🌹 मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है, इस विश्वास के आधार पर हमारी मान्यता है कि हम उत्कृष्ट बनेंगे और दूसरों को श्रेष्ठ बनाएँगे, तो युग अवश्य बदलेगा
🔴 लेखों और भाषणों का युग अब बीत गया। गाल बजाकर, लंबी-चौड़ी डींग हाँककर या बड़े-बड़े कागज काले करके संसार के सुधार की आशा करना व्यर्थ है। इन साधनों से थोड़ी मदद मिल सकती है, पर उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। युग निर्माण जैसे महान् कार्य के लिए तो यह साधन सर्वथा अपर्याप्त और अपूर्ण हैं। इसका प्रधान साधन यही हो सकता है कि हम अपना मानसिक स्तर ऊँचा उठाएँ, चारित्रिक दृष्टि से अपेक्षाकृत उत्कृष्ट बनें। अपने आचरण से ही दूसरों को प्रभावशाली शिक्षा दी जा सकती है। गणित, भूगोल, इतिहास आदि की शिक्षा में कहने-सुनने की प्रक्रिया से काम चल सकता है, पर व्यक्ति निर्माण के लिए तो निखरे हुए व्यक्तित्वों की ही आवश्यकता पड़ेगी। उस आवश्यकता की पूर्ति के लिए सबसे पहले हमें स्वयं ही आगे आना पड़ेगा। हमारी उत्कृष्टता के साथ-साथ संसार की श्रेष्ठता अपने आप बढ़ने लगेगी। हम बदलेंगे, तो युग भी जरूर बदलेगा और हमारा युग निर्माण संकल्प भी अवश्य पूर्ण होगा।
🔵 आज वे ऋषि-मुनि नहीं रहे, जो अपने आदर्श चरित्र द्वारा लोक शिक्षण करके, जन साधारण के स्तर को ऊँचा उठाते थे। आज वे ब्राह्मण भी नहीं रहे, जो अपने अगाध ज्ञान, वंदनीय त्याग और प्रबल-पुरुषार्थ से जन-मानस की पतनोन्मुख पशु-प्रवृत्तियों को मोड़कर देवत्व की दिशा में पलट डालने का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर उठाते थे। वृक्षों के अभाव में एरंड का पेड़ ही वृक्ष कहलाता है। इस विचारधारा से जुड़े विशाल देव परिवार के परिजन अपने छोटे-छोटे व्यक्तित्वों को ही आदर्शवाद की दिशा में अग्रसर करें, तो भी कुछ न कुछ प्रयोजन सिद्ध होगा, कम से कम एक अवरुद्ध द्वार तो खुलेगा ही। यदि हम मार्ग बनाने में अपनी छोटी-छोटी हस्तियों को लगा दें, तो कल आने वाले युग प्रवर्तकों की मंजिल आसान हो जाएगी। युग निर्माण सत्संकल्प का शंखनाद करते हुए छोटे-शक्तियों के जागरण की चेतना को यदि चारित्रिक संधान के लिए जम जाग्रत कर सकें, तो आज न सही तो कल, हमारा युग निर्माण संकल्प पूर्ण होकर रहेगा।
🔴 युग परिवर्तन की सुनिश्चितता पर विश्वास करना हवाई महल नहीं बल्कि तथ्यों पर आधारित एक सत्य है। परिस्थितियाँ कितनी ही विकट हों, जब सदाशयता सम्पन्न संकल्पशील व्यक्ति एक जुट होकर कार्य करते हैं तो स्थिति बदले बिना नहीं रहती। असुरता के आतंक से मुक्ति का पौराणिक आख्यान हो या जिनके शासन में सूर्य नहीं डूबता था, उनके चंगुल से मुक्त होने का स्वतंत्रता अभियान, नगण्य शक्ति से ही सही, पर संकल्पशील व्यक्तियों का समुदाय उसके लिए युग-शक्ति के अवतरण का माध्यम बन ही जाता है। युग निर्माण अभियान से परिचित व्यक्ति यह भली प्रकार समझने लगे हैं कि यह ईश्वर प्रेरित प्रक्रिया है। इस संकल्प को अपनाने वाला ईश्वरीय संकल्प का भागीदार कहला सकता है। अस्तु, उसकी सफलता पर पूरी आस्था रखकर उसको जीवन में चरितार्थ करने-कराने के लिए पूरी शक्ति झोंक देना, सबसे बड़ी समझदारी सिद्ध होगी।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.96
