शनिवार, 24 सितंबर 2022

👉 बुद्धिमत्ता और मूर्खता की कसौटी

बुद्धिमत्ता की निशानी यह मानी जाती रही है कि उपार्जन बढ़ाया जाय—अपव्यय रोक जाय और संग्रहित बचत के वैभव से अपने वर्चस्व और आनन्द को बढ़ाया जाय। संसार के हर क्षेत्र में इसी कसौटी पर किसी को बुद्धिमान ठहराया जाता है।

मानव-जीवन की सफलता का लेखा-जोखा लेते हुए भी इसी कसौटी को अपनाया जाना चाहिए। जीवन-व्यवसाय में सद्भावनाओं की—सत्प्रवृत्तियों की पूँजी कितनी मात्रा में संचित की गई? सद्विचारों का, सद्गुणों का, सत्कर्मों का वैभव कितना कमाया गया? इस दृष्टि से अपनी उपलब्धियों को परखा, नापा जाना चाहिए। लगता हो कि व्यक्तित्व को समृद्ध बनाने वाली इन विभूतियों की संपन्नता बढ़ी है तो निश्चय ही बुद्धिमत्ता की एक परीक्षा में अपने को उत्तीर्ण हुआ समझा जाना चाहिए।

समय, श्रम, धन, वर्चस्व, चिन्तन मानव-जीवन की बहुमूल्य सम्पदाऐं हैं। इन्हें साहस और पुरुषार्थ पूर्वक सत्प्रयोजन में लगाने की तत्परता बुद्धिमत्ता की दूसरी कसौटी है। जिनने इन ईश्वर-प्रदत्त बहुमूल्य अनुदानों को पेट-प्रजनन में-विलास और अहंकार में खर्च कर डाला, समझना चाहिए वे बहुमूल्य रत्नों के बदले काँच-पत्थर खरीदने वाले उपहासास्पद मनःस्थिति के बाल-बुद्धि लोग हैं। वस्तु का सही मूल्यांकन न कर सकने वाले और उपलब्धियों के सदुपयोग में प्रमाद बरतने वाले मूर्ख ही कहे जायेंगे।

जीवन-क्षेत्र में हमारी सफलता-असफलता का लेखा-जोखा प्रस्तुत करते समय यह देखना चाहिए कि कहीं दूरदर्शिता के अभाव से हम सौभाग्य को दुर्भाग्य में तो नहीं बदल रहे हैं? जीवन बहुमूल्य सम्पदा है। यह अनुपम और अद्भुत सौभाग्य है। इस सुअवसर का समुचित लाभ उठाने के सम्बन्ध में हम दूरदर्शिता का परिचय दे, इसी में हमारी सच्ची बुद्धिमत्ता मानी जा सकती हैं।

चिदानंद परिव्राजक
अखण्ड ज्योति- फरवरी 1974 पृष्ठ 3

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👉 सच्चे और ईमानदार रहिए

बेईमानी मत करो। ईमानदारी सहित अपनी शुद्धि करो। सच्चे हिन्दू बनो, सच्चे मुसलमान बनो जो बनो सच्चे बनो। आज हमारा सब से अधिक नुकसान झूँठ से हो रहा है। धार्मिक कहानियाँ भी ऐसी प्रचलित हैं जो बेईमानी सिखाती हैं। कैसे हमने इन कथाओं को सुना, सुनवाया और प्रचलित होने दिया? सब धर्मों दीनों में ऐसी बातें भरी पड़ी हैं कि अमुक देवता ने झूँठ से काम निकाला अथवा धोखा दिया। श्रीकृष्ण तक की ऐसी कहानियाँ हैं कि उन्होंने अपनी माँ से झूँठ बोला, चोरी की या चालाकी में अपने किसी चेले को सिखाया कि इस प्रकार शत्रु को मार डालो, चीर कर दो कर दो।

मनुष्य जो दिन प्रति दिन सुनता है उसका उस पर बहुत असर पड़ता है। हम वह ही बनते हैं जो हमको गढ़ कर बनाया जाता है। हमारी शिक्षा त्रुटिपूर्ण है। और इसी कारण जन साधारण में बेईमानी अधिक है। देश क्यों गिरा? क्योंकि बेईमानी थी। देश क्यों शीघ्र उन्नति नहीं करता? क्योंकि बेईमानी है! यदि हमारे देशवासी ईमानदारी को ही धर्म समझें तो धर्म और समाज की उन्नति हो।

