🌹 राष्ट्रीय एकता एवं समता के प्रति निष्ठावान् रहेंगे। जाति, लिंग, भाषा, प्रांत, सम्प्रदाय आदि के कारण परस्पर कोई भेदभाव न बरतेंगे।
🔴 अगली शताब्दी की संभावनाएँ अद्भुत, अनुपम और अभूतपूर्व हैं। वैज्ञानिक, बौद्धिक और औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ ही उदार चेतना का अवमूल्यन भी इन्हीं दिनों हुआ है। जिसके कारण प्रगति के नाम पर जो कुछ हस्तगत हुआ है, उसका दुरुपयोग होने का परिणाम उलटे रूप में ही सामने आए हैं। सुविधा साधन अवश्य ही बढ़े हैं, पर उलझे मानस ने न केवल व्यक्तित्व का स्तर गिराया है, वरन् साधनों को इस बुरी तरह प्रयुक्त किया है कि पिछले पूर्वजों की सामान्य स्थिति की तुलना में हम कहीं अधिक समस्याओं में फँस जाने जैसी स्थिति अवश्य है, पर ऐसा नहीं हो सकता कि देवत्व से एक सीढ़ी नीचे ही समझा जाने वाला मनुष्य असहाय बनकर अपना सर्वनाश ही देखता रहे, समय रहते न चेतें।
🔵 मानस बदलने से प्रचलन गड़बड़ाते हैं और व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। बिखराव और विषमता दो बड़े संकट हैं, जो असंख्यों प्रकार के संकटों को जन्म देते हैं। इन्हें निरस्त करने के लिए एकता और समता की सर्वतोमुखी प्रतिष्ठा करनी पड़ती है। इतना बन पड़ने पर वे सभी अवरोध अनायास ही समाप्त हो जाते हैं, जो तिल से ताड़ बनकर, राई का पर्वत बन कर महाविनाश को चुनौती देते हुए गर्ज-तर्जन कर रहे थे। नवयुग में एकता और समता के दोनों सिद्धांत हर व्यक्ति को इच्छा या अनिच्छा और अंगीकार करने पड़ेंगे, ऐसा मनीषियों, भविष्यद्रष्टाओं का अभिमत है। शासन और समाज को भी अपनी मान्यताएँ व्यवस्थाएँ इसी प्रकार की बनानी पड़ेंगी।
🔴 प्रवाह और प्रचलन के अनुरूप अपने स्वभाव में आवश्यक परिवर्तन करने होंगे। अडंगेबाजी तो भली-बुरी व्यवस्था में अपनी उद्दंडता का परिचय देने के लिए कहीं न कहीं से आ टपकती है। जलते दीपक की लौ बुझाने के लिए पतंगों के दल उस पर टूट पड़ने से बाज़ नहीं आते, भले ही इस दुरभिसंधि में उन्हें अपने पंख जलाने और प्राण गँवाने पड़ें। तूफान का मार्ग रोकने वाले वृक्षों को उखड़ते और झोंपड़ों को आसमान में उड़ते हुए आए दिन देखा जाता है। महाकाल के निर्धारण एवं अनुशासन के सामने कोई उद्दंडता अवरोध बन कर अड़ेगी और व्यवधान बनकर कारगर रोकथाम करेगी, इसी आशंका न की जाए तो ही ठीक है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.86
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.16
🔴 अगली शताब्दी की संभावनाएँ अद्भुत, अनुपम और अभूतपूर्व हैं। वैज्ञानिक, बौद्धिक और औद्योगिक प्रगति के साथ-साथ ही उदार चेतना का अवमूल्यन भी इन्हीं दिनों हुआ है। जिसके कारण प्रगति के नाम पर जो कुछ हस्तगत हुआ है, उसका दुरुपयोग होने का परिणाम उलटे रूप में ही सामने आए हैं। सुविधा साधन अवश्य ही बढ़े हैं, पर उलझे मानस ने न केवल व्यक्तित्व का स्तर गिराया है, वरन् साधनों को इस बुरी तरह प्रयुक्त किया है कि पिछले पूर्वजों की सामान्य स्थिति की तुलना में हम कहीं अधिक समस्याओं में फँस जाने जैसी स्थिति अवश्य है, पर ऐसा नहीं हो सकता कि देवत्व से एक सीढ़ी नीचे ही समझा जाने वाला मनुष्य असहाय बनकर अपना सर्वनाश ही देखता रहे, समय रहते न चेतें।
🔵 मानस बदलने से प्रचलन गड़बड़ाते हैं और व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है। बिखराव और विषमता दो बड़े संकट हैं, जो असंख्यों प्रकार के संकटों को जन्म देते हैं। इन्हें निरस्त करने के लिए एकता और समता की सर्वतोमुखी प्रतिष्ठा करनी पड़ती है। इतना बन पड़ने पर वे सभी अवरोध अनायास ही समाप्त हो जाते हैं, जो तिल से ताड़ बनकर, राई का पर्वत बन कर महाविनाश को चुनौती देते हुए गर्ज-तर्जन कर रहे थे। नवयुग में एकता और समता के दोनों सिद्धांत हर व्यक्ति को इच्छा या अनिच्छा और अंगीकार करने पड़ेंगे, ऐसा मनीषियों, भविष्यद्रष्टाओं का अभिमत है। शासन और समाज को भी अपनी मान्यताएँ व्यवस्थाएँ इसी प्रकार की बनानी पड़ेंगी।
🔴 प्रवाह और प्रचलन के अनुरूप अपने स्वभाव में आवश्यक परिवर्तन करने होंगे। अडंगेबाजी तो भली-बुरी व्यवस्था में अपनी उद्दंडता का परिचय देने के लिए कहीं न कहीं से आ टपकती है। जलते दीपक की लौ बुझाने के लिए पतंगों के दल उस पर टूट पड़ने से बाज़ नहीं आते, भले ही इस दुरभिसंधि में उन्हें अपने पंख जलाने और प्राण गँवाने पड़ें। तूफान का मार्ग रोकने वाले वृक्षों को उखड़ते और झोंपड़ों को आसमान में उड़ते हुए आए दिन देखा जाता है। महाकाल के निर्धारण एवं अनुशासन के सामने कोई उद्दंडता अवरोध बन कर अड़ेगी और व्यवधान बनकर कारगर रोकथाम करेगी, इसी आशंका न की जाए तो ही ठीक है।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.86
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v2.16