🔴 लेखों और भाषणों का युग अब बीत गया। गाल बजाकर, लंबी-चौड़ी डींग हाँककर या बड़े-बड़े कागज काले करके संसार के सुधार की आशा करना व्यर्थ है। इन साधनों से थोड़ी मदद मिल सकती है, पर उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता। युग निर्माण जैसे महान् कार्य के लिए तो यह साधन सर्वथा अपर्याप्त और अपूर्ण हैं। इसका प्रधान साधन यही हो सकता है कि हम अपना मानसिक स्तर ऊँचा उठाएँ, चारित्रिक दृष्टि से अपेक्षाकृत उत्कृष्ट बनें। अपने आचरण से ही दूसरों को प्रभावशाली शिक्षा दी जा सकती है। गणित, भूगोल, इतिहास आदि की शिक्षा में कहने-सुनने की प्रक्रिया से काम चल सकता है, पर व्यक्ति निर्माण के लिए तो निखरे हुए व्यक्तित्वों की ही आवश्यकता पड़ेगी। उस आवश्यकता की पूर्ति के लिए सबसे पहले हमें स्वयं ही आगे आना पड़ेगा। हमारी उत्कृष्टता के साथ-साथ संसार की श्रेष्ठता अपने आप बढ़ने लगेगी। हम बदलेंगे, तो युग भी जरूर बदलेगा और हमारा युग निर्माण संकल्प भी अवश्य पूर्ण होगा।
🔵 आज वे ऋषि-मुनि नहीं रहे, जो अपने आदर्श चरित्र द्वारा लोक शिक्षण करके, जन साधारण के स्तर को ऊँचा उठाते थे। आज वे ब्राह्मण भी नहीं रहे, जो अपने अगाध ज्ञान, वंदनीय त्याग और प्रबल-पुरुषार्थ से जन-मानस की पतनोन्मुख पशु-प्रवृत्तियों को मोड़कर देवत्व की दिशा में पलट डालने का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर उठाते थे। वृक्षों के अभाव में एरंड का पेड़ ही वृक्ष कहलाता है। इस विचारधारा से जुड़े विशाल देव परिवार के परिजन अपने छोटे-छोटे व्यक्तित्वों को ही आदर्शवाद की दिशा में अग्रसर करें, तो भी कुछ न कुछ प्रयोजन सिद्ध होगा, कम से कम एक अवरुद्ध द्वार तो खुलेगा ही। यदि हम मार्ग बनाने में अपनी छोटी-छोटी हस्तियों को लगा दें, तो कल आने वाले युग प्रवर्तकों की मंजिल आसान हो जाएगी। युग निर्माण सत्संकल्प का शंखनाद करते हुए छोटे-शक्तियों के जागरण की चेतना को यदि चारित्रिक संधान के लिए जम जाग्रत कर सकें, तो आज न सही तो कल, हमारा युग निर्माण संकल्प पूर्ण होकर रहेगा।
🔴 युग परिवर्तन की सुनिश्चितता पर विश्वास करना हवाई महल नहीं बल्कि तथ्यों पर आधारित एक सत्य है। परिस्थितियाँ कितनी ही विकट हों, जब सदाशयता सम्पन्न संकल्पशील व्यक्ति एक जुट होकर कार्य करते हैं तो स्थिति बदले बिना नहीं रहती। असुरता के आतंक से मुक्ति का पौराणिक आख्यान हो या जिनके शासन में सूर्य नहीं डूबता था, उनके चंगुल से मुक्त होने का स्वतंत्रता अभियान, नगण्य शक्ति से ही सही, पर संकल्पशील व्यक्तियों का समुदाय उसके लिए युग-शक्ति के अवतरण का माध्यम बन ही जाता है। युग निर्माण अभियान से परिचित व्यक्ति यह भली प्रकार समझने लगे हैं कि यह ईश्वर प्रेरित प्रक्रिया है। इस संकल्प को अपनाने वाला ईश्वरीय संकल्प का भागीदार कहला सकता है। अस्तु, उसकी सफलता पर पूरी आस्था रखकर उसको जीवन में चरितार्थ करने-कराने के लिए पूरी शक्ति झोंक देना, सबसे बड़ी समझदारी सिद्ध होगी।
🌹 क्रमशः जारी
🌹 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
http://literature.awgp.org/book/ikkeesaveen_sadee_ka_sanvidhan/v1.96