और शहद खाने में गलती कर डाली थी, बस उसी की वजह से यह सारा झगड़ा हो गया।

🔴  सारा ढाँचा विवेकशीलता पर टिका

मित्रो! हमारे जीवन में भी यही होता है। विवेकहीनता के कारण बिलकुल हमारे जीवन में भी यही घटना घटित होती रहती है। राजा बड़ा बेवकूफ और विवेकहीन था, क्योंकि उसने शहद सँभलकर नहीं खाया। शहद को सँभलकर खाया होता, तो मक्खियाँ क्यों आतीं? बिल्ली क्यों आती? छिपकलियाँ क्यों आतीं? कुत्ते क्यों आते? दंगा क्यों होता? और बलवा क्यों होता? और खजाने पर हमला क्यों बोला गया होता? छोटी सी भूल के कारण राजा अपना खजाना खो बैठा और छोटी सी हमारी भूल के कारण राजा अपना खजाना खो बैठा और छोटी सी हमारी भूल हमारे खजाने को खो बैठी। जरा सी बात थी, विवेक की बात थी। यह इशारा भर था कि हमारे जीवन में यह ख्याल बना रहता कि हम इंसान के रूप में जीवन लेकर के इस दुनिया में आये हैं और हमको ब्राह्मण वाले जीवन को ब्राह्मण की तरीके से खर्च करना चाहिए और इसके बदले में बहुमूल्य आनन्द और बहुमूल्य लाभ प्राप्त करना चाहिए।

🔵 इतनी सी रत्ती भर बात अगर हमारे मन में सावधानी के रूप में बनी रहती, तो हमारी ये गतिविधियाँ कुछ अलग तरह की रहतीं और जिस तरह की गतिविधियाँ आज हमारी हैं, उस तरह का गंदा, कमीना जीवन जीने के लिए हमको मजबूर न करतीं। फिर हमारी ख्वाहिशें अलग तरह की होतीं, फिर हमारी इच्छाएँ अलग तरह की होतीं। फिर हमारी कामनाएँ अलग तरह की होतीं, फिर हमारी दिशाएँ अलग तरह की होतीं फिर हमारे सोचने का ढंग अलग तरह का होता। आज यह सब जैसा है, उसमें जमीन- आसमान का फर्क होता। हमारे विचार करने का ढंग, काम करने का ढंग अलग तरह का होता। यह सारे का सारा ढाँचा हमारी विवेकशीलता पर टिका हुआ है। विवेकवान बनकर ही हम अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सकते हैं।

आज की बात समाप्त।
ॐ शान्तिः
पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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