सोमवार, 6 नवंबर 2023

👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 08 Nov 2023

समर्पण का अर्थ है-  दो का अस्तित्व मिटाकर एक हो जाना। पति-पत्नी की तरह ही गुरु व षिश्य की आत्मा में भी परस्पर ब्याह होता है। दोनों एक दूसरे से घुल-मिलकर एक हो जाते हैं। तुम भी अपना अस्तित्व मिटाकर हमारे साथ मिला दो व अपनी क्षुद्र महत्त्वाकांक्षाओं को हमारी अनन्त आध्यात्मिक महत्त्वाकांक्षाओं में विलीन कर दो। जिसका अहम् जिन्दा है, वह वेष्या है। जिसका अहम् मिट गया, वह पवित्र आत्मा है। देखना है कि हमारी भुजा, आँख, मस्तिश्क बनने के लिए तुम सब कितना अपने अहम् को गला पाते  हो?              

श्रम का सम्मान करो। यह भौतिक जगत् का देवता है। मोती-हीरे श्रम से ही निकलते हैं। हमारे राश्ट्र का दुर्भाग्य यह है कि श्रम की महत्ता हमने समझा नहीं। हमने कभी उसका मूल्यांकन किया ही नहीं। हमारा जीवन निरन्तर श्रम का ही परिणाम है। बीस-बीस घण्टे तन्मयतापूर्वक श्रम हमने किया है। तुम भी कभी श्रम की उपेक्षा मत करना। मालिक बारह घण्टे काम करता है, नौकर आठ घण्टे तथा चोर चार घण्टे काम करता है। तुम सब अपने आपसे पूछो कि हम तीनों में से क्या हैं? जीभ चलाने के साथ-साथ कठोर परिश्रम करो। अपनी योग्यताएँ बढ़ाओ व निरन्तर प्रगति पथ पर बढ़ते जाओ।                                                  

बेटा ! मैं तुम लोगों के लिए बहुत कुछ करना चाहता हूँ, पर चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता, क्योंकि तुम सबने अपने द्वार-दरवाजे बन्द कर रखे हैं। जिधर से घुसने की कोशीश करो उधर ही अहम् का पहरा नजर आता है। हर तरफ क्षुद्रताएँ एवं संकीर्णताएँ रास्ता घेरे हैं। जब कभी सूक्ष्म रूप से तुम लोगों की बातें सुनता हूँ तो हल्केपन के सिवाय कुछ नजर नहीं आता है। यदि तुम यह चाहते हो कि तुम्हारी जिन्दगी में भी वैसे ही चमत्कार हों, जैसे कि मेरी जिन्दगी में हुए तो फिर तुम ‘शिष्य’ बनो। संसार की वासनाओं, कामनाओं के पीछे मत भागो। यों पास बैठना, मिलना भी कोई पास होना या मिलना है! सच्चा मिलन तो वह है, जब
शिष्य की अन्तर्चेतना अपने गुरु की अन्तर्चेतना से मिलती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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👉 शक्ति बिना मुक्ति नहीं

यह बात भली-भाँति हृदयंगम कर लेनी चाहिये कि शक्ति बिना मुक्ति नहीं। गरीबी से, गुलामी से, बीमारी से, बेईमानी से भव बाधा से तब तक छुटकारा नहीं मिल सकता, जब तक कि शक्ति का उपार्जन न किया जाय। आर्य जाति सदा से ही शक्ति का महत्व स्वीकार करती है और उसने शक्ति पूजा को ऊँचा स्थान दिया है, अनेक महापुरुषों ने तो शक्ति को ही सर्वोपरि धर्म मानकर शाक धर्म की स्वतन्त्र स्थापना की। पहले यह वैदिक धर्म का ही एक अंक था, पीछे मद्य माँस की वाममार्गी छाया इस पर पड़ने के कारण तिरष्कृत बन गया। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी को दुर्गा, देवी, चंडी, काली, भवानी आदि नामों से पुकारा जाता है, यह असुरों से धर्म युद्ध करती है और उनका रक्त पान करके प्रसन्न होती है।

एक महात्मा का कथन है Right is might, therefore might is Right अर्थात् सत्य ही शक्ति है, इसलिए शक्ति ही सत्य है, अविद्या, अन्धकार और अनाचार का नाश सत्य के प्रकाश द्वारा ही हो सकता है। शक्ति की विद्युत धारा में ही वह शक्ति है कि वह मृतक व्यक्ति या समाज की नसों में प्राण संचार करे और उसे सशक्त एवं सतेज बनाये। शक्ति एक तत्व है, जिसका आह्वान करके जीवन के विभिन्न विभागों में भरा जा सकता है और उसी अंक में तेज एवं सौंदर्य का दर्शन किया जा सकता है , शरीर में शक्ति का आविर्भाव होने पर देह कुन्दन जैसी चमकदार, हथोड़े जैसी गढ़ी हुई, चन्दन जैसी सुगंधित एवं अष्टधातु सी निरोग बन जाती है, बलवान शरीर का सौंदर्य देखते ही बनता है। मन में शक्ति का उदय होने पर साधारण से मनुष्य कोलम्बस, लेनिन, गाँधी, सनयातसेन जैसी हस्ती बन जाते हैं और ईसा, बुद्ध, राम, कृष्ण, मुहम्मद के समान असाधारण कार्य अपने मामूली शरीरों के द्वारा ही करके दिखा देते हैं। बौद्धिक बल की जरा सी चिनगारियाँ बड़े-बड़े तत्व ज्ञानों की रचना करती है और वर्तमान युग के वैज्ञानिक आविष्कारों की भाँति चमत्कारिक वस्तुओं के अनेकानेक निर्माण कर डालती है, अधिक बल का थोड़ा सा प्रसाद हमारे आसपास चकाचौंध उत्पन्न कर देता है, जिन सुख साधनों के स्वर्ग लोक में होने की कल्पना की गई है, पैसे के बल से वे इस भूलोक में भी प्रत्यक्ष देखे जा सकते है और संगठन बल, अहः! वह तो गजब की चीज है। एक और एक मिलकर ग्यारह हो जाने की कहावत पूरी सचाई से भरी हुई है। दो व्यक्ति यदि सच्चे दिल से मिल जावें, तो उनकी शक्ति ग्यारह गुनी हो जाती है। सच्चे कर्मवीर थोड़े संख्या में भी आपस में मिल कर काम करें सो वे आश्चर्यजनक कार्य कर सकते हैं। कलयुग में तो संघ को ही शक्ति कहा गया है। निस्संदेह गुटबन्दी, गिरोह बन्दी, एका, मेल, संगठन एक जादू है, जिसके द्वारा सम्बन्धित सभी व्यक्ति एक दूसरे को कुछ देते हैं और उस आदान-प्रदान से उनमें से हर एक को बल मिलता है।