समाज की फिर से सुरचना करनी है। समाज को इस प्रकार रचना होगा कि झूँठ अथवा बेईमानी की आवश्यकता न रहे। मनुष्य बहुधा झूँठ बोलता है, अनुचित लाभ उठाने के लिये। मनुष्य सदा ही लाभ उठाना चाहता है क्योंकि उसे कल पर भरोसा नहीं। प्रत्येक व्यक्ति को भय रहता है कल का, काल का! समय न जाने कल क्या दिखलावे? नौकरी रहती है या नहीं? व्यापार में हानि न हो जाए? कोई लड़ाई न छिड़ जाए? चोरी का भय? डाके का डर? मनुष्य पर विश्वास नहीं है। और इसलिये मनुष्य झूँठ बोल कर, छल कपट से रुपये कमाना चाहता है।

हमको ऐसा समाज बनाना चाहिए कि उसमें प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से मरण तक खाना पीना, पहनना, मकान और समस्त जीवन की आवश्यक वस्तुयें अवश्य ही मिल सकें, सन्देह न रहे, फिक्र न रहे। ऐसे समाज में मनुष्य, बिना बात, क्यों झूँठ बोलेगा।

सुसंगठित कुटुम्ब में, जहाँ माँ-बाप पुत्रादि से प्रेम करते हैं, जहाँ भाई बहन आपस में प्रेम रखते हैं, जहाँ छोटे बड़ों का आदर करते हैं और सेवा करते हैं, झूँठ नहीं बोला जाता। यदि ऐसे कुटुम्ब में कभी कोई झूँठ बोलता है तो हँसी के लिये। हम को ऐसे ही कुटुम्ब ग्राम-ग्राम और नगर-नगर में स्थापित करने हैं। मत कहिये कि यह असम्भव है। मेरा भाई यदि बीमार पड़ा है तो मैं तो उसका इलाज करूंगा ही, मैं यह नहीं सुनना चाहूँगा कि वह स्वस्थ नहीं होगा। समाज रोगी है। देश रोगी है। समाज को स्वस्थ बनाना है। आप सन्देह की बातें मत कहिये। सन्देह एक बड़ा शत्रु है।

मत कहिये कि ऐसा कभी नहीं हुआ। मत कहिये कि जो पहले कभी नहीं हुआ आज भी नहीं हो सकता। हम समस्त मनुष्य जाति का एक कुटुम्ब बनायेंगे। आज यह सम्भव है। आज हवाई जहाजों ने और रेडियो ने समस्त पृथ्वी को मानो एक छोटा सा देश बना दिया है। हमारी मनुष्य जाति अभी तो युवा अवस्था को पहुँची है। कम से कम यह सभ्यता जब से उत्पन्न हुई है आज ही इस दशा को प्राप्त कर सकी है जब कि मनुष्य आकाश में उड़ता है। आज यह भी सम्भव है कि हम मनुष्य जाति का एक कुटुम्ब बनावें। वह पागलपन ही तो था। हिन्दू, सिख और मुसलमान नामों पर हमारे देशवासी पागल हुए। बिना बात रक्तपात किया। बहु काल की उलटी शिक्षा का यह कुफल था। लोगों ने सिखाया था कि धर्म के हेतु बेईमानी करो और झूँठ बोलो , झूठ बोला और बेईमानी की। भाई का भाई से विश्वास उठ गया। फिर यह ही हुआ जो होना था!

इसलिए मैं कहता हूँ बेईमानी मत करो। मत करो किसी भी नाम पर, किसी भी विचार से। यह बुद्धिमानी नहीं कि आप धोखा देवें। कुछ मन हो, कुछ कहें, कुछ दूसरों को जतावें। यह बेईमानी है। मैं फिर कहता हूँ कि देखो, भला चाहते हो तो बेईमानी मत करो।

अखण्ड ज्योति- अगस्त 1950 पृष्ठ 9

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1950/August/v1.9

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