थियोडर पारकर कहा करते थे कि सुकरात की कीमत दक्षिण कोरोलिना की रियासतों से बहुत अधिक है। यदि तुम सोच सकते हो तो बिना मूसा के मिश्र की, बिना डेनियल के बेबोलीन की और डेमास्थनीज, फीडीयस, सुकरात या प्लेटो रहित ऐथेन्स की कल्पना करो वे वीरान दिखाई पड़ेंगे। ईसा के दो सौ वर्ष पूर्व कारथेज क्या था? बिना सीजर, सिसरो और मारकस आरेलियर के रोम क्या था? नेपोलियन, ह्यूगो, और हाईसिन्थ बिना पैरिस क्या है? वर्क, ग्लैडस्टन, पिट मिल्टन और सेक्सपियर बिना इंग्लैंड क्या है? बिना राम, बुद्ध दयानन्द और गाँधी के भारत में क्या बचता है?
हावेज कहता है- ‘चरित्रबल एक शक्ति है एक प्रतिभा है। वह मित्र और सहायक उत्पन्न कर सकती है और सुख सम्पत्ति का सच्चा मार्ग खोल सकती है’। संसार को ऐसे व्यक्तियों की बड़ी आवश्यकता है जिनमें ईमानदारी कूट-कूट कर भरी हो, जो पैसे के लिये अपनी बुद्धि न बेचे, जो सत्य के लिए स्वर्ग के सुख को ठोकर मार दें और जो धर्म के लिये मृत्यु के मुख में अपनी गरदन डाल दें। वालटेयर कहता है- पैसे से कोई बड़ा नहीं बनता, महापुरुष वह है जिसका आचरण श्रेष्ठ है। एक नीतिकार का मत है- मनुष्य का महत्व उसकी विद्या, बुद्धि ताकत या सम्पत्ति में नहीं है, उसका बड़प्पन ईमानदारी और परोपकार में है। एक तत्वज्ञ का कथन है- जिसने अपने मस्तक पर कलंक का टीका नहीं लगाया और जिसकी गरदन किसी के सामने शर्म से नहीं झुकती वही सच्चा बहादुर है।’
चौदहवें लुई ने अपने मंत्री कालवर्ट से पूछा हमारा देश इतना बड़ा है और धन जन की हमारे पास कमी नहीं है फिर भी एक छोटे से देश हालेण्ड को हम क्यों नहीं जीत सके? मंत्री ने उत्तर दिया- श्रीमान, किसी देश की महानता उसकी लम्बाई, चौड़ाई पर नहीं, वरन वहाँ के निवासियों के चरित्र पर निर्भर है।
जब टर्की ने कोसूथ को इस शर्त पर अपने यहाँ आश्रय देना स्वीकार किया कि वह इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले। तो उस बहादुर ने कहा- “मृत्यु और शर्म का जीवन इन दोनों में से मैं पहली को पसंद करूंगा। ईश्वर की इच्छा पूरी होने दो। मैं मरने को तैयार हूँ। मेरे यह हाथ खाली हैं परन्तु इन पर कलंक की कालिमा नहीं पुती है।” चाहे मनुष्य अशिक्षित हो, अयोग्य हो, गरीब हो या हीन कुल का हो फिर भी यदि उसमें सचाई और ईमानदारी है तो वह अपने लिये उच्च स्थान प्राप्त करेगा।
इमरसन कहते हैं- ‘चोरी करने से किसी के महल खड़े नहीं होते, दान करने से कोई दरिद्री नहीं होता। इसी प्रकार सत्य बोलने वाला न तो दुःखी रहता है और न ईमानदार भूखों मर जाता है।’ महान पुरुषों के चरित्र में यह एक विशेषता होती है कि वे चारों ओर से तूफान उठने और आघात पड़ने पर जरा भी विचलित नहीं होते वरन् ब्रज के समान सुदृढ़ बने रहते हैं। लिंकन वकील था। गरीबी से गुजर करता था। पर उसने कभी झूठे मुकदमे की पैरवी नहीं की।
मिश्र का प्राचीन कालीन एक राजा लिखता है- ‘मैंने किसी बालक या स्त्री को कष्ट नहीं दिया। किसी किसान के साथ असदव्यवहार नहीं किया। मेरे राज्य में विधवा को यह मालूम नहीं होता था कि वह अनाथ हो गई है।’ कितने आश्चर्य की बात है कि लोग इस बात को नहीं जानते कि दुनिया को उनकी योग्यता की अपेक्षा चरित्र अधिक पसंद है। उच्च आचरण के कारण ही लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति बना था।
क्या ईसा मर गया? शिव, दधीचि या हरिश्चन्द्र का अस्तित्व मिट गया? क्या वाशिंगटन और अब्राहम लिंकन नहीं रहे? क्या बन्दा बैरागी और वीर हकीकत दुनिया में नहीं हैं? रोज हजारों आदमी मरते हैं उन्हें कोई जानता तक नहीं, किन्तु श्रेष्ठ आचरण मनुष्य का सुनहला स्मारक खड़ा कर देता है जो युगों तक चमकता रहता है। ऐश्वर्य भोगी राजाओं की अपेक्षा, जंगल-जंगल खाक छानते फिरने वाले राणा प्रताप अधिक सुखी हैं। बैरिस्टर गाँधी की अपेक्षा साधु गाँधी का महत्व अधिक है।
📖 अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1941 पृष्ठ 13
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