आत्मा की मुक्ति भी ज्ञान शक्ति एवं साधन शक्ति से ही होती है। अकर्मण्य और निर्बल मन वाला व्यक्ति आत्मोद्धार नहीं कर सकता और न ही ईश्वर को ही प्राप्त कर सकता है। लौकिक और पारलौकिक सब प्रकार के दुख द्वंद्वों से छुटकारा पाने के लिए शक्ति की ही उपासना करनी पड़ेगी। निस्संदेह शक्ति के बिना मुक्ति नहीं मिल सकती अशक्त मनुष्य तो दुख द्वंद्वों में ही पड़े-पड़े बिलबिलाते रहेंगे और कभी भाग्य को, कभी ईश्वर को, कभी दुनिया को दोष देते हुए झूठी विडंबना करते रहेंगे। जो व्यक्ति किसी भी दशा में महत्व प्राप्त करना चाहते है, उन्हें चाहिये कि अपने इच्छित मार्ग के लिये शक्ति संपादन करे।

(1) सच्ची लगन और (2) निरंतर प्रयत्न यही दो महान् साधनाएँ हैं, जिनसे भगवती शक्ति को प्रसन्न करके उनसे इच्छित वरदान प्राप्त किया जा सकता है। आपने जो भी अपना कार्य बनाया हो जो भी जीवनोद्देश्य बनाया हो, उसे पूरा करने में जी जान से जुट जाइए सोते-जागते उसी के सम्बन्ध में विचार करते रहिए और आगे को रास्ता तलाश करते रहिए। परिश्रम। परिश्रम। घोर परिश्रम!!! आपकी आदत में शामिल होना चाहिये मत सोचिये कि अधिक काम करने से आपको थकान लगेगी। वास्तव में परिश्रम स्वयं एक चालक शक्ति है। जो अपनी बढ़ती हुई गति के अनुसार कार्य क्षमता उत्पन्न कर लेती है। उदासीन, आलसी और निकम्मे व्यक्ति दो घन्टा काम करके एक पर्वत पार कर लेने की थकान अनुभव करता है, किन्तु उत्साही उद्यमी और अपने कार्य में दिलचस्पी लेने वाले व्यक्ति सोने के समय को छोड़कर अन्य सारे समय लगे रहते है। और जरा भी नहीं थकते। सच्ची लगन दिलचस्पी, रुचि और झुकाव एक प्रकार का डायनेमो है, जो काम करने के लिए क्षमता की विद्युत शक्ति हर घड़ी उत्पन्न करता रहता है।

स्मरण रखिए कि आपका कोई भी मनोरथ क्यों न हो, वह शक्ति द्वारा ही पूरा हो सकता है। इधर-उधर बगलें झाँकने से कुछ भी प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा, दूसरों के भरोसे सिर भिगोने पर तो निराशा ही हाथ लगती है। अपने प्रिय विषय में सफल होने के लिये अपने पाँवों पार उठ खड़े हो जाइये, उसमें सच्ची लगन और दिलचस्पी पैदा कीजिए, एवं मशीन की तरह जी तोड़ परिश्रम के साथ काम में जुट जाइए अधीर मत होइए, शक्ति की देवी आपके साहस की बार-बार परीक्षा लेगी, बार-बार असफलता और निराशा की अग्नि में तपावेगी, तथा असली नकली की जाँच करेगी, यदि आप कष्ट कठिनाई, असफलता, निराशा, विलम्ब आदि की परीक्षाओं में उत्तीर्ण हुए, तो वह प्रसन्न होकर प्रकट होगी और इच्छित वरदान वरन् उससे भी कई गुना अधिक फल प्रदान करेगी।

एक बार, दो बार हजार बार इस बात को गिरह बाँध लीजिए कि शक्ति के बिना मुक्ति नहीं। दुख दरिद्र की गुलामी से छुटकारा शक्ति उपार्जन किये बिना कदापि नहीं हो सकता आप अपने लिए कल्याण चाहते हैं, तो उठिए शक्ति को बढ़ाइए बलवान बनिए अपने अन्दर लगन कर्मण्यता और आत्मविश्वास पैदा कीजिए जब आप अपनी सहायता खुद करेंगे, तो ईश्वर भी आपकी सहायता करने के लिए दौड़ा-दौड़ा आवेगा।

✍🏻 पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जुलाई 1942 पृष्ठ 10


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