बुधवार, 13 जून 2018

👉 वेष-भूषा की मनोवैज्ञानिक कसौटी (अन्तिम भाग)

🔷 आज पाश्चात्य देशों में अमेरिका में सर्वाधिक भारतीय पोशाक-साड़ी का तो विशेष रूप से तेजी से आकर्षण और प्रचलन बढ़ रहा है दूसरी ओर अपने देश के नवयुवक और नवयुवतियां विदेशी और सिनेमा टाइप वेष-भूषा अपनाती चली जा रही हैं। यह न केवल अन्धानुकरण की मूढ़ता है वरन् अपनी बौद्धिक मानसिक एवं आत्मिक कमजोरी का ही परिचायक है।

🔶 यदि इसे रोका न गया और लोगों ने पैंट, कोट, शूट, बूट, हैट, स्कर्ट, चुस्त पतलून सलवार आदि भद्दे और भोंडे परिधान न छोड़े तो और देशों की तरह भारतीयों का चारित्र्यक पतन भी निश्चित ही है। श्री हेराल्ड लिखते हैं—कि सामाजिक विशेषताओं को इस सम्बन्ध में अभी विचार करना चाहिये अन्यथा वह दिन अधिक दूर नहीं जब पानी सिर से गुजर जायेगा।

🔷 भारतीय दर्शन में आत्म कल्याण के लिये बहुत उपाय हैं सैकड़ों योग साधनायें हैं वैसे ही लोक-कल्याण के लिए भी अनेक परम्परायें मान्यतायें और आचार-विचार प्रतिस्थापित किये गये हैं उन सबका उद्देश्य जीवन को सशक्त और संस्कारवान बनाना रहा है अब जो परम्परायें विकृत हो चुकी हैं उनमें वेष-भूषा भी कम चिन्ताजनक नहीं हमें अनुभव करके ही नहीं इस मनोवैज्ञानिक खोज से भी सीखना चाहिये कि अपनी वेष-भूषा ओछापन नहीं बड़प्पन का ही प्रतीक है। हां काले अंग्रेज और काली मैम बनना हो तब तो कुछ भी पहना और ओढ़ा जा सकता है।

.... क्रमशः जारी
✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 भारतीय संस्कृति की रक्षा कीजिए पृष्ठ 84

👉 सजा बनी सीख

🔷 एक राजा था उसके जुल्म करने की भी कोई सीमा नहीं थी। अगर उसे किसी आदमी पर गुस्सा आ जाता तो उसे बड़ी अमानवीय सज़ा दिया कर था।

🔶 एक दिन उसे अपने महामंत्री अरुणेश पर गुस्सा आ गया तो उसने मंत्री को रात भर ठन्डे पानी में खड़े रहने की सज़ा दे दी। अरुणेश बहुत ही बुद्धिमान व्यक्ति था। वह सोचने लगा कि क्या तरीका हो सकता है कि राजा को सबक मिल सके और खुद वो इस सज़ा से भी बच जाये।

🔷 अचानक उसके दिमाग में एक युक्ति आ गयी और जब शाम के वक़्त राजा ने अरुणेश को सज़ा देने के लिए बुलाया तो अरुणेश चेहरे पर मुस्कान लिए राजा के पास पहुंचा तो राजा ने उसे ठन्डे पानी में जाने के लिए इशारा किया लेकिन उसने देखा कि महामंत्री के चेहरे पर बिलकुल भी शिकन या भय नहीं है जबकि वो तो ख़ुशी से झूम रहा है जैसे उसके लिए ये कोई अच्छा अवसर हो।

🔶 हैरान राजा ने उस से पूछ ही लिया कि तुम इतना प्रसन्न किस वजह से जबकि मेने तुम्हे ये सज़ा दी है क्या तुम्हे डर नहीं लग रहा इस पर महामंत्री ने राजा से कहा इसमें डरने वाली कौन सी बात है मेरे लिए तो ये एक तरह से बहुत अच्छा ही है क्योंकि राज वैद्य ने मुझे बताया है कि जल्दी गुस्सा हो जाने वाले व्यक्ति समय से पहले बुढ़ापा पा लेते है और ठन्डे पानी में खड़े रहना इसका सर्वोत्तम उपाय है  इसलिए मेरे लिए तो ये फायदेमंद ही होगा क्योंकि मैं भी तो बहुत अधिक गुस्सा करता हूँ।

🔷 राजा को चिंता हुई उसने सोचा बात तो इसकी भी वाजिब है क्योंकि मैं भी तो बहुत गुस्सा करता हूँ इसलिए उसने महामंत्री को जाने से रोक दिया और कहने लगा तुम नहीं जाओगे मैं आज की रात ये उपचार लूँगा क्योंकि राजा को बुढ़ापे का भय था।

🔶 थोडा समय बीता राजा को ठण्ड लगने लगी लेकिन जवानी के लालच में वो खड़ा रहा। लेकिन फिर थोड़ी देर बाद ही उसे ख्याल आया की ठन्डे पानी में खड़े रहकर भला कौन सी जवानी हासिल होती है जबकि व्यक्ति इसमें तो बीमार हो सकता है और अधिक देर तक खड़े रहने के बाद उसकी मौत भी हो सकती है। सहसा उसे अपनी भूल का अहसास हो गया कि मैं भी लोगो को ऐसी सज़ा देता हूँ तो उन्हें भी तो कितनी पीड़ा होती होगी। शायद इसी लिए अरुणेश ने मुझे शिक्षा देने के लिए ये कहा होगा।

🔷 राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने महामंत्री को बुलाकर उससे क्षमा मांगी और भविष्य में ऐसे अजब गजब आदेश नहीं देने का वचन भी दिया।

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